मलेशिया अपने राजनीतिक संकट के सबसे ताज़ा चरण में लगभग उसी समय फंसा जब मार्च 2020 में कोविड-19 का हमला हुआ।
संकट की शुरुआत मध्य(सेंट्रिस्ट) सुधारवादी ' आशा के गठबंधन' (कोअलिशन ऑफ होप : Pakatan Harapan, PH) के ध्वस्त होने के साथ हुई जो 2018 के ऐतिहासिक आम चुनाव में कंजरवेटिव नेशनल फ्रंट (Barisan Nasional, BN) के लम्बे समय से चले आ रहे वर्चस्व के खिलाफ जीत हासिल कर के सत्ता में आया था। एक ऐसे गठबंधन के खिलाफ PH की 2018 में जीत ने, जो दशकों से मलेशिया की सत्ता पर काबिज था, मलेशिया वासियों को यह दिखाने में मदद की कि जनतांत्रिक चुनावों के माध्यम से सरकार का सत्ता परिवर्तन सम्भव था। मगर केवल एक चुनाव अकेले वह आमूल-चूल परिवर्तन नहीं ला सकता था जिसकी इतनी गहनता के साथ ज़रूरत थी।
और फिर वे धराशायी हो गए। PH की अल्पावधि सत्ता का अंत उसके चलते हुआ जिसे अब "शेरेटन मूव" के नाम से जाना जाता है, पार्टी प्रतिबद्धता बदलने की एक राजनीतिक चाल, जिसकी योजना संसद के काफी सारे सदस्यों द्वारा 23 फरवरी 2020 को होटल शेरेटन में बनाई गयी थी। महीनों की अफरा-तफरी के बाद, संकट अपने नए चरम पर पहुँच गया जब सत्ता हासिल करने वाली नयी सरकार ने 12 जनवरी 2021 को आपातकाल की घोषणा के साथ संसद भंग कर दिया।
'शेरेटन चाल' के बाद से मलेशिया में राजनीतिक घटनाक्रम बेहद उथल-पुथल भरे चल रहे हैं, जिनमे राजनीतिक ताक़तों का सत्ता में बने रहने अथवा दूसरों को सत्ता से बाहर रखने के लिए लगातार संयोजन-पुनर्संयोजन हो रहा है। दोस्तों-दुश्मनों के रिश्ते रातों-रात बदल सकते हैं, मगर उनका राजनीतिक सिद्धांतो से कोई लेना-देना नहीं है। यह शासक वर्ग के अंदर विभिन्न गुटों के स्वार्थों की लड़ाई है, जिसमें हर कोई अपने प्राक्सियों के बीच सत्ता उठा-पटक का खेल रहा है।
मूलतः, शेरेटन चाल सत्ताधारी PH गठबंधन से समर्थन वापस लेने के लिए बहुत से सांसदों और पार्टियों के बीच पर्दे के पीछे की डील थी। फरवरी 2020 में PH के गिरने के बाद, एक नया गठबंधन, जो खुद को "राष्ट्रीय गठबंधन" (Perikatan Nasional, PN) कहता था, सत्ता में आया, और मलेशियन यूनाइटेड इंडिजेनस पार्टी (BERSATU) के अध्यक्ष मुहयिद्दीन यासीन ने मलेशिया के आठवें प्रधानमंत्री के रूप में शपथ ली।
मगर फ़ेडरल संसद में यासीन नेतृत्व वाले PN गठबंधन का बहुत ही हल्का बहुमत था। PH के राजनीतिज्ञों, विशेषकर अनवर इब्राहिम ने यह दावा करते हुए फिर से सत्ता हासिल करने का प्रयास किया कि उसके पास वास्तविक बहुमत था - मगर इसका कुछ ख़ास परिणाम नहीं निकला। PN सरकार को ज्यादा गम्भीर संकट उसके अंदर से ही आया। यूनाइटेड मलय नेशनल ऑर्गेनाइजेशन (UMNO), PN गठबंधन के एक सदस्य ने, जिसका मलय राजनीति में 2018 तक दबदबा था, इस आशा से समयपूर्व चुनाव के लिये दबाव डाला कि वह सत्ताधारी गठबंधन में प्रभुत्व कारी पार्टी के रूप में अपनी हैसियत वापस हासिल कर लेगा।
आंतरिक खतरे और PN सरकार के आसन्न पतन को देखते हुए मुहयिद्दीन यासिन ने 12 जनवरी को आपात स्थिति का घोषणा कर दी - लगभग उसी समय, जब सरकार ने गतिशीलता नियंत्रण आदेश (MCO) के अंतर्गत लॉकडाउन उपायों को पुनः लागू किया था। हालांकि आपातकाल की घोषणा कोविड-19 का प्रसार रोकने के नाम पर की गयी थी, मगर आपातकाल का स्पष्ट उद्देश्य संसद को स्थगित करना और समय पूर्व चुनाव होने से रोकना है। UNMO ने फैसला लिया है कि वह आपातकाल समाप्त होते ही PN से नाता तोड़ लेगा, और समयपूर्व चुनाव की संभावना आपातकाल हटने के बाद ही है - मगर कम से कम तब तक तो राजनीतिक अनिश्चितता बनी ही रहेगी।
आज का संकट उस जनतांत्रिक खुलेपन के युग के प्राथमिक तौर पर अंत का द्योतक है जिसकी शुरुआत 2018 में PH की जीत के साथ हुई थी। मगर विद्यमान परिस्थिति उस कारण का भी प्रतिबिम्ब है जिसमें बहुत पहले ही PH के "नए मलेशिया" में जनतांत्रिक सुधारों की उम्मीद चूर-चूर हो गयी थी - PH सरकार द्वारा सुधारवादी नीतियों को लागू करने में तमाम यू-टर्न लेने, और सत्ताधारी गठबंधन के अंदर राजनीतिज्ञों के बीच अनसुलझे सत्ता संघर्षों के घमासान से मची टूट-फूट और गद्दारी के बाद।
PH ने 2018 के अपने चुनाव मेनिफेस्टो में व्यापक संस्थागत सुधारों का वादा किया था। मगर सत्ता में आने के बाद इसे वृहत्तर गठबंधन के परस्पर विरोधी हितों की टकराहटों के चलते ज़बरदस्त अवरोधों का सामना करना पड़ा। सुधारों की बेहद धीमी गति के अतिरिक्त भी, PH सरकार आर्थिक नीति में किसी बड़े-महत्वपूर्ण बदलाव का प्रतिनिधित्व नहीं करती थी। राज्य और कारपोरेट हितों के बीच साँठ-गाँठ का पहलू पूरी तरह से अनछुआ छोड़ दिया गया था।
सरकार मलय आशंकाओं और विभिन्न जातीयताओं के मुद्दों के निवारण के लिए भी किसी सहमति पर पहुंचने में विफल रही। इसके चलते इसके राजनीतिक विरोधियों को अपने खुद के राजनीतिक एजेंडे के लिए जातीय भावनाओं को लगातार हवा देते हुए हथियार की तरह इस्तेमाल करने का मौका मिला। जातीय राजनीति का भूत मलेशिया को उसके औपनिवेशिक दिनों से ही सताता रहा है। राजनीतिज्ञ - चाहे वे सत्ता पक्ष से हों अथवा विरोध पक्ष से, जातीयता आधारित समर्थन की गोलबंदी के लिए हमेशा से इसका इस्तेमाल करते आए हैं। राजनीतिज्ञों द्वारा किसी भी राजनीतिक मुद्दे को अपने संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ के लिये जातीय रंग दिया जा सकता है - जातीयताओं की समानता और मुक्ति के लिए नहीं, बल्कि संकीर्ण निहित लिबरल जातीय स्वार्थों को पूरा करने के लिए विभाजन-विभेद के एक हथियार के रूप में।
सत्ता में आने के दो साल से भी कम समय में PH सरकार के पतन के बाद, एक बार फिर से राजनीतिक परिदृश्य किसी जनतांत्रिक मैंडेट के प्रतिबिंब के रूप में नहीं, बल्कि राजनीतिक गुटों के बदलते गंठजोड़ों द्वारा रचा जा रहा है। इसी के साथ मलेशिया आज तमाम तरह के गहराते संकटों का सामना कर रहा है।जारी कोरोना वायरस पेंडेमिक और राजनीतिक संकट के खतरे के अलावा, हम देश में पेंडेमिक जनित आर्थिक गिरावट का सामना कर रहे हैं।
2020 में मलेशियाई अर्थव्यवस्था में 5.6% का संकुचन हुआ, जो 1998 के बाद का, जब देश एशियाई वित्तीय संकट के भँवर में था, सबसे खराब प्रदर्शन है। आधिकारिक बेरोजगारी दर 4.5% पर पहुँच चुकी है जो 1993 के बाद की सबसे ऊँची दर है। मलेशिया के वित्त मंत्री तेंगकु जफरुल अज़ीज़ के आकलन के अनुसार मलेशिया की अर्थव्यवस्था 2021 में 6.5% से 7.5% की छलांग लगाएगा। मगर इस तथ्य को देखते हुए कि मलेशियाई अर्थव्यवस्था अभी भी मुख्यतः निर्यातोन्मुख है, वित्त मंत्री का व्यर्थ का अति-आशावाद यही दिखाता है कि नीति-निर्माताओं और राजनीतिक अभिजात्यों के पास वर्तमान संकट की त्रासदी से निकलने की कोई वैकल्पिक दृष्टि नहीं है।
जारी राजनीतिक प्रहसन और उन भारी चुनौतियों को देखते हुए, जिनका आज मलेशिया की जनता सामना कर रही है, सच्चे विकल्पों और सार्थक परिवर्तन लाने के लिए नीचे- ग्रासरूट स्तर से सामाजिक शक्तियों के (पुनः) निर्माण की तत्काल आवश्यकता है।और आशावादी होने के पर्याप्त कारण हैं। 2018 के ऐतिहासिक चुनाव से पहले, दो दशकों से भी ज़्यादा समय तक मलेशिया आम जनता और नागरिक समाज की तमाम जन गोलबंदियों का गवाह रहा है। BERSIH, स्वतंत्र व निष्पक्ष चुनावों के लिए गठबंधन, जनता की उन व्यापक जन गोलबंदियों में से एक था जिन्होंने जनतांत्रिक सुधारों के लिये संघर्ष में योगदान दिया है।
दुर्भाग्यवश, PH के सत्ता में आने के बाद से,नागरिक समाज के अच्छे-खासे हिस्से को व्यवस्थातंत्र में समाहित कर लिया गया। हालांकि उनमें से कुछ ने सुधारों के लिए दबाव बनाने में भूमिका निभाई है, मगर नागरिक समाज का बहुत बड़ा हिस्सा निष्क्रिय (डीमोबिलाइज) कर दिया गया है।इस निष्क्रियता का अर्थ जनतांत्रिक सुधारों पर बल देने के लिए संगठित शक्ति का अभाव और संकीर्ण जातीय-राष्ट्रवादी राजनीतिक एजेंडों पर गोलबंद हो रहीं प्रतिक्रियावादी ताक़तों के लगातार बढ़ते खतरे का जवाब दे पाने में विफलता है।
यही कारण है कि मलेशिया की वाम और प्रगतिशील ताक़तों के लिए एक ऐसे सामाजिक आंदोलन का पुनर्निर्माण निर्णायक रूप से जरूरी हो गया है जो सच्चे जनतंत्र और सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष करे - एक ऐसा आंदोलन जो तमाम जातीय और धार्मिक विभाजनों-विभेदों से ऊपर उठ सके। आंदोलनों और समूहों को जातीय विभाजन पार करते हुए आम जनता तक पहुँचने के लिए और अधिक प्रयास करना होगा, जिससे कि वे दूसरों द्वारा सामना की जा रही समस्याओं के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील बन सकें, और ज्यादा समावेशी व समतामूलक मलेशिया की दिशा में आगे बढ़ना जारी रख सकें। पेंडेमिक और आर्थिक गिरावट के वर्तमान संकट का सामना करते हुए, हम विभिन्न जातीय पृष्ठभूमियों के सारे आम मलेशिया वासियों को परिवर्तनकारी सामाजिक कार्यक्रमों की साझा माँगों पर एकजुट कर सकते हैं : अपने सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की रक्षा के लिए, सार्वजनिक सेवाओं के निजीकरण के विरोध के लिए, हमारी "ग्रीन न्यू डील" की दृष्टि के माध्यम से रोजगार सृजन के लिए, और बेरोजगारों के लिए आधारभूत आय योजना शुरू करने के लिए।
आज मलेशियाई राजनीति शीर्ष पर राजनीतिक अंतर्कलह के जरिये परिभाषित हो रही है। एक नए मलेशिया के निर्माण के लिए ज़रूरी है कि हम नीचे से एकजुट रूप में उठ खड़े हों।
चू चान काई 'पार्टी सोसियालिस मलेशिया' (PSM - मलेशिया की सोशलिस्ट पार्टी) के अंतर्राष्ट्रीय ब्यूरो के संयोजक और सोसियालिस.नेट के संपादक हैं। वह यहां अपनी व्यक्तिगत हैसियत में लिख रहे हैं।
Photo: Hafiz Noor Shams / Wiki Commons
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