बंद कर दिया है। जब मानव जाति कुछ समय के लिए क़ैद है, और आर्कटिक के ऊपर ओज़ोन परत में रेकोर्ड साइज़ का छेद दर्ज किया गया है, उसके बावजूद पृथ्वी ने हमें अपने घाव भरने की क्षमता का संकेत दिया है। बीमारी और नुकसान के क्षणों में भी उसके इस प्रदर्शन से हमारी साँसें थम सी गईं। लेकिन इस सब को समाप्त करने के लिए योजनाएं चल पड़ी हैं। उदाहरण के लिए भारत में, आने वाले कुछ दिनों में, किसी टाइगर रिज़र्व का बड़ा हिस्सा एक धार्मिक सभा के लिए दिया जा रहा है—कुंभ मेले के लिए, जो लाखों हिंदू तीर्थयात्रियों को आकर्षित करता है। असम में हाथियों का रिज़र्व कोयला खनन के लिए चिह्नित किया जा चुका है और अरुणाचल प्रदेश के खूबसूरत हिमालय जंगल के हज़ारों एकड़ एक नए हाइड्रो-इलेक्ट्रिक बाँध के डूब-क्षेत्र के रूप में चिह्नित हुए हैं। इस बीच राष्ट्रपति ट्रम्प ने एक कार्यकारी आदेश पर हस्ताक्षर किए हैं जो चंद्रमा पर खनन की अनुमति देता है।
जिस तरह से कोरोना वायरस ने मानव शरीर में प्रवेश कर मौजूदा बीमारियों को बढ़ाया है, उसी तरह उसने देशों और समाजों में प्रवेश कर उनकी संरचनात्मक दुर्बलताओं और कमियों को उजागर किया है। इसने अन्याय, संप्रदायवाद, वंशवाद, जातिवाद और सभी असमानताओं को पहले से बढ़ाकर पेश किया है। राज्य सत्ता के वे समूह जो हमेशा से गरीबों की पीड़ा के प्रति उदासीन रहे हैं और जिन्होंने वास्तव में उस पीड़ा को बढ़ाने की दिशा में ही काम किया है, अब इस बात से चिंतित हैं कि गरीबों के बीच बीमारी अमीरों के लिए भी एक गंभीर खतरा है। अभी कोई फायरवॉल नहीं है, लेकिन जल्द ही दिखाई देगा, शायद एक वैक्सीन के रूप में। ताकतवर कमज़ोर को कोहनी मारते हुए अपना रास्ता बनाएगा और वही पुराना खेल फिर से शुरू हो जाएगा—सर्वाइवल ऑफ दी रिचेस्ट। विश्व भर में पहले से ही नौकरियों में अप्रत्याशित कमी आई है। मैं यह अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर लिख रही हूँ, शिकागो के हेमार्केट हत्याकांड और मज़दूरों का आठ घंटे के कार्य दिन के संघर्ष के 130 वर्ष बाद। आज भारतीय उद्योग भारत सरकार पर बचे-कुचे मज़दूरी अधिकारों से निजात पाने के लिए दबाव बना रहा है और 12 घंटे के कार्य दिन की अनुमति मांग रहा है।
अभी, जब हम सभी घरों में बंद हैं, वे बहुत तेज़ी से अपने शतरंज के प्यादों को आगे बढ़ा रहे हैं। कोरोना वायरस सत्तावादी राज्यों के लिए एक उपहार के रूप में आया है। देश-दर-देश—बोलीविया, फ़िलीपींस, हाँग काँग, तुर्की, भारत—सरकारें लॉकडाउन का इस्तेमाल अपने विरोधियों को कुचलने के लिए कर रही हैं। भारत में विद्यार्थी, कार्यकर्ता, विद्वान और वकील, जो सरकार के खिलाफ प्रदर्शनों में अग्रणी रहे हैं, उन्हें एक कठोर आतंकवाद विरोधी कानून के थाहा गिरफ्तार किया जा रहा है। इस क़ानून के अंतर्गत उन्हें जेल में वर्षों काटने पड़ सकते हैं। दूसरी ओर जिन्होंने सरकार के हिन्दू राष्ट्रवादी एजेन्डे का समर्थन किया है, उनके सभी हिंसक और भयंकर गुनाह माफ कर उन्हें ऊंचे पदों पर बिठाया जा रहा है।
महामारीयां नई नहीं हैं, लेकिन डिजिटल युग में यह पहली बार आई है। हम अंतर्राष्ट्रीय आपदा-पूंजीपतियों, डेटा खनिकों और राष्ट्रीय स्तर के सत्तावादियों के हितों का मेल-जोल देख रहे हैं। भारत में यह सब बहुत तेज़ी से हो रहा है। फेसबुक भारत के सबसे बड़े मोबाइल फोन नेटवर्क रिलायंस-जिओ के साथ जुड़ा है, अपने 40 करोड़ व्हाट्सएप उपयोगकर्ता शेर करते हुए। बिल गेट्स प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा इस तरह कर रहे हैं जैसे बेशक कोई भी प्रोटोकॉल बने, उससे भारी मुनाफ़ा आए। मोदी के प्रोत्साहन पर निगरानी / स्वास्थ्य ऐप आरोग्य सेतु को 6 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने डाउनलोड किया है। सरकारी कर्मचारियों के लिए इसे पहले ही अनिवार्य कर दिया गया है। सरकारी कर्मचारियों को एक दिन की तनख्वाह रहस्यमय पीएम केयर्स फंड में दान देने का भी आदेश दिया गया है। और इस फंड का कोई सार्वजनिक ऑडिट नहीं किया जा सकता।
कोरोना से पहले, यदि हम सर्वेलेन्स स्टेट में धीरे-धीरे प्रवेश कर रहे थे, तो अब हम एक सुपर-सर्वेलेन्स राज्य की बाहों में डरते हुए भागे जा रहे हैं। इस राज्य में हमें सब कुछ छोड़ देने के लिए कहा जा रहा है—हमारी गोपनीयता और हमारी गरिमा, हमारी स्वतंत्रता—और हम खुद को नियंत्रित और सूक्ष्म-प्रबंधित करने की अनुमति दे रहे हैं। लॉकडाउन हटा दिए जाने के बाद भी अगर हम तेज़ी से आगे नहीं बढ़े तो हमेशा के लिए बंदी बना दिए जाएंगे।
हम इस इंजन को कैसे बंद करें? यही हमारा काम है।