Labor

सैन्य तख्तापलट के विरुद्ध म्यांमार के श्रमिक आम हड़ताल पर हैं

युवा महिला गारमेंट वर्कर म्यांमार सैन्य तख्तापलट के प्रतिरोध में एक आम हड़ताल में निभाई गयी अपनी निर्णायक नेतृत्वकारी भूमिका पर बात रख रही हैं।
22 फरवरी को, सैन्य तानाशाही के खिलाफ बढ़ते हुए आक्रोश के आवेग की परिणति राष्ट्रव्यापी हड़ताल में हुई जिसके केंद्र में गारमेंट वर्कर थे। बर्बर दमन के बावजूद, जिसमें दर्जनों प्रतिरोधकर्ता मारे गए, सेना द्वारा तख्तापलट के विरोध में कामगारों के नेतृत्व में आंदोलन पूरे देश को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। हमने तीन महिला गारमेंट कामगारों से बातचीत की जिन्होंने इस महीने की शुरुआत में एक और आम हड़ताल को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

म्यांमार की नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी (एनएलडी) को पिछले महीने सैन्य तख्तापलट में सत्ताच्युत कर दिए जाने से कुछ दिन पहले, जैकोबिन ने फेडरेशन ओफ़ जनरल वर्कर्स म्यांमार (एफजीडब्लू एम) के प्रमुख, मा मोइ सांद्रा मिंत का साक्षात्कार लिया था। उस समय तक, हम मोइ के नेतृत्व में संगठित युवा महिला गारमेंट कामगारों की उस भूमिका के बारे में नहीं जानते थे जो वे तख्तापलट-विरोधी प्रतिरोध में निभाने वाली थीं।

मगर आगे आने वाले दिनों में, जैसे-जैसे काम रुका, बहिर्गमन, और मार्चों ने सड़कों को गुंजाना शुरू किया, गारमेंट कामगारों की भूमिका सैन्य शासन के खिलाफ निर्णायक रूप से महत्वपूर्ण होती गयी। 22 फरवरी को आक्रोश के इस बढ़ते हुए आवेग की परिणति राष्ट्रव्यापी आम हड़ताल में हुई जिसके केंद्र में गारमेंट कामगार थे। वे आंग सान सू की सरकार की बहाली की मांग कर रहे थे (जो रोहिंग्या मुसलमानों के जातीय सफाये का अनुमोदन करने के बावजूद सैन्य शासन के अंत और श्रमिक अधिकारों के विस्तार के चलते बर्मी कामगारों के बीच अभी भी लोकप्रिय है)।

म्यांमार का विशाल गारमेंट उद्योग है, जिसने पिछले दशक में छह लाख कामगारों वाले उद्योग के रूप में विस्तार किया है, और हाल के वर्षों में यह अचानक (वाइल्ड कैट) हड़तालों और जुझारू श्रम सांगठनिकता के चलते प्रभावित हुआ है। अब कामगार अपने वर्षों के श्रम सांगठनिकता के अनुभवों से हासिल संघर्ष के दांव-पेंचों को सैन्य शासन की वापसी के खिलाफ संघर्ष में इस्तेमाल कर रहे हैं।

उत्पादन और वितरण के केंद्रों पर गोलबंदी, और समूचे राष्ट्र की गतिविधियों को जाम कर देना ही वह अकेली उम्मीद हो सकती है जो सेना को वार्ता के टेबल पर आने के लिए मजबूर कर सके। क्या कामगार हड़ताल जारी रखते हुए अपनी आधारभूत ज़रूरतें हासिल करते रह सकेंगे? इस पर तख्तापलट-विरोधी आंदोलन की सफलता या असफलता का भविष्य निर्भर करता है। कामगार यूनियनों और फेडरेशनों ने अब तक कुछ हद तक सफलता के साथ, मकान मालिकों को हड़ताली कामगारों से किराया वसूली रोके रखने का आह्वान किया है। यूनियन ने नॉर्थ फेस और एच&एम जैसे अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों का भी आह्वान किया है कि वे फैक्ट्रियों पर उन लोगों को काम से न निकाले जाने का दबाव बनाएं जो आंदोलन में भागीदारी के चलते काम पर नहीं जा पा रहे हैं।

27 फरवरी की शाम को, जैकोबिन की मुलाकात श्रम सांगठनिकताओं के आधिकारिक रूप से प्रतिबंधित हो जाने के ठीक बाद एफजीडब्लूएम की मा एई एई फ्यू और मा तिन तिन वाई से हो गयी। सत्ता ने अगले दिन आज तक का सबसे खूनी-आतंकी दमन किया। 28 की रात होने तक कम से कम अठारह लोग मारे जा चुके थे, और आसमान में नया नारा "मेरा सर रक्तरंजित ज़रूर है, मगर झुका हुआ नहीं है" गूंज रहा था।

दमन के हिंसक आतंक और बर्बरता के लगातार बढ़ते जाने के बावजूद प्रतिरोध थमने या धीमे पड़ने का नाम नहीं ले रहे। 3 मार्च को और अड़तीस प्रतिरोधकर्ताओं का कत्ल कर दिया गया। प्रतिरोध करने वालों की हत्या अब लगभग रोज़ की घटना बनती जा रही है। 8 मार्च को, एक और आम हड़ताल के पहले दिन की शाम को, हम मा मोई सांदर मिंत से मुलाकात करने में सफल रहे, जिसने अपने कामरेडों के साथ हमारे सवालों का जवाब दिया ।

एमएच/एनएच : कैसा लगता है आप को यह अनुभव करते हुए कि गारमेंट कामगार उन कुछ पहले लोगों में थे जो तख्तापलट के खिलाफ हड़ताल में उतरे ?

एमईईपी : मेरे पास अपनी भावना को व्यक्त करने के लिये उपयुक्त शब्द नहीं हैं।मैं अपने काम से बहुत संतुष्ट महसूस करती हूँ।गारमेंट कामगारों ने प्रतिरोध की चिंगारी जगाई है।

एमएमएसएम : लोगों को हम पर गर्व है। हड़ताल के पहले दिन, कामगार अपने-अपने लंच के साथ आए थे। बाद में उन्हें इसकी ज़रूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि लोग खुद उन्हें खाना दे रहे थे।

एमएच / एनएच : वर्करों पर इस तख्तापलट का क्या प्रभाव पड़ेगा ?

एमईईपी : एनएलडी ने श्रम के लिए कोई सम्पूर्ण संरक्षण नहीं दिया था, मगर फिर भी (इस दिशा में) कुछ महत्वपूर्ण विकास हुए थे। इससे हम लोगों में अपने वेतन में सुधार की उम्मीद जगी थी।

एनएलडी के सत्ता में आने से पहले, हम यह तक नहीं जानते थे कि श्रम कानून अथवा श्रम अधिकार होते क्या हैं। किसी भी शिकायत पर नियोजकों द्वारा हम लोगों को मनमाने ढंग से निकाल दिया जाता था।

सैन्य तानाशाही में, हमारे श्रम अधिकारों का हनन होगा। हम तानाशाही को बिल्कुल भी मंज़ूर नहीं कर सकते। अगर हम लोग हड़ताल और प्रतिरोध करने के चलते फैक्ट्री द्वारा डिसमिस भी कर दिए गए, तब भी हम अंत तक लड़ेंगे।

एमटीटीडब्लू : हम पूरे देश के लिए लड़ रहे हैं। यदि सेना की तानाशाही जीत जाती है, कोई लेबर यूनियन नहीं रहेगी। और यदि लेबर यूनियन रह भी गयीं तो वे वास्तविक लेबर यूनियन नहीं रहेंगी। सरकार हर मामले में हस्तक्षेप करेगी और यूनियन केवल दिखावे के लिए रहेगी।

एमएमएसएम: कामगार जनतंत्र चाहते हैं क्योंकि हम सोच सकते हैं, और हम निष्क्रिय नहीं हैं। हमें कामगारों के अधिकारों- संरक्षण और लाभों की मांग करने की आजादी चाहिए। यह केवल जनतंत्र ही दे सकता है।

एमएच/एनएच : हड़ताल की सबसे पहले किस तरह से गोलबंदी हुई थी ?

एमईईपी: हमने सभी कामगारों की मीटिंग आयोजित की और श्रम अधिकारों के बारे में बातचीत शुरू की, वे अधिकार जो हम तानाशाही के अंदर खो रहे हैं।

5 फ़रवरी को, कामगारों ने मार्च निकालने का निर्णय लिया। हमारा सामना पुलिस से हुआ। मैं बहुत डर गयी थी, मगर मैंने जनता के बीच वह स्वीकृति भी देखी-महसूस की जिसने हम लोगों में अपने बहुत महत्वपूर्ण होने की भावना भरी। मैं कामगारों के लिए जनता का समर्थन देख कर भाव विह्वल हो कर रो पड़ी। जब हम अपने हॉस्टल वापस आए, पुलिस फैक्ट्री के सामने खड़ी थी और हमसे पूछने लगी कि नेता कौन है ? इसलिए अभी भी मैं छुप कर ही काम कर रही हूँ। सभी यूनियन करने वाले भूमिगत हैं।

एमटीटीडब्लू : शुरूवात में हमने 1 फरवरी को एक आपात बैठक बुलाई। 5 फरवरी को, हमने फैक्ट्री के अंदर अभियान शुरू किया। हमने राष्ट्रीय गीत के साथ-साथ इतिहास व 88 की क्रांति के प्रसिद्ध गीत भी गाए।

कामगारों ने अपने कपड़ों पर एक लाल रिबन लगाया। सभी फैक्ट्री कर्मचारियों, यहाँ तक कि ऊँची पोजीशन वालों ने भी भागीदारी की। एकमात्र मुश्किल यह थी कि, हमारे पास पर्याप्त लाल कपड़ा नहीं था, इसलिए हमें अपनी फ़ैक्ट्री से ही लाल कपड़े और उसे काटने के लिए फैक्ट्री कटर का इस्तेमाल करने का अनुरोध करना पड़ा। आम तौर पर लंच अवकाश तीस मिनट का होता है। फैक्ट्री यूनियन ने घोषणा की कि कामगारों को अपना लंच दस मिनट में खत्म कर के बाक़ी के बीस मिनट अभियान में लगाना चाहिए।

हमने 6 फरवरी को छात्रों जैसे अन्य समूहों के साथ मिल कर प्रतिरोध प्रदर्शन करने का फ़ैसला लिया। हमने सागैंग औद्योगिक जोन की सड़क पर धरना दिया, म्यांमार के केंद्रीय बैंक और आईएलओ (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन) के दफ्तर की ओर मार्च किया, और ब्रांडों पर दबाव बनाया।

हलैंग थरयर में करीब तीन सौ फैक्ट्रियां हैं। लगभग सभी फैक्ट्रियों ने भागीदारी की। जहां फैक्ट्री के अंदर यूनियन थी, यूनियन ने हड़ताल की गोलबंदी की और सभी वर्करों ने इसमें भागीदारी की। जिन फैक्ट्रियों में यूनियन नहीं थी, वहाँ के वर्करों ने व्यक्तिगत रूप से छुट्टी ले कर प्रतिरोध प्रदर्शन में भाग लिया। इसलिए भारी भीड़ हो गयी थी।

एमएमएसएम : जब हमने तख्तापलट के बारे में सुना, उस दिन आधे दिन तक कोई इंटरनेट नहीं था क्योंकि मिलिट्री द्वारा उसे बंद कर दिया गया था। इसलिए हमने एक रेडियो खरीद कर समाचार सुना। हमारी यूनियन के प्रमुख ने अन्य फैक्ट्री यूनियनों से विमर्श और समन्वय कर के सभी यूनियनों की एक आपात बैठक बुलाई। हमें यह समझना-तय करना था की सेना के विरुद्ध संघर्ष में कैसे उतरा जा सकता है। हम इसे अकेले नहीं कर सकते थे ; पूरी आबादी की भागीदारी की जरूरत पड़ेगी।

हमसे छात्र एक्टिविस्टों ने संपर्क किया। हमने उनसे कहा, "यदि आप मिलकर प्रयास करने के उत्सुक हैं, तो आपस में मिलकर बात करते हैं। हमें फैक्ट्रियों के अंदर हड़ताल की आदत है, मगर हमने हथियारबंद सेना के खिलाफ कभी लड़ाई नहीं लड़ी है। चूँकि आप के बहुत सारे अनुयायी हैं, और राजनीतिक प्रतिरोध प्रदर्शनों का अनुभव है, इसलिये आइए मिलकर काम करते हैं।"

एमएच/एनएच : आम हड़ताल का महत्व क्या था ?

एमईईपी : प्रदर्शन में जनता के हर समूह के लोगों ने भागीदारी की। लोग खून में डूबी हुई इस व्यवस्था के प्रतिरोध के लिए आगे आए। इसलिए यह आम हड़ताल नेता को यह बताने के लिए बेहद जरूरी थी कि, "हम तुम्हें नहीं चाहते। और हम सब तानाशाही के ख़िलाफ़ हैं।"

एमएच/एनएच : संगठन करने में आप को किन प्रमुख चुनौतियों का सामना करना पड़ा था ?

एमएमएसएम : ढेरों चुनौतियां हैं। अक्सर अभिभावक महिलाओं और लड़कियों की राजनीति अथवा यूनियन में भागीदारी पसंद नहीं करते। हमारे माता-पिता किसान हैं और हमारा जन्म गाँवों में हुआ था। हमारा लालन-पालन ग्रामीण परंपरागत तरीकों से हुआ था, जैसे लड़की को बिल्कुल पंजों तक ढँकी लुंगी पहननी होगी। महिलाओं को रात में निकलने से मना किया जाता है। जब मैंने पहले-पहल कामगारों के प्रतिरोध के साथ जुड़ना शुरू किया,मेरे अभिभावकों को बहुत चिंता हुई। मगर मेरे पति मेरी यूनियन गतिविधियों का पूरा समर्थन करते हैं, और हमेशा मुझे इसके लिए प्रोत्साहित करते रहते हैं।

कामगारों को हड़ताल की अवधि के लिए वेतन नहीं मिलता, इसके चलते किराया भरने में समस्या आती है। कुछ मकान मालिकों को मजदूरों के साथ सहानुभूति है और उन्होंने हड़ताल की अवधि के लिए मजदूरों का किराया कम कर दिया है, जब कि अन्य कई मकान मालिकों ने मजदूरों को बेदखल कर दिया है।

एमएच/एनएच : जमीनी स्थिति के बारे में आप हमारे पाठकों को क्या बताना चाहेंगी ?

एमटीटीडब्लू : हमें अपने वर्तमान आंदोलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की जरूरत है। 88 की क्रांति में,सेना द्वारा बहुत सारे लोग मार डाले गए थे और मैं नहीं चाहती कि ऐसी स्थिति दोबारा आए।

जब मैंने सुना कि लोग सेना द्वारा गोलियों से मारे जा रहे हैं, मुझे बहुत, बहुत क्रोध आया - मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से म्यांमार के कामगारों की मदद करने के लिए गुहार लगाते हुए चीत्कार करना चाहती थी।

एमएमएसएम : कुछ मजदूरों को निकाल दिया गया है, या उनके वेतन काट लिए गए हैं। निकाले गए कामगारों में गर्भवती महिलाएं, छोटे-छोटे बच्चों वाली महिलाएं, और वे महिलाएं भी हैं जो अपने परिवार की अकेली भरण-पोषण करने वाली हैं। किराये की समस्या, कामगारों को फैक्ट्रियों द्वारा निकाल दिए जाने के साथ मिल कर उन्हें आर्थिक रूप से भयावह स्थिति में धकेल रही है।

आइएलओ कमीशन निर्दिष्ट करता है कि मालिक मजदूरों पर दबाव नहीं डाल सकते। कामगार अपने अधिकारों के प्रयोग के लिए स्वतंत्र हैं। हम चाहते हैं कि लोग ऐडिडैस, ज़ारा, और एच&एम जैसे ब्रांडों पर दबाव बनायें कि वे कामगारों के प्रतिरोध करने के अधिकार की गारंटी सुनिश्चित करें। जब से हमने कंपनियों के लिए अपना बयान जारी किया है, हमें अभी तक उनकी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं मिली है।

मीडिया की भी बहुत जरूरत है। जिस तरह से कामगार अपने प्रतिरोध पर दृढ़ हैं और सड़कों पर उतरने के खतरे मोल ले रहे हैं, मीडिया को इस पर और ज्यादा ध्यान देने की ज़रूरत है। जितने ज़्यादा से ज़्यादा लोग हमारे और हमारे प्रयासों के बारे में जानेंगे, हम लोगों के साथ कुछ घटित होने पर उतना ही अधिक हमें सुरक्षा मिल सकेगी।

एमईईपी : मैं अयेयरवादी इलाके के एक किसान परिवार से हूँ। मेरे बचपन के दिनों में, सरकार ने किसानों को चावल के रूप में ड्यूटी शुल्क देने को मजबूर किया। जब मैं कक्षा चार में थी, हमारा परिवार मौसम की मार के चलते पर्याप्त चावल नहीं पैदा कर पाया। इसलिए पुलिस ने मेरे दादा और कजिन को गिरफ्तार कर लिया। मेरे भाई, बहन और मुझे छिपना और भूखे रहना पड़ा।

जेल से छूटने के बाद भी, मेरे दादा को सरकार को चावल देना था। मगर हमारे पास उतना चावल नहीं था। इसलिए हम लोगों को अपनी जमीन देनी पड़ी और हम बेहद गरीब हो गए। भाई और मुझे स्कूल छोड़ना पड़ा। मेरे पिता मुझे ले कर शहर चले आए इसलिए मैं मैट्रिक की परीक्षा नहीं पास कर पायी।

इसलिये यही कारण है कि मैं सैन्य तानाशाही से इतनी नफरत करती हूँ। उस व्यवस्था में हमें बहुत कुछ बुरी चीजें झेलनी पड़ी थीं। मैं ऐसा अब इस पीढ़ी के साथ - अपने बेटे और बेटी के साथ होने देने की इजाज़त नहीं दे सकती। यही कारण है कि मैं लड़ना चाहती हूँ।

एमएमएसएम : हम यह सब ताकत अथवा पोजीशन हासिल करने के लिए नहीं कर रहे हैं। कामगार जानते हैं कि दबाव के बीच भी कैसे जिंदा रहा जा सकता है और अन्याय के खिलाफ किस तरह लड़ा जाता है। हम मिलिट्री शासन के अधीन नहीं रह सकते। हम दमन और दबाव में रहने की अपेक्षा मर जाना पसंद करेंगे।

प्रतिरोधकारियों , विशेषकर युवाओं की मृत्यु को देखकर कलेजा फट पड़ता है। इस लड़ाई में एक माँ के रूप में, मैं इसे और भी गहराई से महसूस करती हूँ। जितना ही मैं उनकी तकलीफों को देखती हूँ, उतना ही अधिक मैं लड़ना चाहती हूँ, अपने जीवन की क़ीमत पर भी। जो लोग मरने के लिए तैयार रहते हैं वे टूटने वाले नहीं होते।

मा मोई सांदर मिंत फ़ेडेरेशन ओफ़ जनरल वर्कर्स म्यांमार की एक संगठक है।

मा अई अई फ्यू फेडरेशन ऑफ़ जनरल वर्कर्स म्यांमार की एक संगठक है।

मा तिन तिन वाई भी फेडरेशन ओफ़ जनरल वर्कर्स म्यांमार की एक संगठक है।

माइकल हाक 2008 से 2010 तक यूएस कैम्पेन फ़ॉर बर्मा का कोआर्डिनेटर रहे हैं और उससे पहले उन्होंने येल यूनिवर्सिटी के मैकमिलन सेंटर और मकस्वीनी इम्प्रिंट वायस ऑफ़ विट्नेस के लिए म्यांमार के इतिहास और राजनीति पर शोध किया है।

नादी हलैंग न्यूयॉर्क सिटी आधारित बर्मीज़-अमेरिकन कार्यकर्ता है।

फोटो: Htin Linn Aye / विकिमीडिया कॉमन्स

Available in
EnglishSpanishItalian (Standard)Portuguese (Portugal)GermanFrenchHindiPortuguese (Brazil)
Authors
Ma Moe Sandar Myint, Ma Ei Ei Phyu, Ma Tin Tin Wai, Michael Haack and Nadi Hlaing
Translators
Vinod Kumar Singh and Surya Kant Singh
Date
31.03.2021
Source
JacobinOriginal article🔗
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