Social Justice

वैध गर्भपात के लिये अर्जेंटीना का लम्बा संघर्ष

वर्षों के अथक अभियान के बाद गर्भपात को अंततः क़ानूनी मान्यता दिला कर अर्जेंटीना के फ़ेमिनिस्ट आंदोलनों ने एक ऐतिहासिक विजय दर्ज की।
2020 के अंत में अर्जेंटीना की सीनेट ने अंततः गर्भपात को वैधता प्रदान किये जाने के पक्ष में मतदान किया। यह ऐतिहासिक मील का पत्थर न केवल फ़ेमिनिस्ट, छात्र, और समुदाय आधारित आंदोलनों के अथक अभियानों, बल्कि अर्जेंटीना के महिला संघर्षों की लंबी ऐतिहासिक विरासत की ताक़त पर संभव हो सका।
2020 के अंत में अर्जेंटीना की सीनेट ने अंततः गर्भपात को वैधता प्रदान किये जाने के पक्ष में मतदान किया। यह ऐतिहासिक मील का पत्थर न केवल फ़ेमिनिस्ट, छात्र, और समुदाय आधारित आंदोलनों के अथक अभियानों, बल्कि अर्जेंटीना के महिला संघर्षों की लंबी ऐतिहासिक विरासत की ताक़त पर संभव हो सका।

फ़ेमिनिस्ट अभियानों की वर्षों की मेहनत की संघनित अभिव्यक्ति उस वोट में हुई। पूरे देश में लाखों की संख्या में नज़रें गड़ाये लोग, एक दूसरे का हाथ थामे, साँस रोके नतीजों का इंतज़ार कर रहे थे। जैसे ही सार्वजनिक सक्रीनों पर हरे रंग में "अनुमोदित" (अप्रूव्ड) उभरा, समवेत हर्षचीत्कार से सारा आसमान गूँज उठा।

दोस्त हों या अजनबी, सभी आँखों में हर्ष, उम्मीद, और राहत के आँसू लिये थे, कि वर्षों की मेहनत व्यर्थ नहीं हुई, एक-दूसरे को गले लगा रहे थे। हर औरत उस दिन गर्भपात अभियान का द्योतक - चटक हरे परिधान में एक बहन-एक साथी थी जिसने अपनी हिम्मत-साहस की उस विजय को अनुभूत किया था।

सीनेट में बारह घंटों की बहस के बाद, क़ानून उससे कहीं ज़्यादा अंतर से अनुमोदित हुआ जितनी उम्मीद की जा रही थी : पक्ष में 38, विरोध में 29 मत, और एक अनुपस्थित। नतीजे से अभियान के आंदोलनकारियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गयी, जिनमें से कई अर्जेंटीना की राष्ट्रीय कांग्रेस के सामने दो दिनों से डेरा डाले हुए थे। बहस के दिन तक भी जिन सीनेटरों ने अपना पक्ष घोषित कर दिया था, वे बराबर-बराबर बँटे हुए थे और चार अभी अनिश्चय की स्थिति में थे।

गर्भपात उन फ़ेमिनिस्टों, जो इसके अपराधीकरण को समाप्त किये जाने और क़ानूनी दर्जा दिये जाने की माँग कर रहे थे, और कंज़र्वेटिवों, जो इसे किसी भी क़ीमत पर स्वीकार करने को तैयार नहीं थे, के बीच लम्बे समय से सार्वजनिक बहस का विषय बना रहा। बिल के पारित होने ने इस बहस को उन हज़ारों औरतों के हक़ में हल कर दिया जो अपने शरीर पर अपने क़ानूनी अधिकार के लिये वर्षों से अथक अभियान चला रहीं थीं।

जुझारू प्रतिरोध की स्मृति

अर्जेंटीना का महिला संघर्षो का लम्बा इतिहास रहा है, हालाँकि बहुतेरे मामलों में वे खुद की पहचान फ़ेमिनिस्टों के रूप में नहीं करतीं, बावजूद इसके उनकी माँगें और राजनीतिक समझदारी आंदोलन की बुनियाद के साथ मज़बूती से जुड़ी हुईं थीं। आज की फ़ेमिनिस्ट हमारे शरीर पर हमारे अधिकार के लिये तन-मन पूरी तरह से अभियान को आगे बढ़ाने के लिये महिला संघर्षों के उन अनुभवों से सीख और प्रेरणा लेती हैं। हमारे प्रतिरोध के आदर्श और अधिकारों की माँग केवल आज के समय की देन नहीं हैं, बल्कि अतीत के संघर्षों, ख़ासकर उस पिछली सैन्य- नागरिक उन्मादी तानाशाही के बाद की बुनियाद पर बने हैं, जिसकी पहचान बर्बर सामाजिक-आर्थिक हिंसा हुआ करती थी।

प्लाज़ा डे मायो की माताओं और दादियों के प्रतिरोध की स्मृति उस क्रांतिकारी प्रक्रिया की मूलभूत आधारशिला है जो हमारे वर्तमान की पहचान है। हमारे आधुनिक इतिहास की सबसे ख़ूनी-नृशंस तानाशाही के मध्य काल में उन्होंने अद्भुत साहस के साथ अपने गुमशुदा बेटों और बेटियों की सुरक्षित वापसी की माँग की थी। उन्होंने असल (डी फ़ैक्टो) सरकार की लगातार धमकियों और आतंक-उत्पीड़न के आगे घुटने टेकने से इंकार कर दिया - अपने जुझारुपन को गोलबंद- सुदृढ़ किया, अपने आधार भूत सिद्धांतों और प्रतिबद्धताओं को पुष्ट किया, प्रशिक्षण लिया और निर्विवादित नेतृत्व बन कर आज भी अपने मानवाधिकार कार्यभारों को अथक रूप से पूरा कर रहीं हैं।

न्याय, सार्वभौमिकता और जीवन दशाओं की गुणवत्ता के संदर्भों में नब्बे दशक के वर्ष अर्जेंटीना में भयावह रूप से अनिष्टकारी थे। नवउदारवाद धनिकों के लिये मुँह माँगी मुराद बन कर आया और बाक़ी सब के लिये नितांत भुखमरी और बेरोज़गारी लाया। इसका नतीजा 2001 के भयावह सामाजिक-आर्थिक संकट में निकला। इस अवधि में, सार्वजनिक भोजन चौकों ( सूप किचन) को चलाने, बच्चों की देख-भाल करने, और सामुदायिक जीवन कार्यभारों का अपनी पूरी क्षमता से पूरा करने का दायित्व ले कर महिला कामरेडों ने निर्णायक-महत्वपूर्ण योगदान किया। उन्होंने जीवन की आधार भूत ज़रूरतों को सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी ली, पुरुष कार्यकर्ता बने और सामाजिक नेतृत्व संभाला।

उसके बाद के दशक में अर्जेंटीना में प्रगतिशील वाम- पंथ की सरकारों का शासन रहा जिन्होंने श्रमशील वर्ग की ज़रूरतों पर ध्यान दिया। सामाजिक अग्रगति की बढ़ती संभावनाओं ने लोगों के लिये तात्कालिक अस्तित्व की ज़रूरतों से आगे नयी सामाजिक संभावनाओं और राजनीतिक वैचारिकी की कल्पना कर पाना संभव बनाया।

1986 से लगातार हर वर्ष,अर्जेंटीना के महिला संगठन अपना राष्ट्रीय महिला सम्मेलन आयोजित करते आये हैं, जिसमें भाग लेने वाली हज़ारों प्रतिनिधि अपने-अपने सामाजिक क्षेत्रों में ठोस राजनीतिक कार्यवाहियों के बारे में विमर्श करती हैं। किसी भी कारण से कराये गये गर्भपात को क़ानूनी मान्यता दिलाये जाने का विचार 2003 और 2004 की बैठकों के दौरान आया। अगले साल से क़ानूनी, सुरक्षित और मुफ़्त गर्भपात अधिकार के लिये राष्ट्रीय अभियान की शुरूवात हुई जो सैकड़ों समूहों, संगठनों, और व्यक्तियों का मिलन बिंदु बना।

अभियान का मुख्य नारा है : " सेक्स शिक्षा जिससे हम निर्णय ले सकें, गर्भनिरोध जिससे हमें गर्भपात न कराना पड़े, क़ानूनी गर्भपात जिससे हम मरने न पायें"। अभियान द्वारा 2007 से लगातार छः बार चयनित गर्भपात को क़ानूनी मान्यता दिये जाने के लिये विधेयक के प्रस्ताव दिये जाते रहे जब तक कि यह चेम्बर ओफ़ डेपुटीज में अनुमोदित नहीं हो गया मगर सीनेट द्वारा 2018 में बहुत ही कम मतों के अंतर से अस्वीकार कर दिया गया।

2015 से ही, "नी ऊना मेनोस" ( Ni Una Menos) : "एक भी औरत कम नहीं" आंदोलन 'मर्दाना हिंसा' को एक गम्भीर समस्या के रूप में केंद्रित करते हुए देश भर में लाखों महिलाओं और जेंडर विद्रोहियों (dissidents) को एकजुट कर रहा है। तमाम पेशागत, राजनीतिक और स्वतंत्र क्षेत्रों की महिलाओं के समूहों ने सार्वजनिक रूप से उस सांगठनिकता का प्रदर्शन किया जिसे वर्षों से फ़ेमिनिज़्म विकसित कर रहा है। वहाँ से उन्होंने जनता के संघर्षों के वे मुद्दे तय किये जो संसद और मास मीडिया से ले कर शिक्षा व्यवस्था तक हर जगह लड़े जायेंगे।

अर्जेंटीना में हरी लहर की धूम

गर्भपात अभियान के दौरान, समूचे फ़ेमिनिस्ट फ़लक पर बहस, गर्भ के वांक्षित निरोध को क़ानूनी मान्यता दिलाये जाने पर केंद्रित थी। हालाँकि फ़ेमिनिस्ट ग्रुपों के बीच ऐसी बहुत सी बहसें हैं जो कई बार न सुलझाई जा सकने वाली लगती हैं, मगर यह वह माँग थी जिस पर सभी एकजुट हो गयीं। यह आमसहमती इतनी प्रभावशाली थी कि हज़ारों लोगों के झुंड के झुंड हरे परिधानों, पेंट और चमक में लिपटे हुए सड़कों पर इस माँग को ले कर उतर पड़े। क़ानूनी, सुरक्षित और मुफ़्त गर्भपात के अधिकार के लिये राष्ट्रीय अभियान द्वारा इस रंग को अपने अभियान की पहचान के विशिष्ट रंग के रूप में स्वीकार कर लिये जाने के बाद यह आंदोलन 'ग्रीन टाइड' के नाम से जाना जाने लगा।

इस 'हरी लहर’ में सबसे आगे नेतृत्व छात्र संगठनों और सामुदायिक आंदोलनों में सक्रिय किशोरों और युवाओं का था, विशेष कर 'विलाओं'(अनौपचारिक-अनियमित बस्तियों) के किशोर और युवा। उन्होंने अपनी सामूहिक कार्यवाहियों के ज़रिये इस अभियान को आवेग और अग्रगति दी : उन औरतों को भावनात्मक समर्थन और सम्बल दे कर जिन्हें गर्भपात की ज़रूरत थी, यौन एवं पुनरुत्पादन अधिकार की जानकारी के प्रसार के लिये 'स्पेस' उपलब्ध करा कर, और स्वयं देखभाल की व्यवस्थाओं से कष्ट में एक-दूसरे का सहारा बन कर।

2019 के चुनावों से पहले,वर्तमान राष्ट्रपति अलबर्टो फ़र्नांडेज पेरोंवाद (पेरोंवाद अर्जेंटीना का एक विशाल- वृहत्तर जन आंदोलन है जिसमें कई राजनीतिक पार्टियाँ शामिल हैं) और विभिन्न सामाजिक आंदोलनों के विस्तीर्ण फ़लक की संगठनिकताओं के वृहत्तर गठबंधन "फ़्रेंटे डे तोदोक्स" (Frente de Todxs) की तरफ़ से उम्मीदवार था। फ़ेमिनिस्ट आंदोलन के दबाव में, जो उस सामाजिक मोर्चे का बड़ा घटक था, उसने क़ानूनी गर्भपात को अपने अभियान का एक प्रमुख चुनावी वायदा बनाया।

हालाँकि कोविड-19 वैश्विक महामारी ने इस बहस को महीनों पीछे कर दिया, मगर फ़र्नांडेज गर्भपात को क़ानूनी मान्यता दिलाने के अपने वायदे से पीछे नहीं हटे। फ़ेमिनिस्ट प्रतिरोध प्रदर्शनों और क़ानून-निर्माता सांसदों के साथ बैठकों की नयी लहर के बाद, उसने निचले सदन में बहस के लिये 10 दिसम्बर,2020 की तारीख़ निर्धारित कर दी। बीस घंटों की मेराथन बहस के बाद अगले दिन सुबह 8 बजे डेपुटीज ने बिल को अनुमोदित कर दिया।

गर्भ की स्वैच्छिक समाप्ति का क़ानून, जिसे सीनेट ने 30 दिसम्बर को पारित किया, पहले 14 सप्ताह के गर्भ को किसी भी करण से गिराये जाने कि क़ानूनी अनुमति देता है। इस निर्धारित समय सीमा के बाद भी गर्भपात कराया जा सकता है यदि गर्भ बलात्कार के चलते हुआ हो, अथवा गर्भवती व्यक्ति का जीवन या संपूर्ण स्वास्थ्य ख़तरे में हो। अर्जेंटीना की सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में ये गर्भपात मुफ़्त होंगे, और स्वास्थ बीमा कंपनियों को अनिवार्य रूप से इस पूरी प्रक्रिया का संपूर्ण कवरेज देना होगा।

स्वास्थ्य पेशेवरों को ईमानदार आपत्ति का अधिकार होगा,परंतु उन्हें हर हाल में सुसंगत-तार्किक रहना होगा : उन्हें पब्लिक अस्पतालों में इस पर आपत्ति करने और फिर निजी व्यवस्था में पैसे ले कर यह काम करने की अनुमति नहीं है। यदि कोई मरीज़ गर्भपात का अनुरोध करती है, उसे अनिवार्य रूप से उसे ऐसे डाक्टर (मेडिको) को संदर्भित करना होगा जो यह काम करता हो। ईमानदार आपत्ति गर्भपात के बाद की चिकित्सा अथवा आपात मामलों में लागू नहीं होगी।

विरोध और लांछन

अर्जेंटीना के गर्भपात क़ानून की जड़ें 1921 तक पहुँचती हैं, जब गर्भ की समाप्ति के सीमित वैध प्रावधानों-रास्तों के लिये पहली बार दंडसंहिता ( पेनल कोड) में सुधार हुआ था। 2012 से, बलात्कार और उन मामलों में, जहां गर्भ के चलते गर्भवती व्यक्ति की जान अथवा सम्पूर्ण स्वास्थ्य को ख़तरा है, गर्भपात की क़ानूनी सहमति मिली। बावजूद इसके, स्वास्थ्य केंद्रों में, अक्सर गर्भवती को ऐसी बाधाओं का सामना करना पड़ता है जिनके चलते इस तत्काल आवश्यक प्रक्रिया में अनावश्यक विलम्ब होता है। स्वास्थ्य पेशेवर अक्सर ईमानदार आपत्ति का दावा करते हैं, इस बात से इंकार करते हैं कि ऐसा कोई अधिकार है भी, अथवा उस व्यक्ति को गर्भपात न कराने के लिये समझाने लगते हैं। अक्सर वे संस्थायें और कर्मचारी, जो वैधानिक फ़्रेमवर्क के अंदर गर्भपात से मना करते हैं, भारी पैसे ले कर गुप्त रूप से गर्भपात करते हैं।

गर्भवती व्यक्तियों के लिये ऐसे लांछन और अवरोध उन्हें इस काम के लिये भारी रक़म अदा करने, या फिर यदि वे पैसे का इंतज़ाम नहीं कर पाये तो नुकीली-धारदार चीजों के इस्तेमाल,पेट पर प्रहार अथवा ज़हर के ज़रिये खुद से ही असुरक्षित-ख़तरनाक गर्भपात कर लेने के लिये विवश करते हैं। गर्भपात को ले कर क़ानूनी और नैतिक निषेध गर्भपात होने से नहीं रोक पाते - वे इसे और अधिक असुरक्षित और ख़तरनाक बना देते हैं।

हालाँकि गर्भपात अभियान 15 वर्ष पहले ही प्रारंभ किया जा चुका था, अधिकतर गर्भपात-विरोधी ग्रुप 2018 की संसदीय बहस के ताप से उभरे। यह विरोध मुख्य रूप से "कान मिस हिज़ोस नो ते मेतास" (Con Mis Hijos No Te Metas) - " मेरे बच्चों के साथ दखलंदाज़ी मत करो" अभियान के रूप में सामने आया। इस अभियान के NOS, 2019 में बनी एक चरम-कंजर्वेटिव राजनीतिक पार्टी के साथ रिश्ते थे। कैथोलिक चर्च और स्वास्थ बीमा कंपनियाँ जैसे दक्षिणपंथी समूहों ने - जो अनियमित गर्भपात के चलते फ़ायदा कमाते हैं - सरकार की क़ानून बना सकने की क्षमता पर गम्भीर अवरोध खड़े किये। इनमें मतदान से पहले राजनीतिज्ञों पर इस क़दर हिंसक दबाव डालना शामिल था कि बहुतों ने मतदान के दिन तक अपने निर्णय को गुप्त रखा। क़ानून बन जाने के बाद भी ये समूह अवरोध खड़े करना जारी रखे हुए हैं : साल्ता प्रांत के फ़ेडरल कोर्ट न.2 में प्रस्तुत एक मुक़दमे में आरोप लगाया गया है कि नया पारित गर्भपात क़ानून असंवैधानिक है।

नवम्बर में, जब प्रशासन द्वारा गर्भपात क़ानून प्रस्तावित किया गया था, राष्ट्रीय सरकार ने भी एक बिल "एक हज़ार दिन की योजना" ("Thousand Days Plan") पेश किया। यह योजना गर्भ की अवधि, और बच्चे के जीवन के पहले तीन वर्षों तक सामाजिक संकट की स्थितियों में माताओं के लिये आर्थिक सहयोग का प्रावधान करती है। यह प्रावधान गर्भपात अधिकार विरोधी समूहों के इन आरोपों के प्रतिकार में लाया गया कि क़ानून निर्माता माताओं और अजन्मे शिशुओं के यौनिक और पुनरुत्पादक स्वास्थ्य की कोई चिंता किये बिना "शिशु हत्या" करना चाहते हैं। यह योजना गर्भपात पर डेपुटियों के मेराथन सेशन के तुरंत बाद 11 दिसम्बर को अनुमोदित कर दी गयी, और बिना किसी बहस-आपत्ति के।

कोविड-19 लॉक डाउन में गम्भीर पितृसत्तात्मक दमन

गर्भपात को क़ानूनी मान्यता दिलाये जाने का अभियान और इसके विरुद्ध उतनी ही तीखी कंजर्वेटिव प्रतिक्रिया को महिला समानता के वृहत्तर संघर्ष के अंग के रूप में समझा जाना चाहिये। लैटिन अमेरिका में "माचिस्ता" (मर्दाना) हिंसा की जड़ें संरचनात्मक है। वैयक्तिक आक्रमण-हिंसा को उस जटिल-अंतर्गुँथित नेटवर्क द्वारा वैधता मिलती है जो जेंडर-आधारित हीनता के विचार को सहज-स्वाभाविकता प्रदान करता है। यह जेंडर-विद्वेष अर्जेंटीना में यौनवादी अपराधों : बालिका-शिशु हत्या की भयावह संख्या, मानव तस्करी से जुड़ी गुमशुदगियाँ, ज़बरिया गर्भाधान, और परिवार के अंदर यौनिक अत्याचार-दुराचार की भयावह स्थिति से पूरी तरह उजागर है।

ये कोई अलग-थलग या अपवाद आपराधिक घटनायें नहीं, बल्कि संस्थागत पितृसत्ता और महिला-द्वेष के व्यापक-वृहत्तर व्यवस्था तंत्र 'सिस्टम' का हिस्सा हैं। सरकारें, पवित्र संस्थायें , और राज्य की दमनकारी मशीनरी इस यथास्थिति को सुरक्षित-संरक्षित रखती हैं। न्यायालयों के अपमानजनक निर्णयों में उत्पीड़ित-शिकार अपने ऊपरी रूप-पहनावों, निजी आदतों, और यौनिक रुचियों से परखे जाते हैं। क़ानून निर्माता और लोकसेवक ऐसे वक्तव्य देते हैं जो सीधे मध्य युग से निकले प्रतीत होते हैं। बाल वैश्यावृत्ति के मामलों में पुलिस के पूरे-के-पूरे जत्थे संलिप्त पाये जाते हैं।

माचिस्ता हिंसा महिलाओं के लिये ताक़त और प्राधिकार की अवस्थितियों- पायदानों तक पहुँच पाना भी असम्भव बना देती है। यह प्रतीकात्मक प्रभुत्व हमारे हर दिन के जीवन वातावरण में फलता-फूलता है : कार्यस्थलों के विश्राम कक्ष, सामुदायिक स्थल ...। औरत के व्यवहार को सहजीकरण के तमाम तरीक़ों से 'अनुशासित' किया जाता है : वे मज़ाक़- चुटकुले जो औरतों को अपमानित अथवा कमतर करते हैं, या अंतरंगताओं को ले कर बनाये-सुनाये जाते हैं, या फिर वे मज़ाक़-चुटकुले जो पहचानों- यौनिकताओं की विशिष्टताओं को अवैध- अनैतिक बताते हैं।

औरत को अनुशासित करने की पितृसत्तात्मक आकांक्षा उन रणनीतियों में भी अभिव्यक्त होती है जो फ़ेमिनिस्ट संघर्षो और माँगों को बदनाम करती हैं, और उन पर न जाने कब से पागलपन, कटुता, अथवा असहनशीलता का लेबल चस्पा करती आ रही हैं। यह उन तमाम महत्वपूर्ण जगहों से औरत को अलग-थलग कर देता है, जहां देश को दिशा देने से संबंधित फ़ैसले लिये जाते हैं और उन अधिकारों के क़ानून बनाये जाते हैं जो उन्हें सीधे प्रभावित करते हैं। "ग्लास सीलिंग" का अर्थ यह है कि ताक़त-सत्ता की पायदनें अधिकांशतः उन विपरीत-लिंगी यौनिकता वाले ( heterosexual) श्वेत मर्दों को मिलेगी जो उन भौतिक ( material) स्थितियों का फ़ायदा उठा रहे हैं जो राजनीतिक सफलता सुनिश्चित करती हैं। ये वे लोग हैं, जिन पर यह चुनने का दायित्व है कि किन क़ानूनी अधिकारों को प्राथमिकता मिलेगी और किन्हें नहीं, और यह चयन वे खुद के आत्मगत अनुभवों-पूर्वाग्रहों के आधार पर करते हैं।

कोविड-19 महामारी ने इस दमन को तमाम तरह से घनीभूत किया है। अलगाव (quarantine) के दिनों में, जब पूरा परिवार रात-दिन एकसाथ रह रह था,घरेलू श्रम कई गुना बढ़ गया। पूंजीवाद के लिये अपनी अपरिहार्य मूलभूत उपयोगिता के बावजूद, घेरेलू श्रम या तो पूरी तरह से मुफ़्त है है या फ़िर नितान्त अनिश्चित, शोषणकारी और अनियमित, और हाँ, यह श्रम ज़्यादातर औरतों द्वारा ही किया जाता है।

अलावे इसके, बहुत सी औरतों के लिये, 'क्वारेंटीन' का मतलब घर पर अपने हमलावरों और उत्पीड़कों के साथ फँसे रहना था। जब उन्होंने उन संस्थाओं की मदद लेनी चाही, जिन पर उनकी मदद का दायित्व है, उन्होंने देखा कि स्टाफ़ और कार्य क्षमता दोनो में ही बुरी तरह कटौती कर दी गयी हैं। स्वास्थ्य केंद्रो में स्टाफ़ की कटौती इतनी अधिक थी कि उपलब्ध कर्मियों पर कार्यभार बुरी तरह बढ़ गया था। उदाहरण के लिये उन मामलों में भी, जिनमे गर्भपात की क़ानूनी अनुमति थी और ऐसे गर्भपात की तुरंत ज़रूरत थी, उन्हें तमाम तरह के नौकरशाहाना विलम्ब का सामना करना पड़ रहा था जहां एक-एक पल का विलम्ब जानलेवा हो सकता था। यह तथ्य कि स्वास्थ्य केंद्रों पर इस आपात प्राथमिकता पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा था, यह दिखाता है कि गर्भवती व्यक्तियों के अधिकार कोई प्राथमिकता नहीं रखते।

जीतने के लिये अभी भी बहुत से संघर्ष हैं

यह स्वास्थ्य रक्षा कर्मियों, कार्यकर्ताओं, युवाओं, छात्रों, बेरोज़गारों और अन्य हज़ारों लोगों के अथक-प्रतिबद्ध संघर्ष के बूते ही सम्भव हो सका कि मुफ़्त, सुरक्षित और क़ानूनी गर्भपात की माँग ने पब्लिक एजेंडा का रूप लिया - और प्राधिकारियों को इस पर कार्यवाही के लिये मजबूर होना पड़ा। क़ानून के पारित हो जाने पर इस बात को नज़रअंदाज़ करना असंभव है कि यह विजय उस अनथक दबाव का प्रतिफल है जो तमाम राजनीतिक और सामाजिक मोर्चों की फ़ेमिनिस्टों द्वारा लगातार दिया जा रहा था।

अक्सर क़ानून हमारी अस्मिता की गारंटी के लिये पर्याप्त नहीं होते। हमें एक-दूसरे के साथ मिल-जुल कर काम करते रहना होगा जिससे सेक्स एजूकेशन, गर्भनिरोध, गर्भपात और गर्भवती व्यक्तियों की बेहतर देख-भाल एक सच्चाई बन सके न कि सिर्फ़ काग़ज़ी नौकरशाही की औपचारिकता बन कर रह जाय।

अब जब की गर्भपात का अधिकार क़ानून बन चुका है, फ़ेमिनिस्ट आंदोलन के सामने एक नयी चुनौती है : उन सारे आंतरिक विमर्शों का सामना करना, जिन्हें इस वृहत्तर बहस के दौर में बाद के लिये छोड़ दिया गया था, और एक बार फिर से समानता की दुनिया की राह पर अपने साझे रणनीतिक-कार्यनीतिक क्षितिज हासिल करना।

हालाँकि अभी बहुत से अधिकार हैं जिन्हें औरतों को हासिल करने की ज़रूरत है, फिर भी यह ज़रूरी लगता है कि औरतों और जेंडर स्वतंत्र लोगों के लिये रोज़गार के अवसर पर बात-विमर्श में अब कोई देर नहीं की जानी चाहिये। इस विमर्श में सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों में रोज़गार कोटा निर्धारित किये जाने के लिये दबाव शामिल है जिससे हमारा जेंडर हमारे काम के अवसरों को सीमित न कर सके। यह ट्रांस महिलाओं के लिये ख़ासकर ज़रूरी है, जो आमतौर पर श्रमबाज़ार से सबसे ज़्यादा बहिष्कृत हैं। यह देख-भाल के काम को वास्तविक काम की मान्यता दिये जाने, जिसके लिये राज्य द्वारा पारिश्रमिक - वेतन और लाभ दिया जाना चाहिये, अथवा उन लोगों को श्रम की मान्यता दिलाने, जो स्वेच्छा से यौनश्रम (वैश्यावृत्ति) में हैं, जैसे मुद्दों का भी स्वरूप ले सकता है।

इस अंतिम बिंदु ने फ़ेमिनिस्ट संगठनों में सबसे ज़्यादा विवादित- विरोधी अवस्थितियों को जन्म दिया है, जिनमें से कुछ का मानना है कि वैश्यावृत्ति के 'सिस्टम' को अनिवार्य रूप से समूल मिटा दिया जाना चाहिये न कि इसे वैधता प्रदान किया जाना चाहिये। इसके उलट, अन्य का मानना है कि सेक्सकर्म (sex work) को किसी भी अन्य श्रम की ही तरह श्रम की एक शाखा के रूप में तरह क़ानूनी मान्यता दिलाये जाने के लिये संघर्ष किया जाना चाहिये।

इन तमाम मुद्दों-सवालों मनन करते हुए उन्हें व्यवस्थित किये जाने के लिये समय की ज़रूरत है, वह समय, जो गर्भपात को क़ानूनी मान्यता दिलाये जाने में अपनी पूरी ऊर्जा राजनीतिक अखाड़े में लगा दिये जाने के चलते अभी तक हमारे पास नहीं था। अब जब कि हमने इसे हासिल कर लिया है, हम सब जानते हैं कि यह सारा त्याग-बलिदान एक ऐतिहासिक मील का पत्थर बन चुका है। मगर अभी भी ऐसे बहुतेरी लड़ाइयाँ लड़ी और जीती जाने के लिये बची हैं, जब तक कि हम सब महज़ औरत बने रहने के ख़तरे से पूरी तरह बाहर नहीं हो जाते।

वर्जीनिया तोग्नोला एक पत्रकार, "मूविमेंटो पोपुलर नुयेस्त्रामेरिका" आंदोलन की मिलिटैंट और राजनीति, संस्कृति, मानवाधिकारों व पर्यावरण अधिकारों पर केंद्रित स्वतंत्र लेखिका है।

Photo: Campaña Nacional por el Derecho al Aborto Legal Seguro y Gratuito

Available in
EnglishSpanishHindiPortuguese (Brazil)GermanItalian (Standard)French
Author
Virginia Tognola
Translators
Vinod Kumar Singh and Surya Kant Singh
Date
05.03.2021
Source
Original article🔗
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