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फरवरी थीसिस : रूस में वामपंथ और राजनीतिक संकट

पीआई काउंसिल के सदस्य एलेक्सी सखनिन फरवरी 2021 में हुए रूस में देशव्यापी विरोध प्रदर्शनों पर अपना परिप्रेक्ष्य स्पष्ट करते हैं - और रूस के वामपंथ के लिए आगे बढ़ने का मार्ग प्रस्तावित करते हैं।
इतिहास खुद को दोहराता नहीं है। यह फरवरी 2021 है, 1917 नहीं । हमारी आंखों के सामने घटित होने वाला राजनीतिक संकट रूसी क्रांतिकारी इतिहास का पुनर्मंचन नहीं है - इस साल, फरवरी और अक्टूबर के बीच का संबंध केवल कैलेंडर के पन्नों में ही मौजूद है।

वर्तमान क्षण के हमारे विश्लेषण के लिए जो मायने रखता है, वह जनवरी के विरोध प्रदर्शनों (पूरे रूस में 150,000 और 200,000 के बीच) में भाग लेने वालों की संख्या और इन प्रदर्शनों को ऑनलाइन देखने वालों की संख्या (20 मिलियन से अधिक) में अंतर है। ये आंकड़े रूस में राजनीतिक माहौल में रेडिकल बदलाव की ओर इशारा करते हैं: असंतुष्ट, जो हमारी राष्ट्रीय राजनीति के मृत-अंत से बाहर निकलने का रास्ता तलाश रहे हैं, अब लाखों की संख्या में हैं। विरोध के पीछे मुख्य सामाजिक ताकत अब महानगरीय मध्यम वर्ग नहीं, बल्कि व्यापक आम जनता है: शिक्षक, छात्र, श्रमिक, अनिश्चित और स्व-नियोजित वर्ग, और छोटे व्यवसायी । दूसरे शब्दों में, वे लोग, जिन्होंने इससे पहले सरकार विरोधी कार्यों का समर्थन नहीं किया था। दो तथ्य इस निष्कर्ष की ओर इशारा करते हैं: हाल के इतिहास में पहली बार, मॉस्को की तुलना में दूसरे इलाकों में कहीं अधिक लोग सड़कों पर उतर पड़े , और, शोधकर्ताओं के अनुसार, विरोध करने वालों में से 40% ने पहली बार ऐसा किया।

संख्याओं के बावजूद, उदारवादी विपक्ष द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने से एक विशाल बहुमत को किसी बात नें रोक रखा है। उदारवादी पुलिस की हिंसा और दमन की आशंका को इसका कारण बताते हैं । यह आंशिक रूप से सच है। लोग, सचमुच डरे हुए हैं । लेकिन यह एकमात्र - और शायद मुख्य कारण भी नहीं है। बहुत से लोग केवल इसलिए सड़कों पर नहीं उतरे क्योंकि वे स्वयं को या अपने हितों को किसी एक व्यक्ति विशेष : अलेक्सी नवालनी के रूप में निरूपित राजनीतिक आंदोलन के रूप में देखने से इंकार करते हैं।

पत्रकारों और शोधकर्ताओं के साथ साक्षात्कार में, कई प्रदर्शनकारियों ने न केवल अधिनायकवाद के खिलाफ, बल्कि बढ़ती सामाजिक असमानता और गरीबी की त्रासदी के खिलाफ भी बात की, जिससे हमारे अधिकांश साथी नागरिक जूझ रहे हैं हैं। ये वे सटीक सामाजिक माँगे हैं जो अधिकतर विपन्न और श्रमशील वर्गों को इन प्रतिरोधों में खींच लायी हैं। इस मायने में, स्थिति की तुलना पिछले साल की बेलारूस की स्थिति से की जा सकती है : जबकि विपक्ष के समर्थक हर कार्यस्थल पर पाये जा सकते मज़दूर वर्ग का अधिकांश हिस्सा, उदारवादी विपक्ष पर उसके सामाजिक न्याय की भाषा के इस्तेमाल से रिझाने की कोशिशों के बावजूद, अविश्वास करता है।

उनका अविश्वास अकारण नहीं है। नवलनी एक उदार राजनेता थे और अब भी हैं। वर्षों से, वह रूस के सत्ता संस्थानों के विभिन्न तत्वों के साथ जुड़े रहे हैं - 2012 में जर्मन आल्प्स में उन्होंने कई रूसी कुलीन गुटशाहों के साथ सनसनीखेज़ बैठक की थी और वर्तमान में भी चिचवर्किन और ज़िमिन के साथ उसके खुले वित्तीय रिश्ते हैं, जिन्हें छुपाने का वह प्रयास तक नहीं नहीं करता।

नवलनी ने अपने राजनीतिक संगठन का निर्माण इसके सदस्यों द्वारा निर्मित एक सहभागी, लोकतांत्रिक आंदोलन के रूप में नहीं किया है। इसके विपरीत, नवलनी का आंदोलन अधिनायकवादी और नेता-निर्देशित -चालित है। सभी निर्णय ऊपर से नीचे थोपे जाते हैं जो कि एक संकीर्ण नेतृत्वकारी गुट के विचारों को ही प्रतिबिम्बित करते हैं । नवलनी के आंदोलन और उसके उद्देश्यों की वास्तविक रणनीति का विश्लेषण अक्सर अटकलों में ही हो पाता है - ठीक वैसे ही, जैसा अपारदर्शी क्रेमलिन कुलीन वर्ग के मामले में है। इसके बावजूद,, इसके तर्क और राजनीतिक दृष्टि की परख-पड़ताल के लिए पर्याप्त सुराग उपलब्ध हैं।

सबसे बड़ा सुराग हमें नवलनी के करीबी सहयोगी लियोनिद वोल्कोव ने दिया था। एक साक्षात्कार में, उन्होंने कहा कि उदारवादी विपक्ष का मिशन बड़ी पूँजी और रूस के राजनीतिक अभिजात्य के साथ "सौदा" करना है। वास्तव में, यह डील इस भरोसे पर आधारित है कि उदारवादी विपक्ष रूस की रूढ़िवादी सुरक्षा सेवाओं और पुतिन के भ्रष्ट और निजी वित्तीय-आर्थिक स्वार्थ वाले प्रशासन (क्लेप्टोक्रेट्स) की तुलना में रूस की सत्तासीन अल्पसंख्या के हितों की कहीं बेहतर सेवा कर सकता है। यह पश्चिम के साथ बेहतर संबंध सुनिश्चित करने, व्यापार के लिए अधिक निश्चितता लाने , और इसी तरह के और भी बहुत कुछ वायदे करता है। लेकिन वोल्कोव कहते हैं कि इस डील को निर्णायक रूप से रेखांकित करने वाला वादा, "निजी संपत्ति की प्रणाली" और राष्ट्रीय धन-समृद्धि के वितरण के लिए मौजूदा बुनियादी ढाँचे को बरकरार रखना है। इसे प्राप्त करने के लिए, वोल्कोव का कहना है कि , अनियंत्रित "रूसी विद्रोह" के हर सम्भव संकेतों - और रूस के राजनीतिक संक्रमण में वामपंथ की किसी भी भागीदारी का शमन करना होगा।वोल्कोव, दूसरे शब्दों में, एक ऐसे तख्तापलट का प्रस्ताव दे रहे हैं - जिसमें जन प्रतिरोध को केवल एक आभूषण के रूप में ही समेट दिया जाये।

उदारवादी रणनीति की, इस स्थिति में, दो धारायें हैं: सड़कों का सम्पूर्ण नियंत्रण और राजनीतिक परिक्षेत्र पर एकाधिकार। दोनों ही इसकी सफलता की मूलभूत पूर्वशर्तें हैं। केवल राजनीतिक ऊर्जाओं - और राजनीतिक शक्ति परएकाधिकार करके - ही वे शासक वर्ग का विश्वास और सक्रिय समर्थन जीत सकते हैं। यही कारण है कि नवलनी और उनकी टीम अपने राजनीतिक गठबंधन का विस्तार करने से इनकार करती है, भले ही यह विस्तार उन्हें अपनी कार्यवाहियों का रेडिकल विस्तार करने में सहायक हो। पूरे रूस में चल रहे व्यापक आंदोलन पर उनका वर्चस्व अपने आप में इस आंदोलन की सापेक्ष कमज़ोरी और संकीर्ण सामाजिक आधार को सुनिश्चित करता है। लेकिन वे हज़ारों लोग भी, जो नवलनी के आह्वान पर सड़कों पर उतर आते हैं, अधिकारविहीन हैं।वेआंदोलन की रणनीतियों और कार्य नीतियों के विकास में भाग नहीं लेते, इसके राजनीतिक लक्ष्यों और कार्यक्रम को निर्धारित करने में भागीदारी का तो प्रश्न ही नहीं है।

वामपंथ नवलनी का कितना ही अविश्वास करें, उन्हें समझने में दृढ़ होना चाहिए कि नवलनी नहीं, बल्कि वर्तमान सरकार, उस सामाजिक-आर्थिक डेड एंड गतिरोध के लिए ज़िम्मेदार है, जिसमें आज देश खुद को फंसा हुआ पा रहा है है - गरीबी, शक्तिहीनता, असमानता, और पुलिस क्रूरता जो तेज़ी से असहनीय होती जा रही है। सत्तारूढ़ शासन परिवर्तन के लिए अक्षम साबित हुआ है - इसके द्वारा उत्पन्न संकट समय के साथ बढ़ेगा और गहरा होगा। लगातार बढ़ती हुई संख्या में लोग सरकार के खिलाफ खुले संघर्ष के लिए शामिल होते जाएँगे।इसलिए अलगाव अब कोई व्यावहारिक रणनीति नहीं रह गयी है। कार्रवाई ज़रूरी हो जाएगी। लेकिन कार्रवाई अनिवार्य रूप से गैर-प्रतिक्रियावादी रहनी चाहिए, न कि तात्कालिक अराजकता के आवेग में बह जानी चाहिए। इसके बजाय, इसे एक स्पष्ट रणनीति से जोड़ा जाना चाहिए - एक वाम रणनीति - जो श्रमिक वर्गों और रूस की बहुसंख्यक आबादी को आगे बढ़ने का मार्ग दिखा सके। ऐसी रणनीति नहीं, जो असमानता और आर्थिक गतिरूढ़ता को गहरा करती हो, या विशेषाधिकार प्राप्त लोगों की तानाशाही को मज़बूत करती हो - उनमें से चाहे जो सत्ता की कुर्सी पर हों - बल्कि ऐसी रणनीति जो बहुसंख्यक लोगों के हितों में लम्बे समय से वांक्षित बदलाव लाने में सक्षम हो।

आज घटित हो रही घटनाओं की चुनौती में कुछ रूसी वामपंथियों के ढुलमुलपन की अस्थिरता उन्हें पलायनवाद के दलदल में घसीट रही है: "यह हमारी लड़ाई नहीं है।" हमें इस हार मान लेने- मैदान छोड़ देने वाली प्रवृत्ति की मौजूदगी को ईमानदारी के साथ स्वीकार करना होगा। वर्ग चेतना और समाजवादी राजनीति पुस्तकों और अतीत के अध्ययन के माध्यम से नहीं निर्मित हो सकती - हालांकि वे इसके बिना भी हासिल नहीं किए जा सकते हैं - बल्कि वर्तमान में वर्ग और राजनीतिक संघर्ष के माध्यम से ही निर्मित की जा सकती है।इस समय संघर्ष से भागना श्रमिक वर्ग की गोलबंदी को मिटाना,और इसकी राजनीतिक आत्मगत क्षमताका त्याग करना होगा, भले ही यह रेडिकल शब्दावली में लिपटी हो अथवा अतीत के क्रांतिकारियों के प्राधिकार के हवाले से युक्तिसंगत ठहराई जा रही हो। जो लोग वर्तमान में संघर्ष से भागेंगे, वे हमेशा के लिए अतीत में जीते रहेंगे - अतीत के भग्नावशेष, अपनी खुद की बनायी अगम्य गुफा में वर्ग संघर्ष से दूर । "सैद्धांतिक" या अमूर्त "प्रचारक" गतिविधियों के नाम पर राजनीति में भाग लेने से इनकार भविष्य के कम्युनिस्ट मोर्चे के कैडरों को तैयार करने में बिल्कुल सहायक नहीं है। ऐसा इनकार केवल धोका और पलायनवाद है।

समाज के तेज़ी से हो रहे ध्रुवीकरण से, जो लगातार विस्तारित और विकट होते राष्ट्रीय संकट के बीच इसके राजनीतिकरण का अपरिहार्य परिणाम है, वामपंथ अछूता नहीं रह सकता। ऐसे लोग हैं जो मौजूदा सामाजिक और राजनीतिक व्यवस्था की रक्षा में तत्पर हैं, इसे दो बुराइयों में कमतर मानते हुए। उनका "लाल पुतिनवाद" इस पर आधारित है कि पिछले कुछ दशकों में हर प्रमुख प्रतिरोध नें- इसके प्रभाव चाहे जितने दूरगामी क्यों न रहे हों - श्रमशील वर्गों के लिए समाज-विरोधी सुधार, संस्तरीकरण, वि-औद्योगिकरण, सांस्कृतिक जड़ता, और राजनीतिक प्रतिक्रिया के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिया है। इस बात का भय कि रूस में साम्राज्यवाद की ताकतें विजयी हो जाएंगी - जिन्हें पलट पाना असम्भव हो जा सकता है - इन "रूढ़िवादी वामपंथियों" को पंगु बना देता है, उनकी इच्छा शक्ति दमित कर देता है, और स्वतंत्र राजनीतिक रणनीति बनाने की उनकी क्षमता को बाधित करता है।ऐसे "प्रतिक्रियावादी वामपंथ" की यह रणनीति दो अपरिहार्य परिणाम उत्पन्न करती है। सबसे पहले वे वाम को अपने ही सामाजिक आधार के ख़िलाफ़ खड़ा कर देते हैं। जनता उस यथास्थिति को बनाए रखने के लिए जितना ही कम तैयार होती है जो उन्हें गरीबी के जीवन ओर ढकेलती है, संकट उतना ही अधिक तीव्र और राज्य की उदारवाद- विरोधी रूढ़िवादिता और व्यापक जन समुदायों की आकांक्षाओं का सड़कों पर अभिव्यक्त हो रहा अंतर्विरोध तीखा होता जाता है । दूसरा, "लाल पुतिनवाद” भविष्य - सामाजिक विकल्पों को ख़ारिज कर देता है।ये वामपंथी खुद को एक ऐसी व्यवस्था के लिए प्रतिबद्ध कर देते हैं जो पहले से ही बर्बाद है। वे शासक वर्ग की रूढ़िवादिता और जड़ता के बंधक बन जाते हैं।

यदि वर्तमान राजनीतिक आंदोलन समाज - और वामपंथी आंदोलन के एक हिस्से को - सत्ताधारी सरकार के समर्थन की दिशा में धकेलता है, , यह दूसरों को उदारवाद विपक्ष की ओर भी धकेलेगा। बाद वाले का वही प्रतिक्रियावादी चरित्र है जैसा "लाल पुतिनवाद" का। व्यापक पैमाने पर विरोध प्रदर्शन भावनात्मक आवेगी होते हैं और परिवर्तन व मार्ग दिशा बदलने के अपने वादे में अनिश्चित । पुलिस की बर्बरता, राजनीतिक दमन, भयावह सामाजिक असमानता और समकालीन रूस के अन्य राजनीतिक राक्षस प्रतिरोध आंदोलन में भाग लेने की भावनात्मक अपील बन जाते हैं। जिस तरह से अदालतें विरोध व असहमति के ख़िलाफ़ ग़लत फ़ैसले देती हैं, और हमें छलने के लिये अरबपति प्रचारकों द्वारा इन फ़ैसलों को न्यायसंगत ठहराने के लिए तर्क गढ़े जाते हैं, उन पर रोष ही व्यक्त किया जा सकता है । लेकिन राजनीतिक विकल्प केवल भावना से तय नहीं किए जा सकते। किसी भी आंदोलन में भागीदारी का मतलब उसके राजनीतिक कार्यक्रम के लिए ज़िम्मेदारी का वहन करना है।

नवलनी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन में भाग लेने से रूसी वामपंथ को अपने सामाजिक एजेंडे को आगे बढ़ाने या अपनी क़तारों के भीतर एक विशिष्ट वाम फ़लक तैयार करने का अवसर नहीं मिलेगा। बिना अनुमति के हो रहे प्रतिरोध प्रदर्शनों में पर्चेबाज़ी दर्जनों की भागीदारी की रणनीति हो सकती है - हज़ारों या लाखों के लिए नहीं। ये रणनीतियाँ आंदोलन के एजेंडे, मांगों, या कार्यनीतियों को निर्धारितया आकार नहीं दे सकती।ऐसी स्थिति में उदारवादी आंदोलन में वामपंथी ताकतों की भागीदारी, वाम की अपनी राजनीतिक आत्मगत शक्ति को आगे नहीं बढ़ा सकती। ज़्यादा से ज़्यादा, यह लोगों की एक छोटी संख्या को उनसे किसी ठोस प्रतिबद्धता की मांग किए बिना अपनी निष्ठा के स्थानांतरण के लिए मना सकती है।

रूस में वामपंथ के लिए राजनीतिक जीवन में सचेत रूप से भागीदारी का एकमात्र रास्ता परिवर्तन के लिए अपनी खुद की सुसंगत रणनीति तैयार करना है। अमूर्त नारों या नीति पर्चों का सेट नहीं, बल्कि कार्रवाई के लिए एक ऐसा कार्यक्रम (एल्गोरिथ्म) जो अधिसंख्यक लोगों के हितों में बदलाव ला सके। हमारे इस निरंतर आत्मकेंद्रित होते जा रहे समाज में हर किसी को इस सवाल का जवाब देने की ज़रूरत है कि वे इस बदलाव को लाने के लिए क्या कर सकते हैं ।

राजनीतिक गोलबंदी के बिना ऐसी रणनीति तैयार करना असंभव है।इसे निश्चित रूप से इंटरनेट पर, ठोस भौतिक श्रमिक और सामाजिक संघर्ष में, और आज के राजनीतिक संकट के मुख्य इलाके - सड़कों पर - सामने आना चाहिए। वामपंथियों को, लाखों की संख्या में असन्तुष्ट लोगों को उनका स्वयं का मंच, उनका स्वयं का आंदोलन, और उनके स्वयं के विरोध अभियान का मंच प्रदान करने की पेशकश करनी चाहिए।

यूट्यूब पर बीस सबसे बड़े वामपंथी ब्लॉगों को आज लगभग साठ लाख लोग देखते हैं। लेकिन ये दर्शक अतीत के तर्क-वितर्क में उलझे रहते हैं - सौंदर्यशास्त्र और सिद्धांत के बारे में - यहाँ और अभी क्या हो रहा है, इसके बारे में चर्चा नहीं करते। मुझे यकीन है कि, राजनीतिक संकट के बीच, राजनीतिक रणनीति और कार्यनीति के सवालों पर सामूहिक विचार-विमर्श से ज़्यादा महत्वपूर्ण अन्य कोई एजेंडा नहीं हो सकता। मैं वामपंथी ब्लॉगर्स के लिए वीडियो स्क्रिप्ट नहीं कर सकता, लेकिन मुझे विश्वास है कि ट्रॉट्स्की और ब्रैडस्की के बजाय, हमें अपनी खिड़कियों के बाहर हो रही रैलियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, और अपनी खुद की गतिविधियों पर गंभीरता से मनन करना चाहिए। माना, यह प्रक्रिया कल ही एक सर्वमान्य साझा स्थिति को जन्म देने की जादुई संभावना नहीं रखती, लेकिन यह हमें अतीत की घटनाओं में उलझे रहने के बजाय, महत्वपूर्ण मुद्दों पर अलग होने (और एकजुट होने) की अनुमति ज़रूर देगी। ऐसी स्थिति में मेरा पहला ठोस प्रस्ताव, इस कठिन बातचीत की शुरूवात हमारे लिए उपलब्ध सभी प्लेटफार्मों पर करना है। मध्यम अवधि में, इस प्रक्रिया से वाम के एक फोरम का उदय हो सकता है, जो आगे चल कर रूस में लोकतांत्रिक और सामाजिक परिवर्तन के संघर्ष का रोडमैप तैयार कर सकता है।

दूसरा कदम मुझे लगता है, यह लेना चाहिए कि हम अपनी खुद की ताकत का आकलन करें। । अगर हममें से अधिकांश - वामपंथी ब्लॉगर्स, एक्टिविस्ट्स, और संगठक - अपने अपने दर्शकों को सड़कों पर उतरने के लिए आमंत्रित करें - तो क्या होगा? जैसे कि किसी अनुमति प्राप्त कार्रवाई को बस शुरू करने के लिए। कौन आगे आएगा? तीखे और तेज गति से हो रहे सामाजिक राजनीतिकरण की पहचान वाले इस पल में , हम जितना सोचते हैं उससे कहीं अधिक इच्छुक प्रतिभागी पा सकते हैं। क्या होगा अगर जनवरी के विरोध प्रदर्शनों को देखने वालों का एक छोटा प्रतिशत भी जो उनमें शामिल नहीं हुआ था,हमारे आह्वान को देखे और इसकी अपील उसे नवलनी से कहीं अधिक प्रभावी लगे ? क्या होगा, अगर सोशल मीडिया पर वामपंथी ब्लॉगों और कम्युनिस्ट समूहों के दर्शकों के बीच, सड़कों पर उतर आने के लिए तैयार लोगों की संख्या उदारवादी समाचार टीवी आउटलेट रेन के दर्शकों से अधिक हो तो? इस तरह की गोलबंदी की सापेक्षिक सफलता वामपंथी आंदोलन को काफी आवेग प्रदान कर सकती है। यह संघर्ष के लिए हमारी पुकार होगी। इसके चतुर्दिक, हम एक विशाल सेना गोलबंद कर सकते हैं। कहां से शुरू करना है यह सवाल एक महत्वपूर्ण सवाल है, लेकिन यह रणनीति का सवाल है।

संक्षेप में - एक बार फिर - मैं अपने व्यावहारिक सुझावों की सूची देना चाहूँगा:

  • जितनी जल्दी हो सके वामपंथ की रणनीतियों और कार्यनीतियों पर एक बहस आयोजित करना, और उन्हें जितना सम्भव हो सके ज़्यादा से ज़्यादा दर्शकों तक प्रसारित करना
  • एक लेफ्ट फोरम के निर्माण के लिए योजना तैयार करना जो वर्तमान में घटित हो रही घटनाओं में एक स्वतंत्र राजनीतिक ताकत के रूप में हस्तक्षेप के लिए एक वामपंथी गठबंधन की गोलबंदी कर सके।

एलेक्सी सखनिन एक रूसी कार्यकर्ता और वाम मोर्चा के सदस्य हैं। वह 2011 से 2013 तक सरकार विरोधी आंदोलन के नेताओं में से एक थे और बाद में उन्हें स्वीडन निर्वासित कर दिया गया।

Available in
EnglishRussianFrenchGermanSpanishItalian (Standard)HindiPortuguese (Portugal)Portuguese (Brazil)
Author
Alexey Sakhnin
Translators
Nivedita Dwivedi and Vinod Kumar Singh
Date
21.04.2021
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