Social Justice

मिश्र की महिलाओं ने यौन हिंसा से जुड़े कलंक को किस तरह से ध्वस्त किया

सामाजिक प्रतिरोध का विस्फोट मिश्र की यौनिक हिंसा की महामारी पर नया प्रकाश डाल रहा है।
2019 के बाद के दिनों में, "फ़ारशाउट गर्ल" के त्रासद बलात्कार ने मिश्र में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर फिर से ध्यान खींचा है। अब फ़ेमिनिस्ट (महिला अधिकार) कार्यकर्ताओं की नयी पीढ़ी बदलाव के लिये गोलबंद हो रही है।
2019 के बाद के दिनों में, "फ़ारशाउट गर्ल" के त्रासद बलात्कार ने मिश्र में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर फिर से ध्यान खींचा है। अब फ़ेमिनिस्ट (महिला अधिकार) कार्यकर्ताओं की नयी पीढ़ी बदलाव के लिये गोलबंद हो रही है।

दिसम्बर 2019 के बीत चले दिनों में, फ़ारशाउट शहर की एक नक़ाबपोश लड़की की कहानी मिश्र मीडिया की सुर्ख़ियों में थी। उसने ऊपरी मिश्र के छोटे से क़ेना शहर में प्रभावशाली लोगों के एक समूह द्वारा अपने सामूहिक बलात्कार की आपबीती बताई। लड़की ने दूर के एक सूनसान खेत में अपने अगवा किए जाने और सामूहिक बलात्कार की दिल दहला देने वाली दास्तान की विस्तार से जानकारी दी।

"फ़ारशाउट की लड़की" ने, जैसा कि वह मीडिया में जानी जाती है, नकाब लगाए हुए - केवल उसकी आँखें दिखाई पड़ रही थीं - अपने उस भयाक्रांत समय के बारे में बताया जब उसने अपने बलात्कारियों को बात करते सुना कि वे उसके साथ क्या करने जा रहे थे। उसने उस झीने कफ़न को देखने के बारे में बताया जिसमें वे उसे क़त्ल करने के बाद दफन करने जा रहे थे। उसने बताया कि कैसे वह अपने बलात्कारियों के चंगुल से निकल भागने में सफल हुई, कैसे वह क़रीब-क़रीब नंगी, खून में लथपथ अपने बलात्कारियों के खिलाफ उनके ख़ूँख़ार रसूख़ के बावजूद रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस स्टेशन तक पहुँच पायी - और कैसे उसने जो कुछ उसके साथ हुआ उसके लिये "कुछ हद तक न्याय" ले पाने के लिये अपने ऊपरी मिश्र समुदाय के अंदर जबरदस्त संघर्ष किया। अपने बलात्कारियों के खिलाफ जो कुछ भी कर रही थी उसके प्रति अपने पिता की असहमति और विरोध के बारे में भी उसने बताया, और यह भी कि कैसे उसने अपने पिता को उसके असहयोगी रवैये के चलते "त्याग"( disowned) दिया, जो मिश्र के पारम्परिक पारिवारिक सम्बन्धों की भूमिकाओं का अपवाद उलट था जहां आमतौर पर बच्चे अपने अभिभावकों द्वारा त्याग दिये जाते हैं, न कि इसका उलटा।

फ़ारशाउट की लड़की का परिदृश्य - एक ऐसे परिदृश्य के रूप में, जो मिश्र की महिलाओं के बारे में, विशेषकर उन्हें 'मूढ़' [ऊपरी मिश्र की औरत] और पर्दे वाली औरत मानने की उन बहुतेरी जड़-रूढ़िवादी धारणाओं को तार-तार कर देता है - जब तक कि इसे मिश्र में यौनिक हिंसा के ख़िलाफ़ मिश्र की महिलाओं के दशकों लम्बे संघर्ष के संदर्भ और परिप्रेक्ष्य में न देखा जाए तब तक इसे पूरी तरह नहीं समझा जा सकता है।

जब 2008 में यौन उत्पीड़न के एक मामले में न्यायालय में वादी के तौर पर पहले आदेश के रूप में नोहा अल-ओस्ता ने जीत हासिल की, यह फ़ेमिनिस्ट अध्ययन (2007) के लिये "नज़र"(Nazra) और "हरास मैप"(2010) जैसी नयी फ़ेमिनिस्ट संस्थाओं और पहलकदमियों की नयी पीढ़ी के उभार की शुरुआत के भी हमकदम था।

तभी से औरत के खिलाफ हिंसा पर बहस कुछ ख़ास सांस्कृतिक समूहों, राजनीतिक सर्किलों, और फ़ेमिनिस्ट व मानवाधिकार संगठनों का विशेषाधिकार नहीं रह गयी है। यह अब मुख्यधारा बहसों के अंदर अपनी जगह बना चुकी है।

2011 से हीं मिश्र में यौनिक हिंसा के मुद्दे पर एक लचीले आंदोलन के वास्तविक विस्तार - प्रसार का गवाह है, जिसने कार्यकर्ताओं की बहुलता के अनुरूप विविध रूप लिये हैं। "OpAntiSH" (ऑपरेशन एंटी-सेक्सुअल हर्रासमेंट) ग्रुप जैसे ग्रुपों ने 25 जनवरी,2011 क्रांति और उसकी परवर्ती प्रतिक्रिया में यौनिक हिंसा की घटनाओं के प्रसार का प्रतिरोध किया। फिर "गर्ल्ज़ रिवोल्यूशन" जैसे ग्रुप हैं, जो उसके परवर्ती वर्षों में उभरे और उन्होंने औरतों के खिलाफ हिंसा की घटनाओं और गवाहियों के प्रति लोगों को जागरूक करने पर केंद्रित किया। अस्वान में "गानोबिया होरा" पहलकदमी और दामानहूर में "नील की बेटी" (Daughter of the Nile) जैसे ग्रासरूट फ़ेमिनिस्ट ग्रुप के अंदर औरतों पर अपना काम केंद्रित कर रहे हैं।

विशेषकर अंतिम दो पहलकदमियाँ मिश्र में फ़ेमिनिस्ट आंदोलन के वृहत्तर सांस्कृतिक, राजनीतिक, और मानवाधिकार सर्किलों से सम्बद्ध नागरिक समाज संगठनों या फ़ेमिनिस्ट ग्रुपों के भीतर सिमटे होने की तमाम विद्यमान धारणाओं को तार-तार कर देती हैं। वे इन धारणाओं को भी ध्वस्त करती हैं कि मिश्र में यौनिक हिंसा की महामारी का प्रतिरोध, चाहे वह गोलबंदी, लेखन, क़ानूनी कार्यवाही, या फिर यौनिक हिंसा के बारे गवाहियों को जुटाने और प्रकाशित करने के नये तौर-तरीक़ों के रूप में हों, कुछ ख़ास किस्म की औरतों के ही, न कि दूसरों के विशेषाधिकार हैं।

फ़ारशाउट की घटना हाल की उन दर्जनों घटनाओं में से केवल एक है जिन्होंने मिश्र में यौनिक हिंसा के मुद्दे को फ़ेमिनिस्ट आंदोलन के केंद्र में ला दिया है। इसके लिए उन लड़कियों के ग्रुप ख़ासकर धन्यवाद के पात्र हैं जो इस मुद्दे को खुल कर उठा रही हैं - राज्य और समाज से मदद की गुहार लगाती उत्पीड़िता के रूप में नहीं, बल्कि उन साहसी कार्यकर्ताओं के रूप में, जो राजनीति, समाज और कानून को कही ज़्यादा गहन रूप से चुनौती दे रही हैं। बाद वाले (क़ानून) की मिश्र में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मुद्दे पर ऐतिहासिक रूप से संलिप्तता रही है।

वर्तमान में हम यौनिक हिंसा के मामलों का अनवरत और निर्बाध उभार देख रहे हैं: चाहे वे फेयरमोंट जैसे उच्च वर्गीय सर्किलों के हों, अथवा कॉप्टिक ऑर्थोडॉक्स चर्च का मामला हो जिसमें बहुत से पादरी कॉप्टिक लड़कियों द्वारा उजागर किये गए यौनिक अत्याचारों के मामलों का सामना कर रहे हैं, या फिर वे कला, सांस्कृतिक और मानवाधिकार समुदायों के अंदर के मामले हों। ये तमाम मामले मिश्र समाज के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त यौनिक हिंसा की भयावहता के प्रदर्शन के अतिरिक्त कुछ नही हैं। वर्तमान में आकर ले रहे फ़ेमिनिस्ट संघर्ष यौनिक हिंसा, समाज की संलिप्तता, और राज्य के दायित्व के त्रि-स्तरीय तौर-तरीकों से बेहद महत्वपूर्ण सवाल उठा रहे हैं।

पहला स्तर राज्य और कानून के उपकरणों के स्तर का है। राज्य के स्तर पर, निर्णायक कदम अभी भी बहुत धीमी गति से और महिलाओं की गोलबंदी व उनके दबाव के चलते ही आ रहे हैं, जैसा कि हमने हाल ही पारित हुए यौनिक हिंसा अपराधों के मामलों को सामने लाने वाले 'व्हिसिल ब्लोवर्स' की निजता की सुरक्षा के कानून संशोधन, या फिर हाल के कई यौनिक हिंसा के मामलों में सरकारी अभियोजन (Public Prosecution) के सीधे हस्तक्षेपों में देखा है। इसलिये वर्तमान फ़ेमिनिस्ट आंदोलन को अभी भी उन प्रक्रियाओं और कानूनों को सक्रिय कराये जाने की ज़रूरत है जो यौनिक हिंसा के मामलों में औरतों के लिये क़ानून का रास्ता (मुकदमा) ले पाना आसान बना सके। मिश्र में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में यौनिक हिंसा को रोकने के लिये अभी भी ऐसे सम्पूर्ण- वृहत्तर (कंप्रिहेंसिव) क़ानून की ज़रूरत है जो वैसे ही कानूनी सुधारों के माध्यम से लाया जाए जैसा क्षेत्र के ट्यूनीशिया जैसे अन्य देशों द्वारा अपनाया गया है।

दूसरा स्तर सभी क्षेत्रों में यौनिक उत्पीड़न के खिलाफ संस्थागत नीतियों से संबंधित है जिन्हें सुचारू रूप से संस्थापित किए जाने चाहिए। यह एक ऐसा प्रयास है जिसमें वर्तमान में महिला पत्रकार, अकादमिक, और फिल्म निर्माता विभिन्न संस्थाओं जैसे विश्वविद्यालयों, कंपनियों, प्रेस और मीडिया संगठनों पर कार्यस्थल पर यौनिक हिंसा के ख़िलाफ़ स्पष्ट नीतियाँ और प्रणाली तंत्र बनाये जाने के लिए दबाव बना रहे हैं।

तीसरा स्तर साइबर स्पेस में गुमनाम गवाहियों को प्रकाशित करने का है, जहां ये उद्घाटन (disclosure) मौन को चीर कर अपने दर्दनाक और दहला देने वाले विवरणों के साथ हर किसी को चुनौती देते हैं। औरतों की ये गवाहियाँ, जो राज्य और समाज के तमाम अंतर्विरोधों से बोझिल हैं, यौनिक हिंसा के अपराधों से निपटने में निपट संस्थानिक असफलता की गवाही देती हैं। यह दर्द, सकारात्मक असमंजस का वह निर्णायक पल है जिसकी मिश्र समाज को अनिवार्य रूप से और तत्काल जरूरत है।

हिंद अहमद जाकी कनेक्टिकट विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान और मध्य पूर्व अध्ययन की सहायक प्रोफ़ेसर हैं। उनकी डॉकटोरल थीसिस (और वर्तमान पुस्तक परियोजना) शीर्षक : "राज्य की छाया में : अरब वसंत में मिश्र और ट्यूनीशिया के संदर्भ में जेंडर संघर्ष और कानूनी गोलबंदी" को 2019 में अमेरिकन पॉलिटिकल एसोसिएशन द्वारा जेंडर और राजनीति के क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ प्रस्तुतीकरण (डिजर्टेशन) पुरस्कार और शोध प्रस्तुतीकरण उत्कृष्टता के लिये सर्वश्रेष्ठ फ़ील्ड वर्क पुरस्कार सहित कई सारे पुरस्कार मिले हैं। अपने अकादमिक कार्यों के अतिरिक्त वह मिश्र और मध्य पूर्व क्षेत्र के स्त्री अधिकार मुद्दों की बेहतरीन कार्यकर्ता भी हैं।

फोटो: संयुक्त राष्ट्र महिला, फ़्लिकर

Available in
EnglishSpanishItalian (Standard)FrenchHindiGermanPortuguese (Brazil)Portuguese (Portugal)
Author
Hind Ahmed Zaki
Translators
Vinod Kumar Singh and Surya Kant Singh
Date
08.03.2021
Source
Original article🔗
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