19 साल पहले, अमेरिका और नाटो राष्ट्रों ने, 'वॉर ऑन टेरर' की शुरुआत में, अफगानिस्तान पर हमला किया और कुछ ही हफ्तों में खून के प्यासे तालिबान शासन को हटा दिया। मौत और विनाश के दो दशकों के बाद अमेरिका और उसकी कठपुतली अफगान सरकार दोहा में सौदे करके विनाशकारी तालिबान को सत्ता में वापस लाने की कोशिश कर रही है। 'वॉर ऑन टेरर', जैसा की शुरुआत से ही स्पष्ट था, ना केवल आतंकवाद को मिटाने में असफल रहा, बल्कि वास्तव में उस से आतंकवाद बढ़ गया है। आज, जब तालिबान के साथ आईएसआईएस नामक एक और क्रूर समूह जुड़ गया है, साथ हीं हक्कानी नेटवर्क और सरकार के प्रवक्ता के अनुसार 24 अन्य छोटे और बड़े सक्रिय आतंकवादी समूह भी शामिल हो गये हैं, अफ़ग़ानिस्तान आतंकवाद और ड्रग माफ़िया का अड्डा बन गया है। साथ ही असंख्य आतंकवादियों ने मुखौटे बदल कर सरकार में सीटें ले ली हैं या गुलबुद्दीन की तरह राजकोष के दम पर जी रहे हैं ।
सालों से, अमेरिका और उसके साथियों ने अपने लोगों को यह दावा करते हुए धोखा दिया है कि वे “अफगान महिलाओं को मुक्त कर रहे हैं”। वास्तव में तालिबान के मध्ययुगीन शासन के दौरान भी अफगान महिलाओं के खिलाफ बर्बरता और अत्याचार इतना भयावह और व्यापक नहीं था । तालिबान युग के दौरान गाज़ी स्टेडियम में ज़र्मिना की शूटिंग ने दुनिया को चौंका दिया था, लेकिन अब पत्थरबाजी, एसिड हमलों, गोलीबारी, कान नाक और गला काटना, यौन शोषण, उत्पीड़न के कारण आत्म-शोषण और अफगान महिलाओं के खिलाफ क्रूरता के अन्य रूप दिनचर्या बन गये हैं । फैरैब में एक गर्भवती महिला की शूटिंग सबसे हालिया मामला है, और फ़रखुंदा को पीट-पीट कर मारना, तबस्सुम का सिर काटना, रुखसाना को पत्थर मारना, और सहर गुल को दासी बनाना, कुछ ऐसे मामले हैं जो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में दिखाए गए हैं। लेकिन वेस्टर्न मीडिया अफगानिस्तान में महिलाओं के अधिकारों की त्रासदी को छुपाने के लिए चंद महिलाओं की सफलताओं को बढ़ा-चढ़ा के अमेरिका और उसके साथियों की उपस्थिति के परिणाम के रूप में पेश करता है । उन्होने नोबेल शांति पुरस्कार के लिए भी फ़ौज़िया कौफी को नामित किया है, जो माफ़िया की सामर्थक है ।
जब अमेरिका और उसके आपराधिक सहयोगियों ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने इसे ‘ऑपरेशन एंड्योरिंग फ्रीडम’ कहा। लेकिन इन सभी वर्षों के दौरान उन्होंने लोकतंत्र और न्याय के खिलाफ सबसे बड़ा विश्वासघात किया। शुरू से ही, बॉन कान्फरेन्स में, जिन जिहादी देशद्रोहियों और अपराधियों ने दावा किया की लोकतंत्र और काफिर्ता एक हीं है, उन्हें करज़ई सरकार में लोकतंत्र के समर्थक के रूप में देखा गया । यह अजीब रिश्ता कायम है क्योंकि व्हाइट हाउस को अपनी क्षेत्रीय रणनीति को आगे बढ़ाने के लिए जिहादियों और तालिबान कट्टरपंथियों की जरूरत है। आज, इन सभी फासीवादी समूहों ने अपने अमेरिका और नाटो के मालिकों के साथ युद्ध विराम किया है, पर हमारे महिलाओं, बच्चों, और उत्पीड़ित जनता के खिलाफ उन्होंने आत्मघाती हमलों, विस्फोटों, जबरदस्ती और विश्वासघात के साथ अपना जिहाद पूरी तीव्रता के साथ जारी रखा है ।
अमेरिका और उसके सहयोगियों का एक और घोषित लक्ष्य ड्रग उत्पादन का उन्मूलन है। लेकिन पिछले दो दशकों से, हमारे देश ने दुनिया की 90% से अधिक अफीम का उत्पादन किया है। इस भयावह घटना के खिलाफ उनकी कथित लड़ाई असफल रही है। हमारे देश की अर्थव्यवस्था ड्रग की खेती और तस्करी पर आधारित है, जिसमें वेस्टर्न खुफिया एजेंसियां शामिल हैं। आधिकारिक सरकारी आंकड़ों के अनुसार, अफ़ग़ानिस्तान में 35 लाख से अधिक नशेड़ी हैं। उनके परिवारों की कहानियां सुनकर दिल दहल जाता है। हेरोइन के अलावा, अन्य एक्स्टेसी दवाएं जैसे टेबलेट 'के' गोलियां और मारिजुआना स्कूली बच्चों तक को भी आसानी से उपलब्ध हैं और अफगानिस्तान के जीवन और भविष्य को बर्बाद कर रहे हैं । अमेरिका अफगानिस्तान की वैश्विक ड्रग के व्यापार पर कब्जा करके युद्ध की लागत का भुगतान करता है, और यह जान कर, की एक व्यसनी राष्ट्र को आसानी से गुलाम बनाया जा सकता है, अप्रभावी रूप से काम कर रहा है।
अमेरिका और अन्य क़ब्ज़ा करने वालों ने “अफगानिस्तान के लोगों को मानवीय सहायता” देने के गीत गाए, लेकिन अमेरिकी सरकार के कुछ मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर, जो अब लूटपाट, दुर्व्यवहार, और भ्रष्टाचार के माध्यम से टाइकून बन गए हैं, अब ज्यादातर आबादी गरीबी में है और हुमारे देश को एक 'नार्को-स्टेट' बना चुके हैं । उत्पीड़ित लोग ग़रीबी में पिसे जा रहे हैं, जिससे विशेषकर युवा, अत्यधिक भूख, बेरोजगारी, और अन्याय से बचने के लिए विदेश भागने पर मजबूर हो जाते हैं । कई मामलों में वे इस यात्रा में प्राण भी गवां देते हैं।
इस जुल्म के खिलाफ बोलने वालों के साथ मारपीट की जाती है। जब सुश्री बेलकिस रोशन ने 1 दिसंबर 2013 को लोया जिरगा में अमेरिका के साथ समझौते के रूप में अफगानिस्तान को बेचने की समालोचना की, तो उन्होंने अपने लाखों साथी अफगानों की तरफ से बोला । लेकिन सरकार के अधिकांश 'जनप्रतिनिधियों' ने उस पर "पाकिस्तानी नौकर" और "ईरानी जासूस" का तमगा लगा कर निंदा करते हुए हमला किया और यह तर्क दिया की अमेरिकी सैन्य अड्डों की निरंतर उपस्थिति हमें पाकिस्तानी या ईरानी हमलों से बचाएगी। 'वॉयस ऑफ अमेरिका' की टीवी प्रस्तोता, लीना रूज़बेह हैदरी ने सुश्री रोशन पर शोहरत चाहने का आरोप लगाया। हालांकि, समय बीतने के साथ उनके शब्दों की सच्चाई साबित हो गई और उनकी प्रत्येक भविष्यवाणी सच हो गयी । जैसा कि अपेक्षित था, पाकिस्तान और ईरान के पंजे से अफगानिस्तान को मुक्त न करने के अलावा, अमेरिकी सरकार पाकिस्तानी मिसाइल हमलों, सीमा पार से आक्रामकता, और तालिबान के उनके समर्थन के सामने पूरी तरह से चुप है। और अब, दोहा टॉक्स में, अमेरिका ने आधिकारिक तौर पर अफगानिस्तान को 7 अरब डॉलर के अमेरिकी सैन्य उपकरणों के साथ पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई की कठपुतलियों को सौंप दिया, जो पाकिस्तानी सेना के लिए एक नया वरदान है।
राष्ट्रपति चुनाव के थोड़ा ही पहले, जनता को धोखा देने के लिए, ट्रम्प प्रशासन ने घोषणा की कि वह अफगानिस्तान से अपने सभी सेनाओं को वापस ले रहे हैं । वो ऐसा नहीं करेंगे । अमेरिका एशिया के इस आकर्षक टुकड़े को अपने उभरते प्रतिद्वंद्वियों, खासकर चीन और रूस, के लिए आसानी से नहीं छोड़ेगा । निस्संदेह, जंगबाज़ी और दमनकारी अमेरिकी सरकार, जो आर्थिक संकट की स्थिति में है और पूरी दुनिया को अपनी कमज़ोरियाँ दिखा चुकी है, अस्थायी रूप से अपने सैनिकों को कम कर देगी। लेकिन वो इतनी आसानी से उनको वापस लेने के लिए तैयार नहीं है, जब तक कि वे हमारे उत्पीड़ित लोगों द्वारा बाहर नहीं निकाल दिए जाते । दूसरी ओर तालिबान अन्य देशों के भाड़े के बलों से बना है और अमेरिकी सेना की वापसी की उनकी मांग एक बहाना है पाकिस्तान के आईएसआई के अफगानिस्तान में और अधिक शक्ति को लुभाने के लिए । पर्दे के पीछे रहते हुए, तालिबान ने वर्षों पहले अमेरिका और नाटो के खिलाफ अपने "जिहाद" को व्यावहारिक रूप से समाप्त कर दिया था।
दोहा "शांति" टॉक्स चुनाव में ट्रम्प के प्रदर्शन की मदद करने के लिए एक भ्रामक पैंतरेबाज़ी है, और हमारे लोगों के लिए युद्ध और रक्तपात को समाप्त करने में मदद नहीं करेंगे । विदेशियों द्वारा वित्त पोषित किए जा रहे हत्यारों और आंकड़ों के लिए सौदेबाजी और फिरौती देने के माध्यम से शांति प्राप्त नहीं की जा सकती है। यह स्पष्ट है कि घानी के कठपुतली शासन द्वारा 5,000 रक्तप्राण कैदियों की रिहाई के बाद, तालिबान द्वारा हत्या और आतंक और बढ़ गये हैं ।
अफगानिस्तान की सॉलिडैरिटी पार्टी (एसपीए) ने बार-बार कहा है कि कोई भी विदेशी ताकत और उसके स्थानीय कठपुतलियां हमें इन सभी कष्टों से नहीं बचा पाएगी, क्योंकि वे स्वयं इसका मुख्य कारण हैं। अमरीकी सैनिकों की वापसी केवल जागरूक दिमाग, हमारे पीड़ितों के सक्षम हाथ और विश्व जनमत के दबाव के कारणहो सकती है, और तालिबान और जिहादी नेताओं का उनके शाही आकाओं से संबंध टूट सकता है । हम अपने शक्तिशाली हाथों से अपने भाग्य को बदल सकते हैं, और केवल धर्मनिरपेक्षता पर आधारित एक लोकतांत्रिक राज्य में ही हम एक शांतिपूर्ण और समृद्ध समाज में रह सकते हैं - एक मुक्त और स्वतंत्र अफगानिस्तान जहां पुरुषों और महिलाओं को समान अधिकार और देश के सभी लोग एक साथ शांति और सुरक्षा में, जातीयता, धर्म, भाषा, और क्षेत्र के आधार पर उत्पीड़न और भेदभाव से मुक्त रह सकते हैं ।