संपादकीय टिप्पणी: यह लेख मोंडोवेइस में प्रकाशित पूर्ण लेख का एक सारांशित संस्करण है, जो यहां उपलब्ध है।
सिर्फ दो हफ्तों में, क़ब्ज़ाकृत पूर्वी यरुशलम के शेख जराह बस्ती से 27 लोगों के छह फिलिस्तीनी परिवारों को उनके घरों से बाहर निकाल कर सड़क पर फेंक दिया जाएगा, और इज़रायली बाशिंदों से बदल दिया जाएगा।
क़ब्ज़ाकृत पूर्वी यरुशलम में शेख जराह बस्ती के परिवारों का भविष्य तात्विक रूप से शिलालेख की तरह निश्चित है: एक इज़रायली जिला अदालत ने इस साल फरवरी में उनकी अपील खारिज कर के उन्हें 2 मई, 2021 तक अपने घरों को खाली करने का आदेश दिया है ।
अगर परिवार अपने घरों को नहीं छोड़ते हैं, जहां वे 65 साल के अधिकांश समय से रहते आए हैं, तो उन्हें हथियारबंद इज़रायली अधिकारियों द्वारा जबरन हटा दिया जाएगा, जैसे पहले उनके पड़ोसियों को हटाया गया था।
अगले दो हफ्तों में अपने घर को इज़राइली बसने वालों का कब्ज़ा होने से बचाने के लिए अल-कुर्द, अल-कासिम, स्काफी और अल-जाउनी परिवारों के लिए एकमात्र उम्मीद इज़रायली सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करना बची है - एक ऐसी अदालत, जिसका लंबे समय से इतिहास यरुशलम जैसी जगहों में शहर के फ़िलिस्तीनी नागरिकों के अधिकार को दमित करते हुए इज़रायली सेटलर कोलोनियों की परियोजनाओं की स्वीकृति की पुष्टि के हक में फैसले सुनाने का रहा है।
वर्षों से इज़रायली अदालत के आदेशों के अनुसार, दर्जनों परिवारों, उनके रिश्तेदारों, दोस्तों, और पड़ोसियों को बेदखल कर के इज़रायली बसने वालों से प्रतिस्थापित किया जाता रहा है।
एक इज़रायली सेटलर परिवार ऐसे फिलीस्तीनी घर के प्रवेश द्वार पर बैठा है जिस पर इज़रायली सेटलर गुटों द्वारा कब्ज़ा कर लिया गया है (फोटो: सालेह ज़िगहारी
2 मई की निर्धारित निष्कासन समय सीमा 22 वर्षीय लेखक और कवि मोहम्मद अल कुर्द के दिमाग पर भारी बोझ बन गई है। अल कुर्द सिर्फ 11 साल के थे जब इनके परिवार को सामान के साथ सड़क पर फेंक दिया गया था, और इनके घर के आधे हिस्से पर एक इज़रायली सेटलर गुट ने कब्ज़ा कर लिया था।
"मुझे अभी भी उस दिन वहाँ पर मौजूद समूचा इज़रायली पुलिस बल याद है जो आवाज़ बम चला रहे थे और विरोध का प्रयास करने वालों को पीट रहे थे । उन्होंने हमारे इलाके को शहर के बाकी हिस्सों से पूरी तरह से अलग कर दिया था, किसी को भी अंदर आने या बाहर जाने की अनुमति नहीं थी।”
उन्होंने कहा, "मुझे याद है, जो सामान उन्हें नहीं चाहिए था उसे उन्होंने बाहर फेंक दिया , और जो कुछ भी हमारा उन्हें चाहिए था, रख ले रहे थे।” एक छोटा सा फर्नीचर जो क़ब्ज़ा करने वालों ने रखा - अल-कुर्द की छोटी बहन का पालना था, जिसे उन्होंने अगले दिन सामने के आहाते में बोनफायर के रूप में जला दिया ।
इज़रायली सेटलरों द्वारा कब्ज़ा किये गए एक फिलिस्तीनी घर के ऊपर हिब्रू निशान (फोटो: सालेह ज़िगहारी)
जैसे जैसे उनके निष्कासन की समय सीमा पास आ रही है, शेख जराह के बचे फिलीस्तीनी निवासी #शेख़ ज़ाराह बचाओ अभियान के रूप में वह सब कुछ करने की कोशिश कर रहे हैं जिससे वे अपने मामले पर अंतरराष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करा सकें, और साथ ही इज़रायल पर अंतरराष्ट्रीय दबाव दिला सकें।
यह हैशटैग हफ्तों से फिलीस्तीनी सामाजिक मीडिया पर पूरी तरह से छाया हुआ है। इलाके के कार्यकर्ता अंतरराष्ट्रीय नेताओं और पैरोकारों से इज़राइल पर दबाव बनाने का आह्वान कर रहे हैं जिससे कि वह उस महाविनाश को बन्द करे जिसे फ़िलिस्तीनी कार्यकर्ता "चल रहे नकबे" का नाम देते हैं [महाविनाश तबाही के लिए अरबी शब्द जो 1948 में इज़राइल की स्थापना के बाद अपने घरों से फिलीस्तीनी लोगों के विशाल पैमाने पर बेदख़ली के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
स्थानीय फिलीस्तीनी निवासियों द्वारा प्रतिदिन आयोजित किये जा रहे आसपास की बस्तियों में पैरोकारी दौरों,और साप्ताहिक धरनों - प्रदर्शनों ने हाल के सप्ताहों में शेख जराह की स्थिति की ओर लोगों का और अधिक ध्यान आकर्षित किया है ।
पिछले हफ्ते, इज़रायली प्राधिकारियों द्वारा एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को हिंसक रूप से दबाने की खबर सुर्खियों में आयी।, इस प्रदर्शन में बहुत से प्रदर्शनकारियों के साथ इज़रायली संसद सदस्य ओफर कैसिफ, फिलिस्तीनी बहुल संयुक्त सूची के एक यहूदी सदस्य को भी चोटें आयी ।
इस साल फरवरी में, अल-कुर्द ने जेरेमी कॉर्बिन सहित हाउस ऑफ कॉमन्स ब्रिटेन के 81 क़ानून निर्माताओं के साथ सफलतापूर्वक पैरवी करते हुए शेख जराह की स्थिति पर एक ज़रूरी आपात पत्र पर हस्ताक्षर के लिए सहमत कराया।
मार्च में, 14 फिलिस्तीनी और क्षेत्रीय मानवाधिकार संगठनों के एक समूह ने पूर्वी यरुशलम, विशेषकर शेख़ ज़ाराह में जबरन बेदखली पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष कार्यवाही के लिए एक तत्काल अपील प्रेषित करते हुए इस परविशेष रूप से प्रकाश डाला कि कैसे इज़राइल ने पूर्वी यरुशलम पर कब्ज़ा करने के लिए इज़रायली घरेलू क़ानून का गैरकानूनी उपयोग किया है, जिसके परिणामस्वरूप अदालत के फैसले लगभग हमेशा इज़रायली सेटलर संगठनों के पक्ष में ही आते हैं ।
मोहम्मद अल कुर्द ने मोंडोवेइस से कहा कि उनका मानना है कि एक गलती जो अक्सर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और दर्शकों द्वारा की जाती है जब वे शेख जराह के बारे में रिपोर्टिंग करते हैं और पढ़ते हैं, वह यह है कि वे क़ब्ज़ाकृत पूर्वी यरुशलम में फिलीस्तीनी समुदायों पर इज़रायली न्यायिक प्रणाली की वैधता स्वीकार कर लेते हैं।
उन्होंने अनगिनत मानवाधिकार समूहों के बयानों को दोहराते हुए कहा, “अंतर्राष्ट्रीय कानून के तहत इजरायली न्यायिक प्रणाली का क़ब्ज़ाकृत पूर्वी यरुशलम पर कोई कानूनी प्राधिकार नहीं है, फिर भी हमें इसके अधीन रखा गया है।"
अल-कुर्द ने कहा, हम कब्ज़ा करने वालों के खिलाफ लड़ रहे हैं, लेकिन इसी के साथ हमें एक सेटलर - कालोनियल अदालत, न्यायाधीश और ज्यूरी का भी सामना करना पड़ रहा है।"
अल-कुर्द का कहना है कि अपनी पैरोकारी के माध्यम से उन्होंने जो सबसे बड़ा संदेश देने की कोशिश की है वह यह है कि शेख जराह में जो कुछ हो रहा है, उसका मुकाबला केवल उच्च राजनीतिक और कूटनीतिक स्तर पर ही किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, "मैं इज़रायली अधिकारियों के ख़िलाफ़, बिना किसी ठोस कार्यवाही के खोखले निंदा पत्रों से थक चुका हूं।" शेख जर्राह के लोगों को सचमुच में बचाने के लिए दृढ़ राजनीतिक अवस्थिति के कदम लेने की ज़रूरत है, और इज़राइल जो कुछ कर रहा है उस पर प्रतिबंध लागू किए जाने की ज़रूरत है।"
शेख जर्राह में अरबी में लिखी इबारत “हम नहीं जाएंगे” (फोटो: सालेह ज़िगहारी)
" हो यह रहा है कि एक सामूहिक बस्ती के रूप में, हम कब्ज़ा करने वाले उन सेटलर संगठनों के हाथों जबरन विस्थापन और बेदख़ली के ज़रिए अपने घरों को खो रहे हैं जो राज्य की पूरी मिलीभगत के साथ यह काम कर रहे हैं।"
अल कुर्द ने कहा कि उसे नहीं लगता कि शब्द ' रंगभेद ' शेख जराह में जो हो रहा है उसका वर्णन करने के लिए पर्याप्त है । वे कहते हैं कि शब्द "जातीय सफाया" यहाँ इस बस्ती में जो कुछ हो रहा है उसकी वास्तविकता को बेहतर समेटता है।
उन्होंने कहा, "यह एक नक्बा है," जो अन्य बस्तियों और समुदायों में उसी तरह से जारी है जैसे 1948 में हुआ था। हम अपनी बस्तियों का अपनी आंखों के सामने नामोनिशान मिटाये जाते देख रहे हैं।
अल कुर्द ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी आशंका में से एक यह है कि 10 साल में, जब वह इस बस्ती से गुजरेंगे, जिस जगह में वह बड़े हुए थे उसके कोई भी अवशेष नहीं पायेंगे ।
उन्होंने कहा, "अगर ये कब्ज़ा करने वाले संगठन सफल होते हैं, तो हम अपने पड़ोस से पूरी तरह से हाथ धो बैठेंगे और केवल क़ब्ज़ा की हुई सेटेलमेंट बस्तियों को ही देख पाएंगें। "शेख जराह के बारे में लोग केवल एक सुदूर स्मृति अवशेष के रूप में ही लिख पाएंगें।"
"मैं चाहता हूं कि दुनिया को पता चले कि चाहे जो भी हो जाए, हम शत प्रतिशत अपनी प्रतिबद्धता और इस ऐतिहासिक सच पर दृढ़ रहेंगे कि यह हमारी भूमि है। हम तब तक नहीं जाने वाले जब तक हमें हमारे घरों से ज़बरदस्ती घसीट कर बाहर नहीं कर दिया जाता।”