संपादक का नोट: हिंदुस्तान उस चीज की चपेट में है जिसे केवल इस्लामोफोबिया के राज्य-स्वीकृत अभियान के रूप में वर्णित किया जा सकता है। हाल के उदाहरणों में शामिल हैं: राज्य-स्तरीय कानून ऐसे व्यक्तियों को निशाना बनाते हैं जो अपने इच्छा से धर्म बदलते हैं या अंतर-धार्मिक विवाह करते हैं; निर्दिष्ट प्रार्थना स्थलों पर नमाज अदा करने वाले मुसलमानों के साथ हिंसात्मक भाषा का इस्तमाल और छेड-छाड़; मुस्लिमों को सामाजिक और आर्थिक तरीको से बहिष्कृत करने का प्रयास; साथ ही कत्तरवादी हिंदू धार्मिक समूहों द्वारा हिंसा के लिए सामूहिक आह्वान, सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं; आदि। जाहिर तौर पर, हिजाब पहनने के आधार पर स्कूल और कॉलेज परिसर से मुस्लिम महिला छात्रों का बहिष्कार, भारतीय सार्वजनिक जीवन से मुसलमानों को हिंसक तरीक़े से बाहर करने के षड्यंत्र का हिस्सा है।
हम कर्नाटक में कई कालेजों के हिजाब पहनने के प्रवेश को रोकने के फैसले की कड़ी निंदा करते हैं! यह अलपसंख्यक की आक्रामक पुलिस वयवस्था में एक और व्रद्धि है जो भाजपा के तहत सामान्य हो गयी है! गोमांस पर प्रतिबंध लगाने से लेकर नमाज अदा करने वालों में व्यवधान, धर्मांतरण विरोधी कानून पारित करने और सीएए- एनपीआर पारित करने से लेकर केन्द्र में बहुसंख्यक हिन्दु सरकार सांप्रदायिक तनाव को भडकाने और भेदभाव करने के लिए हर संभव कोशिश कर रहीहै! भारत में मुसलमानों के लोकतांत्रिक अधिकार!
हम कर्नाटक में विरोध कर रही महिला छात्रों का पूरा समर्थन करते हैं, जिनके शिक्षा के अधिकार को उनकी धार्मिक पहचान और अभिवयक्ति के आधार पर नकारा नहीं जा सकता है! इस तरह की कार्रवाई शैक्षिक संस्थानों की बहुल प्रकृति को गहरा नुकसान पहुंचाती हैं और लोगों को उनके धर्म के आधार पर अलग अलग शैक्षणिक संस्थानों में धकेल देती है!
दक्षिणपंथी समूहों द्वारा उकसाए गए आज के अत्याधिक इसलामोफोबिक राजनीतिक माहौल के संदर्भ में, हिजाब पहनने का दावा अलपसंख्यक धार्मिक पहचान के अधिकार को बनाए रखने और सार्वजनिक तरिके से उस अधिकार को प्रदर्शित करने का प्रतीक बन जाता है! इसलिए, शैक्षिक और सार्वजनिक स्थानो पर हिजाब पहनने के लिए मुस्लिम महिलाओं के संघर्ष को सत्ता में बैठे लोगों के फरमान के खिलाफ एक बहादुर संघर्ष के रूप में देखा जाना चाहिए!
अपने अधिकारों पर हमले का मुकाबला करने के लिए हाशिये पर मौजूद समुदायों ने अपनी पहचान के आधार पर खुद को लामबंद किया है!
भारत में हिजाब पहनने के अधिकार के लिए संघर्ष कई महिलाओं के हिजाब या बुर्का नहीं पहनने के संघर्ष के साथ मौजूद है! महिला आंदोलन लैंगिक समानता, परिवार और समुदाय से महिलाओं की सवायत्तता और सभी समुदायों के लिए धार्मिक पहचान के मार्कर के रूप में महिलाओं के शरीर के उपयोग के सवाल से जुडा हुआ है!
जबकि इस विषय पर कई अलग अलग राय हैं, मूलभूत अंतर यह है कि.. सुधार, पसंद और स्वतंत्रता के बारे में इन बातचीत में कहीं भी, राज्य या बाहरी एजेंसीयों द्वारा महिलाओं के शरीर पर नियम लागू करने का विकल्प प्रगतिशील विकल्प के रूप में सामने नहीं आता है! जब महिलाएं समुदाय और धार्मिक प्रथाओं की अपनी आंतरिक आलोचना के कारण बुर्का पहनने के खिलाफ संघर्ष करती है, तो इसका एक पूरीतरह से अलग महत्व है! हिजाब या बुर्का पहनने या न पहनने का निर्णय स्वयं मुस्लिम महिलाओं द्वारा किया जाना चाहिए, जिन्हें एक बहुसंख्यक हिन्दु राज्य और अपने स्वयं के बदनाम समुदाय और सार्वजनिक स्थानो के बीच एक जटिल दुनिया पर बातचीत करनी होती है!
हम कर्नाटक के उन सभी कालेजों का आह्वान करतेहै जिनहोने मुस्लिम छात्राओं के लिए अपने दरवाजे बंद कर लिए है कि वे उनको फिर से खोलें और अपने अन्यायपूर्ण नियमों को वापस लें!
बेबाक कलेक्टिव एक स्वायत्त महिला समूह है जो सबसे वंचित महिलाओं के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं।
हसीना खान एक लोकप्रिय, साहसी और प्रभावी कार्यकर्ता हैं जो सामान्य रूप से महिलाओं के अधिकारों और विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के मुद्दों और प्रश्नों को उठाती हैं। वह बेबाक कलेक्टिव (वॉयस ऑफ फियरलेस) की संस्थापक सदस्य और पीआई काउंसिल की सदस्य हैं।