कर्ज की बाढ़ ने पूरी दुनिया को तबाह कर दिया है, और अरबों लोग डूब रहे हैं। इस सप्ताह, G20 वैश्विक आर्थिक सुधार की दिशा तय करने के लिए बैठक करेगा। उनकी शक्ति – और उनकी जिम्मेदारी – एक ही दिशा में इंगित करती है : क़र्ज़ बंद करें, निवेश को बढ़ावा दें, और दुनिया के सभी लोगों को न्याय प्रदान करें।
महामारी ने पूरे भूमंडल में असमानताओं को बढ़ा दिया है। श्रमिकों को आय में 3.7 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है, जबकि अरबपतियों ने अपनी संपत्ति में 3.9 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि की है। अमीर देशों ने अपनी अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ाने के लिए खरबों डॉलर का निवेश किया है। परंतु गरीब देशों के लिये अपने वित्तीयसंतुलन में 2.5 ट्रिलियन डॉलर के अंतराल के चलते उनका महामारी से जूझना और कठिन हो गया है।
वैश्विक महामारी के आर्थिक प्रभाव से लड़ने पर खर्च किए गए 13 खरब डॉलर से अधिक में एक प्रतिशत से भी कम वैश्विक दक्षिण की ओर आया है।
लेकिन स्थिति और खराब हो सकती हैं। महामारी से पहले ही, 64 निम्न-आय वाले देश अपनी स्थानीय स्वास्थ्य प्रणालियों को मजबूत करने की तुलना में अपने अंतरराष्ट्रीय क़र्ज़ों को चुकाने के लिए अधिक खर्च कर रहे थे। अब, उनके सार्वजनिक ऋण का बोझ लगभग 1.9 ट्रिलियन डॉलर और बढ़ गया है – जो उप-सहारा की पूरी अर्थव्यवस्था का चार गुना है।
उधार लेने की योग्यता सरकारी क्षमता के लिए महत्वपूर्ण है। परंतु, अमेरिकी डॉलर जैसी साम्राज्यवादी मुद्राओं के वर्चस्व का अर्थ है कि ग्लोबल साउथ में सरकारों को विदेशी मुद्रा में उधार लेना पड़ता है – और ये ऋण उनके विदेशी पड़ोसियों की तुलना में अधिक ब्याज दर के साथ मिलते हैं।
अच्छे समय में भी, वैश्विक अर्थव्यवस्था दक्षिण से नकदी निकालकर उत्तर में पहुंचाने का काम करती है।
लेकिन जब संकट बढ़ता है, तो दक्षिणी मुद्राएं उसी समय डॉलर के मुकाबले अपना मूल्य खोने लगती हैं जब कि सार्वजनिक राजस्व सूख जाता है। परिणाम हैं दो घातक विकल्प। कर्ज चुकाने का मतलब है सामाजिक सुरक्षा-जाल को ध्वस्त करना – वही जाल जो अरबों लोगो को गंभीर गरीबी से बचाये रखे है। लेकिन भुगतान न करना और भी खराब हो सकता है: गरीब देश भविष्य में उधार लेने की क्षमता खो सकते हैं – यानी विद्यमान सुरक्षा जाल के भी गायब होने की गारंटी।
दुनिया के प्रमुख लेनदारों के रूप में, G20 सरकारों ने इन घातक विकल्पों के समाधान के लिए शायद ही कुछ किया है। 2020 में, G20 ने निम्न-आय वाले देशों के कुल ऋण भुगतान का केवल1.66% निलंबित किया। मदद करने के बजाय, उन्होंने गिद्ध कोशों और गला दबाने वाले लेनदारों की वसूली शक्ति का संरक्षण किया, जिससे वे वो धन वसूल करते हैं जो रोकथाम, पुनरुत्थान और जलवायु कार्रवाई के लिए आवश्यक है।
G20 ने अब विषम होते ऋण संकट को दूर करने के लिए 'साझा फ्रेमवर्क' की पेशकश की है। यह प्रस्ताव वास्तव में एक चेतावनी है। या तो ऋणग्रस्तता, मितव्ययिता, और निजीकरण के दुष्चक्र का नवीकरण करें – या पूर्ण वित्तीय विध्वंस से जूझें।
G20 साझा फ्रेमवर्क वैश्विक दक्षिण की सरकारों के लिए जीवन रेखा नहीं है। यह कर्जदारों के लिए जेल है।
हमें नव-औपनिवेशिक शोषण की इस प्रणाली को तोड़ने – और इसे एक ऐसी प्रणाली से बदलने की ज़रूरत है,, जो सभी के लिये ऋण न्याय और हरित व न्यायिक संक्रमण पर केंद्रित हो।
फिर, G20 से हमारी माँगें क्या हैं?
सबसे पहले, हर लेनदार को भागीदार बनना चाहिए। पिछले दस वर्षों में, ब्लैकरॉक और ग्लेनकोर जैसे निजी कर्जदाताओं ने निम्नआय सरकारों के ऋण में अपनी हिस्सेदारी दोगुनी कर दी है। G20 को सभी लेनदारों को एक जगह लाकर, सरकार की मजबूरी के उनके शोषण को समाप्त करने के लिए मजबूर करना होगा।
दूसरा, G20 को सभी देशों को अपने ऋण का पुनर्गठन करने का अवसर देना चाहिए – न कि सिर्फ उन्हें जो लेनदारों द्वारा सस्ते समझे जाते हैं। G20 की ऋण-राहत प्रणाली लेनदारों के हित में काम करती है, जो 'सस्ते' देशों को छोटी-मोटी रिआयत दे देते हैं, मगर बाकियों को गहरे संकट में डूब जाने देते हैं। कर्ज पुनर्संयोजन की प्रक्रिया हर उस देश के लिये उपलब्ध होनी चाहिये जो इसकी माँग करता है।
तीसरा, ऋण वर्कआउट प्रक्रिया को लेनदारों के हाथों से निकाल कर, पारदर्शी बहुपक्षीय निगरानी में लाना चाहिए। गोपनीयता और जटिलता केवल आत्मनिर्णय की कीमत पर लेनदारों की रक्षा करती है।
चौथा, ऋण प्रणाली को ऐसे ‘ऋण पोषणीयता फ़्रेमवर्क’ द्वारा नहीं मापा जा सकता, जिसे स्वयं क़र्ज़दाताओं द्वारा डिज़ाइन किया गया है। आवश्यकता स्वतंत्र ऋण आकलन की है जो कर्जदारों की बुनियादी चिंताओं – स्वास्थ्य, कल्याण, और विकास – को शामिल करता हो।
पांचवां – और महत्वपूर्ण रूप से – G20 को वास्तविक कर्ज निरस्तीकरण के साथ आगे आना चाहिये। यह अल्पकालिक आर्थिक तरलता का संकट नहीं है। केवल बड़े पैमाने पर कर्ज राइटऑफ़ से ही कर्ज पोषणीयता की स्थिति बनेगी , और ऋण वसूली की शुरूवात हो सकेगी।
छठा, G20 को आर्थिक मितव्ययिता का अंतिम रूप से अंत करना होगा। मितव्ययिता शर्तों ने देशों को संकटों की लहरों में झोंक दिया है,, असमानताओं को तीव्र किया है, और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों को खोखला कर दिया है। हर जगह सुरक्षित,हरित , और न्यायपूर्ण परिवर्तन के लिए अब वित्तीय श्रोतों को खोले जानेका समय आ गया है।
G20 हमें यह बताने की कोशिश करेगा कि वे जो हो सकता है, कर रहे हैं – कि हमें उनके प्रयासों के लिए आभारी होना चाहिए। लेकिन दुनिया संसाधन की कमी से नहीं जूझ रही है। हम पीड़ित हैं क्योंकि नकदी की भारी मात्रा बह कर कुछ गिने-चुनों की जेबों में चली जा रही है। इस प्रवाह को उलटने के लिए विचारों की कोई कमी नहीं है। कमी है तो राजनीतिक इच्छाशक्ति की, और जब तक हम उसे हासिल नहीं कर लेते, हम नहीं रुकेंगे।
वर्षा गंदिकोटा - नेल्लुतला प्रोग्रेसिव इंटेरनेशनल के ऋण न्याय कलेक्टिव की संयोजिका है। वह प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल के ब्लूप्रिंट की भी संयोजिका और इसकी कैबिनेट सदस्य है। वर्षा हैदराबाद, भारत से हैं।