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ख़ारतूम नरसंहार : जब सूडानी क्रांति का सहज भोलापन नष्ट हो गया

खारतूम नरसंहार से जीवित बचने का जीता-जागता, आँखों देखा-भोगा अनुभव और सूडानी क्रांति में क्या कुछ बचा रह गया है, को समझने का प्रयास।
3 जून 2019 को खारतूम का धरना उस समय बलपूर्वक खदेड़ कर खत्म कर दिया गया जब सूडान पर शासन करने वाली "ट्रांजिशनल मिलिट्री काउंसिल" (TMC) ने 159 लोगों की बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी। अमर जमाल ने उस धरने में हिस्सा लिया था और उन हिंसक बर्बरताओं को देखा है। वह उन घटनाओं के अपने ऊपर प्रभाव का अंतरंग विवरण देने के साथ ही एक नये सूडान के सपने को भी रख रहे हैं।
3 जून 2019 को खारतूम का धरना उस समय बलपूर्वक खदेड़ कर खत्म कर दिया गया जब सूडान पर शासन करने वाली "ट्रांजिशनल मिलिट्री काउंसिल" (TMC) ने 159 लोगों की बर्बरता पूर्वक हत्या कर दी। अमर जमाल ने उस धरने में हिस्सा लिया था और उन हिंसक बर्बरताओं को देखा है। वह उन घटनाओं के अपने ऊपर प्रभाव का अंतरंग विवरण देने के साथ ही एक नये सूडान के सपने को भी रख रहे हैं।

संपादकीय टिप्पणी : लगभग दो साल पहले, 11 अप्रैल 2019 को, सूडान के तानाशाह ओमर अल-बशीर को तीस साल सत्ता में रह चुकने का बाद एक सैन्य तख्तापलट में सत्ताच्युत कर दिया गया था। यह सूडानी जनता द्वारा हफ्तों तक लगातार सड़कों पर प्रदर्शन, धरना, और नागरिक अवज्ञा के और तमाम तरीकों से तानाशाही के खिलाफ आंदोलन के बाद हुआ था। संक्रमणकालीन सैन्य परिषद (ट्रांजिशनल मिल्ट्री काउन्सिल) ने, जिसने अल-बशीर की जगह सत्ता सम्भाली, और जिसमें पुरानी सत्ता के वरिष्ठ अधिकारी शामिल थे, पूरी तरह से नागरिक संक्रमणकालीन सरकार की मांग को नकार दिया। जब पीआइ (प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल) सदस्य सूडानी प्रोफेशनल्स एसोसिएशन जैसे समूहों ने खारतूम में सेना मुख्यालय के सामने एक और धरना शुरू किया, सेना ने इसका जवाब 11 जून 2019 को सैकड़ों लोगों की हत्या और बलात्कार से दिया, जिसे "खारतूम नरसंहार" के नाम से जाना जाता है।

खारतूम में अल-मोआलम अस्पताल की लॉबी में मैं अपने चारों ओर पड़ी लाशों और घायलों को देख रहा था। भारी-भरकम शीशे के बाहरी दरवाजे के पार, जिसे हमने लॉक कर दिया था, मैंने रैपिड सपोर्ट फ़ोर्स (RSF) के चौपहिया वाहनों को भारी हथियारबंद सैनिकों को ले जाते देखा और गोलियों की आवाज़ें सुनी। जलते हुए टेंटों से धुएं के उठते हुए बादल शांतिपूर्ण क्रांति हासिल करने की उम्मीदों के साथ हमारे हफ्तों से चल रहे कम्यून और उत्साह उमंग (कार्निवाल) के सपने पर ग्रहण बनकर छा रहे थे।

तब मैंने जाना कि जिंदगी कितनी हठीली (tenacious) हो सकती है, और इसने मेरे जिंदा रहने के लिये मुझसे क्या कुछ छीन लिया है : अपने वे साथी और प्रतिरोधकर्ता जिन्होंने अपनी जान दे कर आक्रमणकारियों को अस्पताल में घुसने और यदि सैंकड़ों न भी कहें, तो दर्जनों और लोगों की हत्या करने से रोका। सोमवार, 3 जून 2019 की सुबह, जब सूडान पर शासन कर रही ट्रांजिशनल मिलिट्री काउंसिल (TMC) ने इस बर्बर कत्लेआम को अंजाम दिया, मेरे सहित दर्जनों लोगों ने अस्पताल के अंदर शरण ली थी। बाहर 150 से ज़्यादा लोग मार डाले गये, दर्जनों नील नदी में फेंक दिये दिये गये और औरतों व मर्दों दोनो का बलात्कार हुआ। बहुतों का आज तक पता नहीं है।

सेना मुख्यालय पर धरना 6 अप्रैल को, लेफ्टिनेंट जनरल ओमर अल-बशीर के नेतृत्व में चल रहे इस्लामिक शासन के खिलाफ जन क्रांति की शुरुआत के करीब 16 हफ्तों बाद शुरू हुआ था। 11 अप्रैल को धरने के दबाव और वरिष्ठ अधिकारियों के हस्तक्षेप के चलते बशीर ने गद्दी खाली कर दी। अल- बशीर के सत्ता से हटने के बाद, पुरानी सत्ता के वरिष्ठ अधिकारियों के एक ग्रुप द्वारा तथाकथित ट्रांजिशनल मिलिट्री काउंसिल का गठन कर लिया गया जिसकी अगुवाई भूतपूर्व उप प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के हाथ में थी। मगर उसे एक दिन बाद ही लगातार जारी प्रतिरोध प्रदर्शनों के चलते इस्तीफा देना पड़ा। प्रदर्शनकारी इस काउंसिल को पुरानी सत्ता के जारी रूप के बतौर देख रहे थे और जनतांत्रिक ढंग से चुनाव सम्पन्न हो जाने तक एक सम्पूर्ण नागरिक सरकार की मांग कर रहे थे।

2 जून की रात को मैं अपने दोस्तों के साथ धरना कैंप आया। हम अपनी पसंदीदा जगह की ओर खारतूम विश्वविद्यालय की क्लीनिक के पास चल दिये। आसन्न खतरे के संकेतों के बावजूद कि टीएमसी धरने को बलपूर्वक खत्म करने की तैयारी कर रही थी, आज़ादी का उत्सवी माहौल, और कामरेडशिप का आनंद बहुतों की ही तरह मुझे भी आसन्न आतंक का अंदाज़ा लगा पाने से रोके रहा। भोर के आस-पास मैं नील स्ट्रीट के अंतिम बैरिकेड की ओर बढ़ गया जहां मैंने युवाओं को आग के एक अलाव के इर्द-गिर्द सिमटे और गाते पाया, जब कि कुछ ही मीटर की दूरी पर दर्जनों सैनिक वाहन रुके हुए थे। कैंप लौट कर मैंने अपने दोस्तों को आश्वस्त किया कि आक्रमण असम्भव था। आधा घंटा से कम समय बीता होगा कि गोलियां चलने की आवाजें आने लगीं और जान बचा कर भागने की कोशिश में गिरते-पड़ते लोगों का हुजूम नजर आने लगा। उत्तर की दिशा से मिला-जुला सैन्य दस्ता धरने पर टूट पड़ा। हालांकि प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा पुष्टि की जा चुकी है कि धरने पर सबसे पहले आक्रमण करने वाले पुलिस की नीली वर्दी में थे, आक्रमण करने वाले समूहों की पहचान करने के लिये आधिकारिक जांच अभी भी जारी है। पुलिस अपनी संलिप्तता से इनकार करती है।

जब जबरिया धरना स्थल खाली कराने की कार्यवाही चल रही थी, धरने के प्रमुख आयोजक समूहों में से एक सूडानीज प्रोफेशनल्स एसोसिएशन (SPA), ने सूडानी सेना से "अपने कर्तव्य का निर्वाह करने और नागरिकों की टीएमसी मिलिशिया से रक्षा करने" की अपील की। मगर सेना मुख्यालय की हिफाजत कर रहे सैनिकों ने भागते हुए लोगों को कंपाउंड में नहीं घुसने दिया। मेरे दोस्त ने मेरे साथ अपनी कार की ओर बढ़ने की कोशिश की, मगर हम पब्लिक अस्पताल तक ही पहुँच पाये जहां घायल पहुँच रहे थे। अस्पताल में शरण लेने के बाद, अगले दस घंटे तक उसकी खिड़कियों से हमने जो कुछ भी देखा वह हमारे जीवन का भयावह त्रासद दुस्वप्न बन चुका है।

बाहर सेना के वाहन बिल्डिंग को बम से उड़ा देने की धमकी देते चक्कर लगा रहे थे। अंदर बचाव कार्यवाही चल रही थी। लाशों को एक अलग कमरे में रख दिया गया था, आपात मामलों का इलाज अलग जगह पर चल रहा था, रिसेप्शन घायलों से भरा पड़ा था, अस्पताल के कर्मचारी उन क्रांतिकारियों की मदद से, जो डॉक्टर और नर्स थे, इलाज की कोशिश कर रहे थे। दीवार पर टंगा टेलीविजन हमारे साथियों के कत्लेआम की खबरें दे रहा था। मेरा फोन बजा ; मेरी बहन बदहवास सी मेरे इस समय कहाँ होने की जानकारी लेना चाह रही थी। मैंने अपने लोगों की हालत के बारे में बताया और दूसरों की सुरक्षा का हाल-चाल लिया। मैंने कैरो अपनी पत्नी को फ़ोन कर के आश्वस्त करने के बाद चार्जिंग बचाने के लिये फ़ोन स्विच ऑफ कर दिया। इसके बाद मैं फर्श पर लेटा, और सो गया।

दिन बीतने तक, " फ़ोर्सेस ओफ़ फ़्रीडम एंड चेंज" (FFC), एक वृहत्तर राजनीतिक-ट्रेड यूनियन छतरी संगठन ने आम हड़ताल और नागरिक अवज्ञा आंदोलन शुरू करने के साथ ही सत्ता के साथ चल रही अपनी बातचीत रद करने की घोषणा की। गठबंधन के विचार में यह कत्लेआम पूरी तरह से पूर्वनियोजित था और सत्ता द्वारा अंजाम दिया गया था, जिसका नाम अब "कू (coup) काउंसिल" पड़ चुका था। गठबंधन ने "सूडानी मिलिट्री के संयुक्त बलों, जंजावीड मिलिशिया (जिसे RSF नाम से भी जाना जाता है), राष्ट्रीय सुरक्षा बलों, और अन्य मिलिशिया" को खारतूम नरसंहार के साथ-साथ एन नहुद, अतबारा,और पोर्ट सूडान सहित अन्य शहरों में किये गये हिंसक हस्तक्षेपों के लिये ज़िम्मेदार ठहराया। इस बीच टीएमसी प्रमुख ने भी अपना वक्तव्य जारी किया और वार्ता तोड़ दी। उसने नौ महीने के टाईम लाइन की घोषणा की जिसका अंतिम पड़ाव "क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय देखरेख" में चुनाव था।

मैं नहीं जानता, कितनी देर तक सोया रहा, मगर उठने के बाद मैं निचली मंज़िल (ग्राउंड फ्लोर) की ओर बढ़ा। जगह अभी भी घायलों से भरी हुई थी ; कुछ घायल अस्पताल के अहाते में बाहर थे। गोलियों की आवाज़ काफ़ी हद तक रुक चुकी थी, मगर धुवा अभी भी उठ रहा था। आक्रमणकारियों ने कैंप की जगह पूरी तरह नष्ट कर दी थी। थोड़ी देर बाद,जब हमने अस्पताल से बाहर निकलने की हिम्मत जुटाई, हम अपनी नष्ट हो चुकी जगह को जाने वाली सड़क की ओर खड़े थे। वह दृश्य कुछ साल पहले दारफुर में जलाये गये गाँवों की याद दिला रहा था। उस समय एक क्रांतिकारी नारा हुआ करता था : "ओह, तुम उद्दंड नस्लवादी,हम सब दारफुर हैं"। अब जा कर यह नारा पूरा हासिल हुआ है।

बाहर खड़े रहने के दौरान मैंने एक दस साल के लड़के को देखा, और उसके दोस्तों के बारे में पूछा। उसने बताया कि वे सुरक्षित थे,और फिर उसने जोड़ा "उन्होंने हमारे साथ गद्दारी की"। उसका कहना जैसे मेरे दिमाग में धंस गया। राजनीतिज्ञों और सेना की नीयत कभी भी हमारी अथवा धरने के अंदर विकसित हो रही राजनीतिक सामुदायिकता की रक्षा की नहीं थी। क्रांतिकारियों के पास राजनीतिक दूरदृष्टि की कमी नहीं थी : इस जुटावे को बिगाड़ने-बिखेरने के प्रयास धरना शुरू होने के साथ ही शुरू हो गये थे। यह हमारे उस विश्वास,और उत्साह के साथ विश्वासघात था जिसका प्रतिनिधित्व कैंप कर रहा था। हमें नहीं लगता था कि कोई निरीह जनता को भी मार सकता है।

सितंबर 2019 में,संक्रमणकालीन सरकार के प्रधानमंत्री, अब्दल्ला हमदोक ने नरसंहार की जांच का आदेश देते हुए, तीन सदस्यीय कमेटी बना कर उसे तीन महीने का समय दिया, जो एक बार बढ़ाया जा सकता था। कमेटी को अपनी जांच के नतीजे प्रकाशित करने थे। इसके बावजूद, 17 महीने बाद भी, कोई नतीजे बाहर नहीं आये हैं। विभिन्न रिपोर्टों में मृतकों की संख्या 100 से 150 के बीच बताई गयी है, और मेडिकल जांच बताती है कि औरतों और आदमियों को मिला कर बलात्कार के 70 मामलों के दस्तावेज़ी साक्ष्य हैं। मगर नवम्बर 2020 में एक अन्य सरकारी कमेटी ने एक सामूहिक कब्र का पता चलने की घोषणा की, जिसके फोरेंसिक श्रोत मृतकों के नरसंहार से जुड़ाव इंगित करते हैं। कब्र में लगभग 800 लाशें मिलीं हैं।

इस नरसंहार में हमने क्या खोया ? न केवल सैकड़ों जीवन,बल्कि सूडान के सभी के होने का मूल विचार भी। दिसम्बर 2018 में, जब से क्रांति शुरू हुई, क्षेत्रों और सीमाओं के सवालों ने लगातार पीछा किया है। ये सवाल नरसंहार के पूर्ववर्ती सप्ताहों में धरने में भी रहे हैं। धरने का क्षेत्र कहाँ से शुरू होता है? प्रतिरोधकर्ताओं की सुरक्षा कहाँ ख़त्म होती है? क्या कोई सीमा अपने अंदर क्रांतिकारी गतिविधियों को समेट सकती है? क्या इस सीमा के बाहर की सारी गतिविधियां इसलिये ग़ैरक़ानूनी और कानून व्यवस्था द्वारा हमला किये जाने योग्य थीं?

अपनी सीमाओं के भीतर, धरने ने सूडान का नया मानसिक नक्शा बनाया। यह एक ऐसे सूडान के विचार को अभिव्यक्त कर रहा था जिसका अस्तित्व अभी तक केवल विचारधारा और आशावादी फंतासी में ही था। वहाँ समूचा सूडान मौजूद था, न केवल क्षेत्रीय अर्थों में, बल्कि खेमों-टेंटों पर जातीय और भौगोलिक निशान लगे होने के बावजूद, एक तरल और उमंग-उत्साह के अर्थों में भी जो किसी बच्चे द्वारा खींचे गये सूडान के नक्शे की तरह निहित मानचित्रीय गल्प की रूढ़िवादिता को चुनौती दे रहा था।

यह वह बचकाना क्रांतिकारी नक़्शा था - अपने प्रतिबिंबों, प्रतिनिधित्वों,अभिव्यक्तियों और संभावनाओं के साथ - जिसने पुराने सत्ता तंत्र के अंदर भय और आशंका पैदा की और साथ ही परम्परागत पार्टियों की अक्षमता को भी उजागर किया जिनसे परिवर्तन का नेतृत्व करने की उम्मीद थी। संयुक्त सुरक्षा कमेटी,जिसमें सैन्य सत्ता और FFC गठबंधन दोनो ही शामिल थे, द्वारा निर्धारित धरना क्षेत्र की सीमाओं पर बातचीत, प्रतीकात्मक रूप से खुद देश के भाग्य पर बातचीत का प्रतिनिधित्व कर रही थी।

जब क्रांतिकारियों ने, 13 मई को धरना हटाने के पहले प्रयासों के बाद सुरक्षा कारणों से अपने बैरिकेड क्षेत्र को फैलाना शुरू किया, SPA के अंदरूनी अंतर्विरोधों के चलते उन्हें वापस मूल सीमा रेखाओं के अंदर जाने के लिये मजबूर होना पड़ा। यह मान्य "कब्जा"( occupied) वाली भौगोलिकता के इलाक़े से समूचे क्षेत्रों के समर्पण का संकेत था। और जब एनकैम्पमेंट के तुरंत उत्तर की ओर का एक क्षेत्र, कोलंबिया नाम के एक गरीब कस्बे को, जिसके साथ नकारात्मक नस्लीय और वर्गीय परम्परागत पहचाने जुड़ी हुई थी, जिनमे नशे की लत की कहानियां भी शामिल थी, सैनिक हस्तक्षेप का बहाना बना दिया गया, यह "मॉडरेट" प्रदर्शनकारियों द्वारा बुर्जुआ नैतिकता की बलिवेदी पर एक समूचे कस्बे की बलि चढ़ा देना था। निश्चित रूप से विभिन्न पार्टियों के - टीएमसी, FFC के अंदर मॉडरेटो, और रेडिकलों के दिमागों में सूडान के उनके अपने-अपने नक़्शे थे जो सूडानी समाज की अलग-अलग दृष्टियों का प्रतिनिधित्व करते थे। अभी तक यह प्रगतिशील धारा ही है जिसने धक्का खाया है। धरने को हिंसक ढंग से तितर-बितर करने के बाद की अगली सुबह,जब मैं अभी अस्पताल में ही था, मैंने हिंसक खून-खराबों के कई शहरों में फैल जाने और राजधानी की सड़कों पर RSF के कब्जे की खबरें सुनीं। खारतूम के निवासियों का RSF द्वारा उत्पीड़न एक सप्ताह से ज़्यादा चलता रहा।

आंदोलन अस्पताल के गेट के सामने काफी लोगों के जुट जाने के बाद दोबारा शुरू हो गया था। प्रवेशद्वार के सामने कुछ नागरिकों के साथ सेना के लोग पार्क किये हुए थे। बाद में हमें पता चला कि उनकी मौजूदगी अस्पताल के अंदर फंसे हुए नागरिकों की सुरक्षित निकासी के लिये थी। मेरे दोस्त की कार पूरी तरह नष्ट हो चुकी थी - गोलियों से छलनी और अंदर का सब कुछ लूटा हुआ। जो सैनिक हमारी सुरक्षित निकासी के लिये बातचीत चला रहे थे, उन्होंने मुझे लोगों को बाहर निकालने वालों के ग्रुप में शामिल होने से रोक दिया, मेरे लम्बे बालों की लटों के चलते, आरएसएफ जिसे दारफुरी मिलिटेंट की छवि समझ कर उत्तेजित हो सकता था! इसलिये उन्होंने मुझे वापस अस्पताल के अंदर जाने का हुक्म दिया। बाद में मैंने लोगों को ठीक इसी कारण से निशाना बनाए जाने की कहानियां सुनी।

मेरे शरीर और आत्मा पर थकावट का बोझ हावी हो चुका था। यह वह थकावट है जो आज तक खत्म नहीं हुई : मौत को इतने नजदीक से महसूस करने, अपने बगल में लाशों के रखे होने का एहसास होने, और अपने शरीर के हिस्सों के अलग हो जाने या घातक चोट पहुँचने के डर की त्रासदी को झेलने की हम लोगों में अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ हुईं। वे बहुत से लोग,जो उस दिन वहाँ थे, PTSD के लिये थेरेपी करा रहे हैं।मेरी साली ने, जो नरसंहार की खुद प्रत्यक्षदर्शी थी, हाल ही मुझे लिखा :

खारतूम नरसंहार मेरे जीवन के सबसे कठिन पलों में था, इन तमाम मौतों, विनाश,और नुकसान से घिरे होने का बोझ शायद उससे कहीं ज़्यादा है जो संभवतः कोई व्यक्ति सहन कर सकता है। यह एक ऐसा पल है जिसे मैं कभी नहीं याद करना चाहूँगी पर कभी भी नहीं भुला सकूँगी। नरसंहार के बाद मैं मिश्र लौट गयी - साइकोथेरेपी का इलाज शुरू करने के लिये। मनोविशेषज्ञ ने मुझे पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) बताया है। उसकी राय है कि मुझे दो हफ़्तों के लिये मनोचिकित्सा के अस्पताल में भर्ती हो कर दृश्य-श्रव्य विभ्रमों की आशंका, और अनिद्रा का इलाज करा लेना चाहिये। मैंने अस्पताल में भर्ती होने से मना कर दिया मगर अभी भी दवाएँ ले रही हूँ।

धरना क्रांति और राज्य के बीच की वह दूरी थी जिसे अनिवार्य रूप से पार करना था। यह उमंग और जश्न का वह 'स्पेस' था जहां पुराना खत्म होता था,और नया बनाया जा सकता था। इसका बिखरना इस प्रक्रिया में एक रुकावट का प्रतिनिधित्व करता है, या शायद इस प्रक्रिया को नये विचारों से भरता है। इसने निश्चित रूप से परिवर्तन के लिये राजनीतिक गठबंधन में अंतर्विरोधों को स्पष्ट किया है जो न केवल इतिहास को समझने के लिये, बल्कि भविष्य की योजना बनाने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण सबक हैं।

हमारे शरीर के घाव एक दूसरे नक्शे को प्रतिबिंबित करते हैं : वे उनकी कहानी बताते हैं जो वहाँ थे,और जो जीवित बच गए।

अमर ज़माल लेखक, अनुवादक और नृशास्त्र (ऐन्थ्रॉपॉलॉजी) के विद्यार्थी हैं। वह "अफ़्रीका इज ए कंट्री फ़ेलोस" के उद्घाटन कर्ता समूह के सदस्य हैं।

Available in
EnglishGermanFrenchHindiPortuguese (Brazil)Portuguese (Portugal)SpanishItalian (Standard)
Author
Amar Jamal
Translators
Vinod Kumar Singh and Surya Kant Singh
Date
08.04.2021
Source
Original article🔗
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