Economy

‘एथिकल' फ़ैशन का मिथक : किस तरह एक बहुराष्ट्रिक परिधान ब्रांड ने अपनी महिला कर्मचारियों की उपेक्षा की

कोविड-19 पेंडेमिक का उपयोग परिधान (अपारेल) ब्रांडों और उनकी आपूर्ति फैक्ट्रियों द्वारा अपनी श्रमिक विरोधी गतिविधियों को छुपाने के लिए किया जा रहा है।
कोविड-19 द्वारा उत्पन्न आर्थिक व्यवधानों का बोझ आपूर्ति ऋंखला में सबसे निचले स्तर - जैसे भारत के गारमेंट उद्योग में महिला कर्मचारियों - पर डाल दिया जा रहा है। जब कि ब्रांड खुद को निर्दोष बता कर अपने हाथ धो ले रहे हैं, आपूर्तिकर्ता फैक्ट्रियों ने, विशेषकर यूनियनों में संगठित कामगारों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है।

" कहाँ छुपे बैठे हो, एच&एम ?....यदि तुम अभी बाहर आ कर हम लोंगों के साथ नहीं खड़े होते, इसका मतलब होगा, तुम्हारी यूनियन को तोड़ने और कम्पनी को बंद करने में मिलीभगत है। तुम्हारा मुनाफ़ा हमारी मेहनत के पसीने से बनता है ..... मेहरबानी कर के गोकुलदास को फ़ैक्ट्री खोलने के लिए बोलो।'

7 जुलाई 2020 को 'गोकुलदास एक्सपोर्ट्स' मालिकाने की युरो क्लोथिंग कंपनी-2 (ईसीसी-2) फ़ैक्ट्री की एक छँटनी शुदा कामगार, शोभा ने एक वीडियो रिकार्ड किया जिसमें उन्होंने यह अपील की। यह वीडियो उसकी यूनियन - दि गारमेंट एंड टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन (जीएटीडब्लूयू) - द्वारा चलाए जा रहे अंतर्राष्ट्रीय अभियान का हिस्सा बन गया यूनियन की माँग है कि एच&एम, जो फ़ैक्ट्री उत्पाद का एकमात्र ख़रीदार है, मज़दूरों के अधिकारों की सुरक्षा की अपनी प्रतिबद्धता का सम्मान करे।

जब शोभा का विडीओ सोशल मीडिया पर जारी हुआ, गोकुलदास एक्सपोर्ट्स द्वारा अपनी ईसीसी-2 यूनिट में अचानक और ग़ैर- क़ानूनी रूप से घोषित तालाबंदी के ख़िलाफ़ कामगारों के प्रतिरोध संघर्ष का एक माह बीत चुका था।कामगार जबर्दस्त दबाव में थे।कंपनी ग़ैर-क़ानूनी और ज़ोर-ज़बरदस्ती के तरीक़ों से मज़दूरों पर इस्तीफ़े के लिए दबाव बना रही थी।फ़ैक्ट्री सचमुच दोबारा खुल भी पायेगी, इसको ले कर बढ़ती अनिश्चितता कामगारों की कंपनी के ख़िलाफ़ अपना संघर्ष जारी रखने की प्रतिबद्धता पर भारी पड़ रही थी।कोविड-19 पेंडेमिक के दौरान आय की लगभग शून्य उपलब्धता ने गारमेंट कर्मचारियों के घर-बार को बुरी तरह प्रभावित किया।हर कोई कुछ न कुछ आमदनी के लिए परेशान था जिससे खर्चे पूरे हो सके और क़र्ज़ों की भरपाई हो सके।

इन तमाम त्रासद तकलीफ़ों के प्रति पूरी तरह से बेपरवाह, एच&एम (एक अंतर्राष्ट्रीय परिधान ब्रांड जिसके लिए शोभा और 1300 अन्य कर्मचारी वर्षों से काम करते आ रहे थे) ने औद्योगिक विवाद में हस्तक्षेप करने से इंकार कर दिया।इसने गोकुलदास के इस दावे को ख़ारिज कर दिया कि कोविड-19 पेंडेमिक के चलते एच&एम ने आपूर्ति आदेशों में भारी पैमाने पर कटौती की थी ; इसके विपरीत उसने दावा किया कि, गोकुलदास एक्सपोर्ट्स के लिए उसके आदेश पिछले साल के स्तर पर ही थे।

यहाँ यह उल्लेख करना महत्वपूर्ण होगा कि ऐसा कोई तरीक़ा नहीं है जिसके माध्यम से दोनो कंपनियों के दावों की पड़ताल की जा सके।प्रारम्भिक स्तर पर एच&एम ने विवाद को जीएटीडब्लूयू और गोकुलदास एक्सपोर्ट्स के बीच "राष्ट्रीय क़ानून को ले कर अलग-अलग व्याख्याओं" का मामला बताया।उसके स्तर पर, एच&एम का कहना था कि वह स्थिति के समाधान के लिए विवादकर्ता पक्षों के बीच बैठकों के लिए 'मदद' कर रहा था।

इस वक्तव्य से ऐसा लगेगा कि एच&एम, मज़दूरों के प्रति अपने दायित्व से कहीं ऊपर उठ कर एक तरह की पक्षधरता के रूप में काम कर रहा था।

इससे ज़्यादा सच से दूर और कुछ हो ही नहीं सकता।

मज़दूरों के अधिकारों की रक्षा की अपनी प्रतिबद्धता से मुकरना

अपनी वेबसाइट पर, एच&एम ने " ज़िम्मेदार क्रय व्यवहार" शीर्षक से एक खंड बनाया है जिसमें उसने 'गारमेंट वर्करों के प्रति न्यायपूर्ण व्यवहार की सुरक्षा और काम का स्वस्थ वातावरण उपलब्ध करने' की अपनी प्रतिबद्धता दोहराई है। एच&एम इस तथ्य को पूरी सज-धज के साथ प्रस्तुत करता है कि वह ACT (ऐक्शन, कोलाबोरेशन, एंड ट्रांसफॉर्मेशन) का संस्थापक सदस्य है, और यह भी कि बीस अन्य ब्रांडों के साथ इसने वैश्विक यूनियन 'IndustriALL’ के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किया हैं। समझौते का उद्येश्य "गारमेंट, टेक्सटाइल, और फुटवियर उद्योग में बदलाव (ट्रांसफ़ॉर्मेशन) लाना और उद्योगों के स्तर पर वर्करों के लिए ख़रीद व्यवहारों से जुड़ी सामूहिक सौदेबाज़ी के माध्यम से जीवन निर्वाह वेतन सुनिश्चित करना है।"

यह एच&एम और IndustriALL के बीच एक वैयक्तिक समझौते का आधार बना, जिसे ग्लोबल फ्रेमवर्क एग्रीमेंट (जीएफए) के नाम से जाना जाता है। जीएफए में एच&एम ने खुद को "हर संभव दबाव" (लीवरेज) के 'सक्रिय रूप से' इस्तेमाल के लिए प्रतिबद्ध किया है "जिससे यह सुनिश्चत हो सके कि एच&एम की समस्त रिटेल गतिविधियों द्वारा विक्रय होने वाली वस्तुओं (मर्चेंडाइज)/ तैयार माल के प्रत्यक्ष आपूर्तिकर्ता और उनके सब- कॉंट्रैक्टर अपने कार्यस्थलों पर मानवाधिकारों और ट्रेड यूनियन अधिकारों का सम्मान करें।"

अपने विडीओ में शोभा और जीएटीडब्लूयू एच&एम से अपनी प्रतिबद्धता पर खरे उतरने की माँग कर रहे थे। गोकुलदास एक्सपोर्ट्स ने मनमाने ढंग से अपनी उस अकेली फ़ैक्ट्री को बंद कर देने का फ़ैसला ले लिया जहां के कर्मचारी यूनियन में संगठित थे। कंपनी की अन्य फैक्ट्रियाँ - जहां एच&एम के परिधानों का उत्पादन होता है और जहां कोई वर्कर यूनियन नहीं है - अछूती छोड़ दी गयी थीं।

अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर जीएटीडब्लूयू अभियानों ने अपना केंद्रीय बल एच&एम को कामगारों के प्रति अपना दायित्व स्वीकार कराने पर रखा है। इसके लिए उसने उस विवाद समाधान तंत्र - दि नेशनल मॉनिटरिंग कमिटी (एनएमसी) को सक्रिय कराने का प्रयास किया है - जिसे एच&एम ने अपनी आपूर्तिकर्ता फैक्ट्रियों में औद्योगिक विवादों के समाधान के लिए बनाया है।

शोभा के विडीओ के इंटरनेट पर छा जाने के एक दिन बाद एच&एम ने अंततः पहली एनएमसी बैठक बुलाई, प्रतिरोध प्रदर्शनों के शुरू होने के एक महीने बाद। जीएटीडब्लूयू अध्यक्ष आर.प्रतिभा ने हमें बताया कि अपनी बैठकों और वक्तव्य-संवादों में एच&एम का दावा है कि वह मात्र 'सहायताकर्ता' (फैसिलिटेटर) है, उसका इस बात पर कोई नियंत्रण नहीं है कि गोकुलदास एक्सपोर्ट्स एच&एम के आदेशों की आपूर्ति के लिए किस यूनिट को काम आवंटित करता है; और यह भी कि उसके अधिकार केवल कंपनी की यूनिटों को उसके आदेशों के उत्पादन में सक्षम होने के प्रमाणन तक सीमित हैं, इससे अधिक कुछ भी नहीं।गोकुलदास एक्सपोर्ट्स द्वारा कामगारों के अधिकारों की अवहेलना और ज़ोर- जबरदस्ती के उपायों के प्रमाण के बावजूद, जिनके ज़रिए वह कामगारों के इस्तीफ़े जुटा रहा था, एच&एम ने इसकी भर्त्सना करने और आपूर्तिकर्ता फ़ैक्ट्री पर मज़दूरों के अधिकारों के सम्मान के लिए दबाव बनाने से इंकार कर दिया।

एच&एम की त्रिपक्षीय समाधान प्रणाली (एनएमसी) के प्रति प्रतिबद्धता का खोखलापन, प्रदर्शनों के शुरू होने के दो महीने बाद 6 अगस्त,2020 को हुई एनएमसी की अगली ही बैठक में उजागर हो गया।तब तक ज़्यादातर वर्कर इस्तीफ़ा दे चुके थे, और बचे हुओं ने गोकुलदास एक्सपोर्ट्स की मैसूर में एक अन्य फ़ैक्ट्री में स्थानांतरण ले लिया था।अपनी निष्क्रियता के माध्यम से एच&एम ने यह सुनिश्चित कर दिया था की गोकुलदास एक्सपोर्ट्स कामगारों से ज़बरदस्ती इस्तीफ़ा ले कर फ़ैक्ट्री को बंद करने के अपने उद्येश्य में पूरी तरह से सफल हो सके।यह केवल जीएटीडब्लूयू के नेतृत्व में चले लगातार प्रतिरोध आंदोलन के जरिये ही सम्भव हो सका कि कामगार उन सहकर्मियों से अधिक क्षतिपूर्ति पैकेज़ हासिल कर सके जिन्होंने प्रतिरोध आंदोलन के दौरान ही इस्तीफ़ा दे दिया था।

बेपरवाह, ग़ैर-ज़िम्मेदार और मुनाफ़े के भूखे : पेंडेमिक के दौर में अपारेल ब्रांड

इस प्रकरण में एच&एम का व्यवहार कोई अपवाद नहीं है।अंतर्राष्ट्रीय निगरानी (वाचडॉग) संगठनों की तमाम रिपोर्ट इस बात को रेखांकित करती हैं कि किस तरह अपारेल ब्रांड अपनी ठेके पर ली गयी फैक्ट्रियों के प्रति ज़िम्मेदारियों से बचने अथवा सीमित करने के लिए काम करते रहे हैं।चूँकि फैक्ट्रियाँ इन बड़े ब्रांडों को बिना प्रतिकूल प्रभाव व परिणाम के मुक़दमे में घसीटने की क्षमता नहीं रखतीं, कोविड-19 के करण उत्पन्न आर्थिक व्यवधानों का बोझ आपूर्ति चेन की सबसे निचली पायदान - महिला कामगारों पर डाल दिया जा रहा है।

वर्कर्स राइट कंसोर्शियम की एक रिपोर्ट ब्रांडों का आह्वान करती है कि वे पेंडेमिक द्वारा उत्पन्न संकट के वित्तीय बोझ को साझा करें " न कि ( संकट की) समूची क़ीमतों का बोझ आपूर्तिकर्ताओं, और इसी क्रम में, कामगारों पर थोप दें।" दक्षिण और दक्षिण- पूर्व एशिया की आपूर्तिकर्ता फैक्ट्रियों ने पेंडेमिक का इस्तेमाल यूनियन में संगठित मज़दूरों को असाधारण रूप से निशाना बनाने के लिए किया है।ऐसा दि बिज़नेस एंड ह्यूमन राइट्स रिसोर्स सेंटर (BHRRC) का अपनी रिपोर्ट में कहना है।बीएचआरआरसी ने लगातार यह पाया है कि अंतर्राष्ट्रीय ब्रांड, जो इन फैक्ट्रियों से कमाते हैं, मज़दूरों की संगठन की स्वतंत्रता के प्रति अपनी सार्वजनिक प्रतिबद्धता के बावजूद इन मामलों के समाधान में असफ़ल थे।

अपारेल ब्रांडों और उनकी आपूर्तिकर्ता फैक्ट्रियों की ये मज़दूर- विरोधी कार्यवाहियाँ, जिसे वे कोविड-19 का बहाना बना कर अंजाम दे रहे हैं, केवल अक्षम नियामक संरचनाओं के चलते ही संभव हो पाती हैं। आपूर्तिकर्ता फ़ैक्टरियाँ ख़ासतौर पर उन देशों या क्षेत्रों में काम करती हैं जहां राज्य द्वारा श्रम नियमों की निगरानी यदि पूरी तरह से अस्तित्व विहीन न भी हो, तो बस नाममात्रिक ही रहती हैं। अपारेल ब्रांडों पर उनकी गतिविधियों के लिए उन देशों में कोई नियामक निगरानी नहीं होती जहां उनके उत्पादों की मैन्युफैक्चरिंग हो रही होती है, सिवाय उन बहु- प्रचारित स्वैछिक प्रतिबद्धताओं के,जो वे मज़दूरों के अधिकारों के प्रति घोषित करते हैं।

मगर जैसा कि एच&एम का ईसीसी-2 फ़ैक्ट्री के मामले में व्यवहार दिखाता है, ब्रांड जब चाहें अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर सकते है, जब भी यह उन्हें ठीक लगता हो। एच&एम और गोकुलदास के बीच जीएफए जैसी बहु-स्टेकहोल्डर पहलक़दमियों की विफलता के लगातार बढ़ते प्रमाणों के आधार पर- एमएसआइ इंटेग्रिटी की एक रिपोर्ट का कहना है "कारपोरेशनों को उनके दुर्व्यवहारों- ज्यादतियों के लिए ज़िम्मेदार ठहराने, मानवाधिकार उल्लंघनों के ख़िलाफ़ अधिकार प्राप्त लोगों की रक्षा करने, अथवा इनसे बच निकलने वालों और शिकारों के लिए समाधान उपलब्ध करा पाने के लिए एमएसआइ प्रभावी टूल नहीं हैं।"

इस बीच, जीएटीडब्लूयू अभियान द्वारा बनाए गए अंतर्राष्ट्रीय दबाव की प्रतिक्रिया में, एच&एम ने देर से ही सही, यह घोषणा की है कि वह अगले 18 महीनों के अंदर गोकुलदास एक्सपोर्ट्स के साथ अपने व्यापारिक सम्बन्धों को समाप्त करने पर विचार करेगा।

इस प्रतिक्रिया से शोभा के लिए कोई अंतर नहीं पड़ता, जिसने हताशा में अपना इस्तीफ़ा दे दिया है। यह भी अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है कि यदि एच&एम व्यावसायिक रिश्तों को वापस ले लेता है, पेंडेमिक के दौर में इसका परिणाम केवल महिला कामगारों के लिए जॉब के और अधिक नुक़सान के रूप में होगा। स्पष्ट है कि एच&एम की घोषणा, वैश्विक उत्तर के अपने ग्राहकों के लिए है, न कि उन न्यून वेतन महिला कर्मचारियों के लिए, जो उसके कपड़ों की मेन्यूफेक्चरिंग करती हैं।

स्वाथी शिवानंद एएलएफ में शोध कंसलटेंट हैं। उन्होंने जेएनयू से आधुनिक इतिहास में डॉक्टरेट की है। उनकी रुचि शहरी, क्षेत्रीय, श्रम और जेंडर के क्षेत्रों में है। आप उनसे ट्विटर और फेसबुक पर संपर्क कर सकते हैं।

Available in
EnglishGermanItalian (Standard)Portuguese (Brazil)SpanishFrenchPortuguese (Portugal)Hindi
Author
Swathi Shivanand
Translators
Vinod Kumar Singh and Raghav Sharma
Date
03.06.2021
Source
Original article🔗
Privacy PolicyManage CookiesContribution SettingsJobs
Site and identity: Common Knowledge & Robbie Blundell