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पुलिस बर्बरता : कैसे दुनिया भर में प्रदर्शनकारी राज्य हिंसा का प्रतिरोध कर रहे हैं।

दुनिया भर के पुलिस बल प्रदर्शनों से निपटने की कार्यनीतियों को आपस में साझा कर रहे हैं - प्रतिरोधकर्ताओं को भी अपनी रक्षा के लिए ऐसा ही करना चाहिए।
इस साल की शुरूआत में, यूनाइटेड किंगडम में एक नया विधेयक " पुलिस, अपराध, सजा, और अदालतें" प्रस्तुत किए जाने के ख़िलाफ़ राष्ट्र्व्यापी प्रतिरोध प्रदर्शन हुए जिनका बर्बरता पूर्वक दमन किया गया।जब प्रदर्शनकारी सड़कों पर हिंसक पुलिस बलों की चुनौती का सामना कर रहे थे, नोवारा ने शेष दुनिया की ओर उनके साझा संघर्षों से सबक़ हासिल करने के लिए ध्यान केंद्रित किया।

म्यांमार

यांगून में एक 24 वर्षीय एनजीओ कार्यकर्ता, जो दो महीनों से लगातार हर रोज़ प्रतिरोध प्रदर्शन में भागीदारी कर रही है।

'एक वीपीएन हासिल करो, सिग्नल पर एकजुट हो,आंसू गैस को कोका-कोला से धो डालो और हर घटना की फ़िल्म बना लो'।

म्यांमार में हम सेना के 1 फ़रवरी को सत्ता हथिया लेने के बाद से ही देश भर में विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। पुलिस और सैनिकों की अनदेखी करते हुए, जो आबादी को मनमानी गिरफ्तारियों और हिंसा से आतंकित कर रहे हैं, लाखों लोग हर दिन सड़कों पर उतर रहे हैं।550 के आसपास लोग मारे जा चुके हैं।इन मारे गए प्रदर्शनकारियों में से अधिकांश प्रदर्शनों के दौरान पुलिस की गोली से मारे गए हैं।

हमें तेज़ी से, लचीलेपन और सृजनात्मकता के साथ गोलबंदी करनी थी, क्योंकि प्रशासन किसी भी तरह की गोलबंदी के दमन पर आमादा था, जिसमें समय-समय पर मोबाइल डेटा और वायरलेस इंटरनेट को बंद कर देना शामिल था।

सबसे पहले, हमने प्रदर्शनों के तालमेल- समन्वय के लिए फ़ेसबुक समूहों का इस्तेमाल किया, मगर इसने पुलिस के लिए घुसपैठ करना और संगठकों को शिकार बनाना आसान कर दिया (जिनमे से बहुत लोगों को खींच कर जेल में डाल दिया गया था, बहुतों को टॉर्चर किया गया और हत्या तक कर दी गयी)। इसलिए हम अब अपनी जगह की पहचान छिपाने और सिग्नल व टेलीग्राम जैसे सुरक्षित संदेश ऐप्स के जरिये संदेश संचार के लिए वीपीएनों का इस्तेमाल कर रहे हैं। मैं ग्रुप चैनलों में पोस्ट करती हूँ, मगर इन ग्रुपों में शामिल होने के लिए आप को किसी मित्र द्वारा जोड़ा जाना होगा जो आप की ज़मानत ले सके, और इस तरह संख्या बढ़ती जाती है। कुछ कार्यकर्ता और भी सावधानी बरतते हैं, और केवल मौखिक रूप से सूचनाओं का प्रेषण बेहतर मानते हैं - एक ऋंखला के रूप में - एक भरोसेमंद व्यक्ति से दूसरे तक, बिना पहले व्यक्ति की जानकारी के स्रोत की जानकारी के।इस तरह यदि कोई पकड़ा भी जाता है तो वह दूसरे के बारे में नहीं बता सकता।

हर दिन, नौजवान कार्यकर्ता इस आवेग को बढ़ाते रहने के लिए नए-नए आइडिया सोचते रहते हैं।आज, लोग हर जगह, साहस के प्रतिबिंब के रूप में लाल रंग पेंट कर रहे हैं। ईस्टर रविवार को उन्होंने अंडों पर प्रतिरोध के नारों को पेंट किया था। पिछले महीने, अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के लिये, उन्होंने खम्भों और वॉशिंग लाइनों पर महिलाओं के स्कर्ट टाँगे थे क्योंकि आदमी - पुलिस अधिकारियों और सैनिकों समेत - उनके नीचे से गुजरने में बेहद अंधविश्वासी-शंकालू होते हैं, उन्हें भय है कि यह उनकी मर्दानगी ख़त्म कर देगी।

सड़कों पर, लोगों को हम, रबर की गोलियों से हिफ़ाज़त के लिए कामचलाऊ ढाल और आँसू गैस के लिए मास्क उपलब्ध कराते हैं। इन अग्रिम मोर्चा पंक्तियों के पीछे, एक टीम पानी और गीले कंबलों के साथ आँसू गैस गोलों को बेकार करने के लिए तैयार रहती है। जब भी हमारी आँखों में आँसू गैस लग जाती है, हमने पाया कि इसे धो डालने के लिए कोका-कोला सबसे कारगर चीज़ है।

कभी-कभी हम पुलिस को डराने और उसका ध्यान बँटाने के लिए तेज आवाज़ वाले पटाखों का इस्तेमाल करते हैं, और खुद को छुपाने के लिए धुआँ करने के लिए टायर जलाते हैं।हम सड़कों को बैरिकेड लगा कर अवरुद्ध कर देते हैं।ये सभी चीजें एक सीमा तक तो काम करती हैं, मगर कभी-कभी हम भागने के अलावा कुछ नहीं कर सकते - पुलिस और सैनिक ज़िंदा गोलियों का इस्तेमाल कर रहे हैं, और उनकी बन्दूकों से खुद को बचाने के लिये हम कुछ नहीं कर सकते।

जनरलों को जनता का तनिक भी समर्थन नहीं है।वे राज्य- संचालित मीडिया के माध्यम से प्रोपेगैंडा-प्रचार करते हैं, स्पष्टतः यह सारा कुछ हास्यास्पद रूप से झूठ होता है ; इसे देख कर वितृष्णा सी होती है क्योंकि सत्य हर कोई जानता है। इसी के साथ उन्होंने स्वतंत्र मीडिया पर रोक लगा दी है और पत्रकारों के दमन पर टूट पड़े हैं। इसलिए हम लोगों को नागरिक पत्रकारों पर ही भरोसा करना होता है, जो अपने फ़ोन का, जो कुछ भी हो रहा है, उसे रिकॉर्ड करने के लिए इस्तेमाल करते हैं।ऐसे भी बहुत सारे लोगों को अब गिरफ़्तार किया जा रहा है, मगर तब हमेशा ही आम जनता से और ज़्यादा लोग आगे आने के लिए तैयार रहते हैं। समाचार एजेंसियां उनके वीडियो और फ़ोटो पर भरोसा करती हैं, जिन्हें हम सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं।

ग्रीस

एथेंस की एक अकादमिक और कार्यकर्ता

'एक ब्लॉक बनाओ और एकसाथ एकजुट रहो, मास्क लगाओ, ग्राफ़िती के माध्यम से अपनी पहचान चस्पा करो, प्रमाण जुटाओ - और कभी हिम्मत मत हारो'।

ग्रीस पिछले साल से ही जब-तब राष्ट्रीय स्तर पर लॉकडाउन में है, वर्तमान लॉकडाउन पिछले पाँच महीने से चल रहा है।नागरिक स्वतंत्रता और आवागमन की आजादी रात्रि कर्फ़्यू जैसे तमाम उपायों के जरिये बहुत कुछ हद तक बाधित है।लोगों को केवल सीमित समय के लिए अपने घर से बाहर निकलने की अनुमति है, केवल बेहद ज़रूरी-ख़ास कामों के लिए, और वह भी सम्बंधित निगरानी प्राधिकारी को एसएमएस भेजने के बाद। पुलिस को इन उपायों को लागू कराने की ज़िम्मेदारी दी गयी है, जिसके चलते ताक़त के दुरुपयोग के कई मामले सामने आए हैं।

इसी के साथ, सरकार ने अकादमिक संस्थानों पर नज़र रखने के लिए अलोकप्रिय क़ानून पारित किया है, और ग़ैर-संवैधानिक तरीक़े से विरोध की स्वतंत्रता का अपराधीकरण किया है। विरोध- प्रतिरोध के किसी भी प्रारूप पर - स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा और अधिक पीपीई की माँग से ले कर हाल ही में हुए फ़ासीवाद विरोधी / जनतंत्र समर्थक छात्र प्रदर्शनों-कार्यवाहियों पर - पुलिस की प्रतिक्रिया शून्य सहनशीलता और अक्सर हिंसा के अतिरेक इस्तेमाल की रही है।

पुलिस हिंसा और बर्बरता का इतिहास ग्रीस में पुलिस बल के जन्म तक जाता है। दिसम्बर 2008 के दंगों से ही, जो अलेक्जांद्रोज ग्रिगोरोपूलोस की पुलिस द्वारा हत्या के चलते भड़क उठे थे, हेलेनिक पुलिस बल लगातार ज़्यादा से ज़्यादा उपकरण हासिल करते हुए प्रभावी रूप से खुद को सैन्यीकृत बल के रूप में बदलता जा रहा है। पुलिस हिंसा अधिकांशतः क़ानूनी जाँच के दायरे से बाहर बनी रहती है।

Police hit an old man in Athensदंगा पुलिस 2010 में एथेंस में प्रदर्शनों के दौरान एक वृद्ध व्यक्ति पर वार करते हुए ( क्रिएटिव कॉमन्स)।

सार्वजनिक प्रदर्शनों का ग्रीस के प्रतिरोध में हमेशा केंद्रीय महत्व रहा है। ये प्रदर्शन नियमित रूप से अपने पीछे ग्राफ़िती की निशानियाँ छोड़ जाते हैं, और इस तरह से विद्यमान मुद्दों का एक शहरी दृश्य भंडार बना देते हैं - चाहे वे शरणार्थी अधिकार हों, पुलिस बर्बरता हो, पर्यावरण विनाश हो, एलजीबीटीक्यू अथवा क़ैदी अधिकार हों - ऐसे तमाम मुद्दे, जिनकी मुख्यधारा मीडिया द्वारा नियमित रूप से उपेक्षा की जाती रही है।

कार्यकर्ता, और अब तमाम पड़ोसी और राहगीर भी, अपने फ़ोन पर पुलिस बर्बरता की घटनाओं को रिकार्ड कर लेते हैं, और सोशल व जनतंत्र समर्थक-सहयोगी मीडिया पर उन्हें प्रचारित कर देते हैं। हाल के महीनों में हिंसक घटनाओं की पूरी ऋंखला सार्वजनिक विमर्श के क्षेत्र में केवल इसके चलते पहुँच पाई कि नागरिकों ने अपने सोशल मीडिया पर इनके फूटेज शेयर किए जिन्हें राष्ट्रीय मीडिया द्वारा उठा लिया गया। अक्सर सोशल मीडिया विडीओ अदालतों में बहुत काम आते हैं जब गिरफ़्तार लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस पर हमला करने के झूठे आरोप मढ़े जाते हैं।

व्यापक जन प्रदशनों पर पुलिस हमले की चुनौती में सबसे प्रमुख कार्यनीति जहां तक सम्भव हो सके, एक ब्लॉक के रूप में आपस में एकजुट रहना और व्यवस्थित ढंग से पीछे हटना है। कुछ मामलों में प्रदर्शनकारी पुलिस को पीछे धकेलने की कोशिश करते हैं, जिससे लोगों को पीछे हटने के लिए कुछ समय मिल सके।अभी हाल में एक राजनीतिक कलेक्टिव ने पाया कि उसके एक सदस्य को ग़ैर- क़ानूनी ढंग से पुलिस द्वारा हिरासत में ले कर कई दिनों तक बुरी तरह से पीटा जा रहा था, इस मामले में पुलिस के ख़िलाफ़ सामूहिक रूप से कानूनी मुक़दमा दर्ज कराने का फ़ैसला लिया गया है।

पुलिस बर्बरता, हिंसा के अनेक रूपों में से एक है।अधिकार ग्रुपों के कार्यकर्ताओं और अकादमिकों के वाहन पर ख़ुफ़िया ट्रैकिंग डिवाइस लगा दिए जाते हैं, और कार्यकर्ताओं के नाम व प्लेट नम्बर प्रकाशित कर के उन्हें निशाना बनाया जाता है। प्रतिरोध की एक प्रमुख कार्यवाही आतंकित-पैनिक होने से इंकार करते हुए, इन व्यवहारों के ख़िलाफ़ ज़्यादा से ज़्यादा प्रचारित- प्रसारित करना और सामाजिक व राजनीतिक रूप से सक्रिय बने रहना है।

हाल ही में लोग सिग्नल जैसे ज़्यादा सुरक्षित संचार नेटवर्क ज्वाइन करने लगे हैं, और अपनी वैयक्तिक सुरक्षा व संरक्षा के प्रति ज़्यादा सजग हुए हैं। सड़कों पर उतरते समय,अधिकांश लोग अपनी पहचान छिपाने और खुद को आँसू गैस से बचाने में चेहरा ढँकने के लिए स्कार्फ़ रखते हैं। जलन के प्रभाव को कम करने के लिए वे मालॉक्स या रीयोपान जैसे पेट के एंटासिड का इस्तेमाल करते हैं।

ग्रीस में कार्यकर्ता जानते हैं, उन्हें मैदान नहीं छोड़ना है, वे भयभीत हों तब भी। टूटी हुई हड्डी, टूटी हुई चेतना से कहीं ज़्यादा तेज़ी से जुड़ती है।यह यूँही हलके में नहीं कहा जा रहा है ; 27 वर्षीय वासिल्लिस माग्गो जैसे युवाओं की पिछले वर्ष पुलिस की मार से मौत हो चुकी है। इसके बावजूद, न्याय के लिए सामूहिक रूप से गोलबंद हो कर आगे बढ़ना पुलिस बर्बरता की चुनौती के ख़िलाफ़ सबसे प्रभावी, और व्यवस्था जन्य दमन के ख़िलाफ़ भी सबसे कारगर उपायों में से एक है।यदि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और साझा-सक्रिय सामाजिक विमर्श पर पुलिस की ज्यादतियों का भय हावी हो जाता है, हम प्रभावी रूप से अधिनायकवाद की विजय के लिए जगह दे रहे होंगे।

संयुक्त राज्य अमेरिका

जासों पेरेज़, दि एफ्रो-सोशलिस्ट & सोशलिस्ट्स ओफ़ कलर काकस ऑफ़ दि डेमोक्रेटिक सोशलिस्ट्स ऑफ़ अमेरिका के साथ सक्रिय अबोलिशन संगठक हैं।

'सड़क के प्रतिरोध प्रदर्शनों का उद्येश्य सड़कों को अपने नियंत्रण में लेना है - पुलिस के साथ कोई तालमेल- समन्वय नहीं करना है, उन्हें पूरी तरह से रोक देना है।'

एक ऐसे व्यक्ति के रूप में, जिसे पहले जेल भेजा जा चुका है, मैं यूएस में अभी क़रीब बीस वर्षों से अबोलिशन संगठन का काम करता आ रहा हूँ - पुलिस विरोधी, गिरफ़्तारी और जेल विरोधी सांगठनिकता का काम।सड़कों पर प्रदर्शन हमेशा ही इसका बड़ा हिस्सा रहा है, और ये प्रदर्शन फर्ग्युसन, मिसौरी में 2014 में एक पुलिस अधिकारी द्वारा माइकल ब्राउन की सांघातिक रूप से गोली मार कर हत्या कर दिए जाने के बाद से लगातार बढ़ते गए हैं।

संगठकों के लिए सबसे ज़रूरी इस बात को जानना है कि कैसे दीर्घजीवी आंदोलनों का निर्माण किया जाए। व्यापक जन प्रदर्शनों के अक्सर स्वतः स्फूर्त विस्फोट हो उठते हैं, मगर ताकतवर आंदोलन खड़ा करने के लिए हमें लगातार चलने वाले अभियानों की ज़रूरत होती है - जैसे पुलिस विभाग का वित्तपोषण बंद किए जाने (डीफ़ंड) या पुलिस के ख़िलाफ़ लगातार सीधी कार्यवाहियाँ संचालित करने के अभियान।इन अभियानों को संगठन के रूप में आबद्ध होना चाहिए, बिल्कुल, - मगर उन्हें हर किसी के लिए खुला भी होना चाहिए।वे हमें दीर्घकालिक आधार पर आंदोलनों को मज़बूत करने में सहायक हो सकते हैं, दोनो ही स्तरों पर - न केवल नियमित रूप से सीधी कार्यवाही का प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने जैसी कार्यनीतियों के मामलों में - बल्कि पुलिस बर्बरता और पूंजीवाद, पुलिस बर्बरता और जलवायु परिवर्तन और अन्य तमाम क्षेत्रों के बीच अंतर्संबंधों को ले कर वृहत्तर राजनीतिक शिक्षण चलाने के स्तर पर भी।

Protesters lie on the floor at a defund the police protest.वाशिंगटन डीसी में प्रदर्शनकारी जून 2020 में ' पुलिस को डी-फंड करो' शब्दावली के चारो ओर ज़मीन पर लेटे हुए हैं।( जेफ़ लिविंस्टोन / फ़्लिकर)

मैं उस विचारधारा का समर्थक हूँ जिसका विश्वास है कि सड़कों पर प्रदर्शन का उद्देश्य सड़कों का नियंत्रण अपने हाथ में लेना है।हम यहाँ पुलिस को सड़कों का नियंत्रण करने की अनुमति देने के लिए नहीं हैं, और न ही हम यहाँ उनके साथ तालमेल करने ले लिए हैं।जैसे ही आप पुलिस के साथ तालमेल करने लगते हैं, आप व्यापक नागरिक अवज्ञा नहीं कर रहे होते हैं - आप एक दिखावा कर रहे होते हैं।

रणनीति के स्तर पर, इसलिए मेरा तर्क है कि ठीक उसी तरह से, जैसे हड़तालों का लक्ष्य कार्यस्थलों को बंद कर देना होता है, अथवा पर्यावरण प्रदर्शन जीवाश्म ईंधन अधिसंरचना को बंद करने की ओर लक्षित होते हैं, अबोलिशन संगठकों का उद्येश्य पुलिस और पुलिस स्टेशनों को अपने प्रतिरोध का निशाना बनाते हुए पुलिस स्टेशनों को बंद कराना होना चाहिए।

प्रतिरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस बर्बरता का सामना करने के लिए सहायक संकेतों के रूप में, एक कार्यनीति अन्य प्रदर्शनकारियों को पुलिस की गिरफ़्तारी से छीन-छुड़ा लेने की हो सकती है। यदि आप का कोई दोस्त पुलिस चंगुल में फँस गया है, खासकर तब, जब पुलिस हिंसक रूप से उग्र हो उठी हो, तब आप का पहला काम अपने दोस्त और पुलिस के बीच जितना ज़्यादा से ज़्यादा सम्भव हो सके, शरीरों को अड़ा देना होगा। फिर आप चाहेंगे की पुलिस ज़्यादा से ज़्यादा लोगों से घिरती चली जाए जो पुलिस द्वारा पकड़े गए लोगों को छुड़ाने के लिए अधिकतम सम्भव दबाव बनाने के लिए लगातार ' उन्हें छोड़ो, उन्हें छोड़ो' का शोर मचाते रहें। गिरफ़्तारी से छीन- छुड़ा लेने के लिए अभ्यास की ज़रूरत पड़ती है, हालाँकि - यही इसके सफल होने के लिए एकमात्र रास्ता भी है।

फिलिस्तीन

रिया अल'सना ,डब्लूएचओ प्रॉफ़िट रीसर्च सेंटर में शोध समन्वयक और फ़िलिस्तीनी शोधकर्ता है।

'पुलिस को विशिष्ट संदर्भ में समझो, एक व्यापक अंतर्गुँथित ( इंटरसेक्शनल) जन आंदोलन खड़ा करो, और हमेशा आशावान बने रहो।'

1948 के फ़िलिस्तीन (आज के इज़राइल) में बीस लाख के आसपास फ़िलिस्तीनी रह रहे हैं। यहाँ इज़राइली सेटलर- बस्ती राज्यतंत्र का सुरक्षा बंदोबस्त जो हम पर शासन करता है, इज़राइली पुलिस है।वेस्ट बैंक और ग़ाज़ा पट्टी में सेना का शासन है। फ़िलिस्तीन'48 में, इज़राइली पुलिस दो ख़ास तरीक़ों का इस्तेमाल हिंसा तेज करने और फ़िलिस्तीनियों के दमन के लिए कर रही है।एक तरीक़ा फ़िलिस्तीनी समुदाय के अंदर अंतर-सामुदायिक हिंसा को बढ़ावा देने के लिए हथियारों के प्रसार को बढ़ावा देना है, जो पिछले पाँच या छः सालों में भयावह तेज़ी से बढ़ा है। दूसरा तरीक़ा अपनी नस्लीय पुलिस कार्यवाहियों में फ़िलिस्तीनियों को निशाना बनाना है। अभी कुछ ही दिन हुए, मुनीर अनाबतवी, हाइफ़ा के एक युवा की,जो मानसिक स्वास्थ्य की समस्याओं से पीड़ित था, जब उसकी माँ इज़राइली पुलिस से उसे अस्पताल ले जाने में मदद की गुहार लगा रही थी, इज़राइली पुलिस द्वारा गोली मार कर हत्या कर दी गयी।अनाबतवी को पाँच जगह गोली मारी गयी थी - तीन गोलियाँ पीछे, और दो छाती में। उसे देखभाल- अस्पताल की जरूरत थी, इसके बदले इज़राइली पुलिस द्वारा उसकी हत्या कर दी गयी।यह कोई अकेला मामला नहीं है।2012-2017 के बीच इजरायली पुलिस द्वारा मारे गए 70% लोग फ़िलिस्तीनी हैं, इसके बावजूद कि इजरायल की आबादी में उनका प्रतिनिधित्व केवल 20% है।

आंदोलन अब इन संख्याओं को उनके सही संदर्भ में प्रस्तुत करते हुए उनका राजनीतिकरण कर रहा है।हम पुलिस सुधारों की बात नहीं कर रहे, हम पुलिस के बारे में एक ऐसी संस्था के रूप में बात कर रहे हैं जो उस इज़राइली सेटलर-बस्ती राज्यतंत्र का अंतर्निहित तत्व है जिसके अधीन हम रह रहे हैं - एक ऐसा संस्थान जो फ़िलिस्तीनियों को लगातार निशाना बनाए हुए है - न केवल फ़िलिस्तीन'48 में, बल्कि वेस्ट बैंक और ग़ाज़ा में भी - एक ऐसी सामूहिकता के रूप में निशाना - जिस पर नियंत्रण किया जाना है, हमेशा नज़र रखनी है, और दमन किया जाना है। पुलिस कभी भी हमारी सुरक्षा नहीं करेगी, और न ही इजराइली राज्यतंत्र हमें कभी न्याय देगा। इसलिए सवाल उठता है : हम खुद को सुरक्षित रखने के लिए अपनी खुद की संस्थाएँ और संरचनायें किस तरह निर्मित करें ? यह फ़िलिस्तीनी राजनीतिक नेतृत्व के कुछ हिस्सों की उस प्रवृत्ति से बिल्कुल भिन्न है जिसमें वह पिछले बीस वर्षों से राज्य के परिसीमन के अंदर समाहित-समायोजित होने का प्रयास कर रहे हैं।

Israeli police officers in Jerusalemजेरूसलम में इज़रायली पुलिस अधिकारी ( क्रिएटिव कॉमन्स)

आंदोलन आज राजनीति करने और शक्ति हासिल करने के वैकल्पिक तरीक़ों को विकसित करने का प्रयास कर रहा है, न केवल खुद को यहाँ और अभी सुरक्षित रखने के लिए, बल्कि एक कहीं ज़्यादा आज़ाद और ज़्यादा न्यायपूर्ण भविष्य हासिल करने के लिए भी।उम्म अल- फ़ाहम शहर में बहुत सारी सांगठनिक गतिविधियां चल रही हैं, जहां पिछले दो महीनों से लगातार सार्वजनिक सभायें और साप्ताहिक प्रदर्शन आयोजित हो रहे हैं।उल्लेखनीय यह है कि, इस दौर में शहर में हिंसा भारी पैमाने पर घटी है।

मेरे पास संगठकों के लिए तीन सुझाव हैं।पहला राज्यतंत्र के लिए पुलिस का काम करने वाली एक संस्था के रूप में पुलिस की भूमिका से परे जा कर आप को पुलिस बर्बरता की जड़ों की पड़ताल करनी होगी। दूसरा, एक व्यापक जन आंदोलन निर्मित करना, जो पुलिस बर्बरता की बहु-स्तरीय प्रकृति और जिस तरह से यह नस्ल, वर्ग और जेंडर के साथ अंतर्गुँथित रहती है, उसका विकल्प बन सके।तीसरा हमारे आंदोलनों पर अपनी उम्मीद केंद्रित किए रहना है।हम संघर्ष में केवल इसलिए नहीं उतरते कि उन दमन और शोषणकारी संरचनाओं को ध्वस्त कर सकें जिन्होंने हमारा जीवन नर्क बना रखा है, बल्कि इसलिए भी कि हम एक बेहतर भविष्य का निर्माण कर सकें।पुलिस बर्बरता का प्रतिरोध करना और इसके उच्छेद का आह्वान करना, इस प्रक्रिया का ही एक अंग है।

नाइजीरिया

बेंगा कोमोलाफे, फ़ेडरेशन ओफ़ इन्फ़ॉर्मल वर्कर्स ऑर्गनायज़ेशन ऑफ़ नाइजीरिया ( FIWON) के महासचिव हैं।

Nigerian police officersनाइजीरियायी पुलिस अधिकारी (AU-UN IST : फ़ोटो / तोबिन जोनेस)

'सोशल मीडिया का इस्तेमाल पुलिस बर्बरता को उजागर करने के लिए करो, और प्रदर्शनकारियों की सहायता के लिए फंड इकट्ठा करो।'

जहां तक मैं याद कर पाता हूँ, पुलिस बर्बरता नाइजीरिया में रोजमर्रा के जीवन का हिस्सा बन चुकी है - पुलिस की गोलीबारी, चेक नाका पर पुलिस द्वारा नागरिकों को नुक़सान पहुँचाना। देश की कुख्यात पुलिस यूनिट, दि स्पेशल एंटी-रॉबरी स्क्वॉड- या SARS - की ज़्यादतियों के सामने आए नए मामलों - और लगातार बिगड़ती हुई आर्थिक दशाओं ने पिछले अक्टूबर में नाइजीरिया वासियों की बहुसख्या को SARS और व्यापक पैमाने पर फैलती आर्थिक असमानता दोनो के ख़िलाफ़ विशाल विस्फोटक आंदोलन के लिए मजबूर कर दिया।

# सार्स ख़त्म करो (#End SARS) प्रतिरोध तब अपने आप में अभूतपूर्व पैमाने पर राज्य हिंसा के परिक्षेत्र बन गए। 20 अक्टूबर को, लागोस में लेक्की टोल नाका पर धरने पर बैठे नौजवान प्रदर्शनकारियों की भीड़ का नरसंहार कर दिया गया, जब सेना के वाहनों ने निकलने के दोनो ओर के रास्ते ब्लॉक करके गोलीबारी शुरू कर दी।अगले दिन, लागोस और देश के अन्य तमाम राज्यों में सैकड़ों और लोग मार डाले गए, परंतु सरकार ने इन सारी मौतों से इंकार कर दिया। इस बर्बरता से राष्ट्र भर में प्रतिरोध प्रदर्शन और उग्र हो गए, जिनके दौरान उन प्रमुख राजनेताओं के घरों और गोदामों को गुस्साई भीड़ द्वारा निशाना बना कर लूट लिया गया जिन्होंने कोविड-19 राहत सामग्रियों की भारी जमाखोरी कर रखी थी।

End SARS protest, LagosSARS ख़त्म करो प्रदर्शन, लागोस ( क्रीएटिव कामन्स)

बहरहाल, ऐसी कई महत्वपूर्ण चीजें हैं जो नाइजीरिया में प्रदर्शनकारियों के पक्ष में हैं। इनमे से एक सोशल मीडिया है। हज़ारों की संख्या में युवा, जो अपने स्मार्ट फोनों पर हिंसा के फ़ोटो और विडीओ ले कर फ़ेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर पर अपलोड कर रहे हैं, पुलिस बर्बरता को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।इसके अतिरिक्त, इन विडीओ ने सरकार के झूठों को इस हद तक बेनक़ाब कर दिया है कि नाइजीरिया का राजनीतिक तबका अपनी विश्वसनीयता पूरी तरह से खो चुका है।

प्रतिरोध आंदोलन को टिकाए रखने में महिलाओं की भूमिका पर भी बल दिया जाना ज़रूरी है - विशेषकर 'फ़ेमिनिस्ट कोलिशन' का, जिनमे से बहुत सी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर - विभिन्न देशों में रहते हुए काम कर रही हैं। कोलिशन ने प्रदर्शनकारी समूहों के समर्थन के लिए- जिसमें भोजन की व्यवस्था,गिरफ़्तार लोगों के लिए क़ानूनी सहायता, और घायलों के चिकित्सा व्यय का भुगतान शामिल है, लाखों डॉलर की राशि जुटाई है।

यूके में पुलिस हिंसा स्वाभाविक रूप से नाइजीरिया की स्थिति से बिल्कुल अलग है - नाइजीरिया में पुलिस कहीं ज़्यादा बर्बर और भ्रष्ट है - यहाँ के ऐसे कई महत्वपूर्ण सबक़ हैं जो आंदोलनों को टिकाए रखने के लिए ज़रूरी हैं।

चिली

क्लाउडिया मेंडेज,अक्टूबर 2019 से शुरू हुए प्रतिरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाली एक एक्टिविस्ट है।

Police contain a protest in Chileचिली में 2018 में हुए एक प्रदर्शन के दौरान पुलिस ( क्रिएटिव कॉमन्स)

"आपस में तालमेल और समन्वय बनाओ, आँसू गैस गोलों को बेकार कर दो, ईंटें जुटाओ और बैरिकेड तैयार करो।'

18 अक्टूबर 2019 को छात्रों के नेतृत्व में "एस्तालिदो सोशल' प्रोटेस्ट" , जिसके चलते भड़की हिंसा अब तक जारी है, के बाद से पुलिस बर्बरता अपने चरम पर पहुँच गयी।वैसे गरीब वर्गों के ख़िलाफ़ पुलिस ज्यादतियाँ चिली में हमेशा से होती आई हैं। एस्तालिदो सोशल ने सिर्फ़ इस हिंसा को और भी ज़्यादा स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया है : रबर की गोलियों से हज़ारों लोग अपनी आँखें गँवा चुके हैं ; 40 की मौत हो चुकी है ; हज़ारों की गिरफ़्तारी हुई है।मापुचे जनजाति के लोगों के साथ भी बर्बर पुलिस हिंसा हुई जिनके इलाक़े को सेना की छावनी में बदल दिया गया है।

बहुतेरे कारकों ने 18 अक्टूबर के विस्फोट को जन्म दिया। चिली में भयावह आर्थिक असमानता है : आधारभूत सेवाओं का निजीकरण, न्यून वेतन, सामाजिक आवास, सार्वजनिक शिक्षा, और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था के साथ तमाम समस्याएं। इसके अतिरिक्त बहुत सारी पर्यावरणीय समस्याएं भी हैं : प्राकृतिक संसाधनों का विदोहन, जंगलों की कटाई, पानी का अभाव

यह श्रमशील वर्ग का आंदोलन है,जिसका काफ़ी हद तक रिश्ता राजनीतिक पार्टियों के प्रति विक्षोभ- असंतोष से है।युवा एक्टिविस्टों का एक बहुत रेडिकल, ताकतवर समूह है - 'ला प्रिमेरा लीनिया' ( अग्रिम पंक्ति - दि फ़्रंटलाइन), - ये सेंट्रल सेंटियागो में 'प्लाज़ा डे ला डिग्नीदाड' के प्रदर्शनकारी हैं। इन्होंने पुलिस के साथ तीखी झड़पों सहित मोर्चा लेते हुए अपना प्रतिरोध लगातार टिकाये रखा है। धन्यवाद कि इसके चलते,शांतिपूर्ण प्रदर्शन करना भी संभव हो पाया है।

Riot police at a protest in Chileचिली में एक प्रदर्शन के दौरान दंगा पुलिस ( सिमेनान/ फ़्लिकर)

तालमेल- समन्वय के नए-नए प्रारूप बन रहे हैं : लोग अपनी विशिष्ट भूमिकायें ले रहे हैं - उदाहरण के लिए, कुछ लोग आँसू गैस गोलों को निष्क्रिय करने के प्रभारी हैं, तो कुछ अन्य ईंटें जुटाने के।स्वतःस्फूर्त- तात्कालिक सांगठनिकता भी बनती दिख रही है।सैंटियागो के आसपास, विपन्न इलाक़ों में बहुत सारे बैरिकेड लगाए गए हैं, जहां युवा पुलिस से मोर्चा लेने के लिए इंतज़ार करते हैं।

आने वाले चुनावों में, लोग तथाकथित ' कंस्टिचुएँट' के लिए वोट करेंगे जो नया संविधान लिखेंगे - इसे एस्तालिदो सोशल की विजय के रूप में माना जा रहा है।मगर बहुत से लोग इसे एक रियायत के रूप में देख रहे हैं, क्योंकि स्वतंत्र उम्मीदवारों का इसमें प्रवेश कर पाना बहुत कठिन है।चुनाव को ले कर गहन अविश्वास और असंतोष बना हुआ है, यहाँ तक कि प्रतिरोध की एक रणनीति के रूप में भी यह व्यर्थ हो सकती है। हो सकता है,पेंडेमिक के बाद, एक दूसरा एस्तालिदो सोशल खड़ा हो सके।

कोलम्बिया

जुआन डेविड पारामो, 2019 से प्रतिरोध प्रदर्शनों में सक्रिय एक मेडिकल स्वयंसेवक हैं जो पुलिस बर्बरता के ख़िलाफ़ सितंबर 2020 के प्रदर्शनों में विशेष रूप से सक्रिय थे।

Colombia's special riot police, ESMAD, line up in Bogotaकोलम्बिया की विशेष दंगा पुलिस, एसमाद ( ESMAD) बोगोटा में मोर्चा बांधे हुए।(क्रिएटिव कॉमन्स)

'अपनी कार्यनीतियों का विविधीकरण करो जिनमे रैलियाँ, असेम्बलियाँ, हड़तालें, मुठभेड़ें , बैरिकेड, और राजमार्गों पर क़ब्ज़ा शामिल हो।

कोलम्बिया अपने वर्तमान में सार्वजनिक जीवन के सैन्यीकरण और आलोचना-असहमति की आवाज़ों के दमन के लिए राज्य संरचनाओं के इस्तेमाल के दौर से गुज़र रहा है।इन नीतियों के लिए दुश्मन युवा और वह हर व्यक्ति है जो व्यवस्थानिक राज्यतंत्र का आलोचक है। इस संदर्भ में, ESMAD, (मोबाइल एंटी- डिस्टरबेंस स्क्वाड्रन) का निर्माण एक सार्वजनिक व्यवस्था डेप्लॉयमेंट बल के रूप में किया गया है जिसकी हत्याओं और भ्रष्ट ज्यादतियों के चलते कटु आलोचना हुई है। इसका मूल उद्देश्य जनता के असंतोष का दमन है।

पुलिस हिंसा के प्रतिरोध की रणनीतियों के मामले में, हमारे पास सामूहिक कार्यवाहियों का एक भंडार ( रेपर्टरी) है - रैलियाँ, असेम्बलियाँ, हड़तालें, ' ट्रोपेलेज़' ( पुलिस के साथ मुठभेड़), बैरिकेड, और राजमार्गों पर क़ब्ज़ा। इस समय हम जो देख रहे हैं, वह पीछे के प्रतिरोध के सारे तरीक़ों का एक साथ मिल जाना है - 1977 की नागरिक हड़ताल, सार्वजनिक विश्वविद्यालयों की झड़पें। इन सारे अनुभवों के सबक़ का इस्तेमाल आंदोलन की सुरक्षा और उसे मज़बूत बनाने के लिए किया जा रहा है।

Colombian police take part in a training exercise.प्रशिक्षण अभ्यास में भाग लेते हुए कोलम्बियाई पुलिस (क्रिएटिव कॉमन्स)

'लोस एस्क्यूदोस अजुलेस' ( नीली ढालें - दि ब्लू शील्ड्ज़) समूह की हाल में स्थापना पुलिस हमलों से आंदोलन की सुरक्षा के लिए की गयी है। ये वे युवा हैं, जो खुद को बचाए रखने के लिए हुड पहनते हैं ; यह सबक़ उन्हें आँख की चोट ( आँसू गैस से) जैसी चोटें झेल चुकने के चलते मिला है, उदाहरण के लिए आजकल अधिक से अधिक प्रदर्शनकारी सुरक्षात्मक परिधानों का प्रयोग कर रहे हैं।आंदोलन की एक और महत्वपूर्ण रणनीति, जिसके सबक़ कोलम्बिया के किसान और मूल निवासी प्रतिरोध संघर्षों से हासिल किए गए हैं, मानवाधिकारों, संचार, और स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर 'टीमें' बनाना है।

जब लोगों का पुलिस से मुठभेड़ का भय कम होने लगता है, हिंसा की घटनाओं में वृद्धि होने लगती है। ज़्यादातर मामलों में, प्रदर्शनकारी, पत्थर फेंकते हैं - और तब ESMAD पहुँच कर गोलियाँ चलाना शुरू कर देती है, जिसमें पैलेट और शीशे के टुकड़े होते हैं, जिसने बहुतों की जानें ले ली है।या फिर, प्रदर्शनकारी मोल्तोव बम फेंकते हैं। निश्चित रूप से यह ख़तरनाक है, मगर आप को उस ख़तरे का आकलन करना होता है, जिसका आप सामना कर रहे होते हैं। यदि अधिकारी उग्र हिंसा पर उतारू हो गए हैं तो प्रदर्शनकारियों को इन कार्यनीतियों का अपनी आत्मरक्षा में इस्तेमाल करना ही पड़ता है।

शॉर्लट इंग्लैंड, क्लेर हाइमर, रिव्का ब्राउन, केमिल्ले मिजोला और सोफी के. रोज़ा ने इस लेख में योगदान किया है।

Available in
EnglishItalian (Standard)FrenchGermanHindiTurkishPortuguese (Portugal)Portuguese (Brazil)
Translators
Nivedita Dwivedi and Vinod Kumar Singh
Date
01.06.2021
Source
Novara MediaOriginal article🔗
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