जब तक हम खुद पूंजीवादी व्यवस्था को ख़तम नहीं करेंगे, तब तक मानव जाति एक मूलभूत दुविधा का सामना करती रहेगी । एक तरफ हम ऐसी नई महामारी का सामना कर रहे हैं जो हमें जीवन रक्षण के लिए “सामाजिक दूरी” जैसे उपाय करने पर मजबूर कर रही है | समकालीन पूंजीवादी अर्थव्यवस्थाओं में हमारी प्राकृतिक प्रणालियों के विनाश का एक परिणाम स्वरूप जैविक तंत्र में आए "मेटाबोलिक रिफ्ट" की वजह से नए रोग जनक विषाणु जन्म ले रहे हैं । दूसरी ओर, प्रजातियों के विकास और सामाजिक अस्तित्व को कायम रखने लिए हमारा नज़दीक आना और रहना निश्चित हैं क्योंकि प्रजनन के लिए निकटता जरूरी हैं ।
इससे उभरता हुआ रुझान है सामाजिक नियंत्रण वर्धित शासन को अपनाना । पूँजीपति वर्ग और उसके कुलीन, डिजिटल बाधाओं द्वारा उत्पादकों से खुद को अलग करने की योजना बना रहे हैं। वे श्रमिकों की स्थायी निगरानी कर संक्रमितों को छांट रहे हैं और ऐसा करके उत्पादन के पूंजीवादी दृष्टिकोण से उत्पादन के पहियों को चालू रखे हुए हैं। दूरस्थ कार्य, दूरस्थ ख़रीददारी, दूरस्थ प्रशिक्षण और शिक्षा, घरों को शून्य लागत पर शोषण करती हुई दुकानों में बदल रहे है। वैश्विक पूंजीवाद के क्षितिज पर नए दमनकारी शासनो का जाल बढ़ रहा है।
लेकिन मज़दूर विरोध करेंगे। श्रमिक वर्गों की नज़र में, इस तरह के शोषण और राज्य दमन अब भी उतने ही असहनीय हैं जितना कि वे महीनों पहले थे। हो सकता हैं की महामारी के दौरान श्रमिक वर्गों की पीड़ाओं की वजह से शासक वर्गों की नजर में लोगों के "मूल्य" की समझ बढ़ी हो । लेकिन सरकारी प्रयोजन से, बेबस और कमजोर लोगो की कीमत पर, महामारी को बढ़ावा देकर ‘हर्ड इम्युनिटी” हासिल करने के प्रयासों के तहत "मानवता" की वो धनी मध्यवर्गीय कल्पना भी ढह गई है। दुनिया भर में मुनाफ़े पर आधारित इस आर्थिक शासन एवं पूंजीवादी वर्ग के वैचारिक अधिपत्य को जन-स्वास्थ्य संकट के इस समय में सामाजिक ज़रूरतों पूरी करने में विफल होने से गहरी चोट पहुंची है।
व्यक्तिगत देश एवं पूरी दुनिया के इस विरोध के परिणाम पर हीं भविष्य टिका है | इतिहास का कोई “निरंकुषित शासन " हमारे पक्ष की जीत की गारंटी नहीं देता है। मानवता अभी भी पूंजीवाद के दायरे में रह सकती है और इसके परिणामस्वरूप उसकी प्राकृतिक व्यवस्था नष्ट हो सकती हैं | किंतु प्रयास कभी व्यर्थ नहीं होते। उनके परिणाम किसी भी रूप में मौजूद रहते हैं। श्रमिक वर्ग के लोगों के सार्वजनिक हितों के इतिहास के पुनर्निर्देशन की कल्पना, इच्छाशक्ति और कार्य करने का यही सही समय है।
इसका तात्पर्य है कि दुनिया की प्रगतिशील ताक़तों के बीच अंतर्राष्ट्रीय एकता और विविध सहयोग । आज के अंतर्राष्ट्रीयवादी दृष्टिकोण को केवल व्यक्तिगत संघर्षों के बीच एकजुटता के साथ पर्याप्त नहीं होना चाहिए, बल्कि स्थानीय और वैश्विक स्तर पर स्थायी लाभ प्राप्त करने के लिए संयुक्त संघर्ष के तरीके भी विकसित करने चाहिए।
हम मानते हैं कि टायप एर्दोआन के अत्याचार और उसकी तुर्की-इस्लामी विचारधारा वाली तानाशाही के खिलाफ हमारी लड़ाई में हम पूरे यूरोप और अमेरिका में फासीवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं। अपने इस्लामोफोबिक बयानबाज़ी के बावजूद, यूरोप की दक्षिणपंथी ताक़तें, यूरोप, एशिया और अमेरिका में लोकतांत्रिक और अंतर्राष्ट्रीयवादी मूल्यों को कमजोर करने के लिए एर्दोआन के साथ एकजुट हो रही हैं। यूरोप और उत्तरी अमेरिका की लोकतांत्रिक ताकतों की आलोचनाओं का सामना करने में नाटो गठबंधन की "तुष्टीकरण" नीतियों से एर्दोआन को हमेशा फायदा हुआ है। इसलिए, यहाँ का एक मजबूत लोकतांत्रिक और सामाजिक आंदोलन, दक्षिणपंथ के उदय का मुकाबला करने के लिए हर जगह अतिरिक्त आयाम साबित होगा |
हम दृढ़ता से मान रहे हैं कि आतंरिक अत्याचारी शासन और बाहरी साम्राज्यवादी हमलो से बचने के लिए दुनिया के लोगों, श्रमिको और दबे-कुचले लोगों की अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता हीं एक मात्र उपाय हैं | एक समान, स्वतंत्र और न्यायपूर्ण दुनिया के निर्माण के लिए एक दूसरे को सुनने, समझने और साथ मिल कर कार्य करने की आवश्यकता को हमें एक पल के लिए भी नहीं भूलना चाहिए।
हम पहले से ही एचडीपी की चौथी कांग्रेस के फैसलों से लैस हैं, ताकि मजबूत अंतर्राष्ट्रीयवादी संबंधों को स्थापित करने, अंतरराष्ट्रीय एकजुटता नेटवर्क विकसित करने और अंतरराष्ट्रीय संघर्ष का हिस्सा बनने के लिए निर्णायक कदम उठाए जा सकें। इन फ़ैसलों के अनुसार ही एक ऐसे संगठन का विकास करना है जो दुनिया भर में सामाजिक और राजनीतिक लोकतांत्रिक आंदोलनों और संघर्षों को बढ़ावा दे |
हम वैश्विक स्तर पर सामाजिक संघर्ष के सबक को नई नीतियों और प्लेटफार्मों के आधार के रूप में देखते हैं, जिन पर भविष्य के लिए चर्चा की जा सकती है। इस दृष्टिकोण के साथ, हम दुनिया भर में प्रतिरोध आंदोलनों और संघर्षों को एक साथ लाने और उन प्लेटफार्मों को बनाने की दिशा में काम करेंगे जहां वे एक दूसरे के साथ आदान-प्रदान करेंगे।
प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल के उन सिद्धांतों का हम पूरा समर्थन करते हैं और अपने काम में पालन करते हैं जिनमे लोकतंत्रीय, स्वायत, न्यायसंगत, समतावादी, मुक्त, एकजुट, स्थायी, पारिस्थितिक, शांतिपूर्ण, उत्तर-पूंजीवादी, समृद्ध और अनेकोचित दुनिया की कल्पना हैं |