सम्पादकीय टिप्पणी : यह आलेख हमारे वायर पार्टनर "दि नेशन' द्वारा प्रकाशित मूल आलेख का संक्षिप्त संस्करण है। आप अंग्रेज़ी में पूरा आर्टिकल यहाँ पढ़ सकते हैं :
छुरी और कुल्हाड़ों से लैस, कम से कम चार आदमी एने जॉनसन के घर में ज़बरदस्ती घुस आये। उन लोगों ने उसके पति और 11 साल के लड़के को शयनकक्ष में और एने व उसकी किशोरवय बेटियों को अलग कमरे में बंद कर दिया। वह निश्चित रूप से नहीं बता सकती कि जिन लोगों ने उसका, उसके पति और उसकी बेटियों का बलात्कार किया, वे उसके सहकर्मी थे या नहीं। एने की गवाही के अनुसार "वे स्थानीय बोली बोल रहे थे", मगर " चूँकि उन्होंने हमारी आँखो पर पट्टी बाँध रखी थी, इसलिये हम नहीं देख पाये की वे कौन लोग थे।"
2007 तक, जब यह हमला हुआ, एने और उसका पति, मकोरी (परिवार को प्रतिक्रिया के ख़तरे से सुरक्षित रखने की दृष्टि से नाम बदल दिये गये हैं), एक दशक से ज़्यादा समय से यूनिलिवर, लंदन मुख्यालय वाले विशालतम गृह-उपयोगी सामानों का कारपोरेट, जो लिपटन चाय, डव, ऐक्स, नोर, और मैग्नम आइसक्रीम जैसे ब्रांडों के लिये जाना जाता है, के स्वामित्व वाले एक केन्यायी चाय बाग़ान पर रहते थे। उस साल दिसम्बर में, पड़ोस के केरिको टाउन से सैकड़ों लोगों ने हमला बोला और एक हफ़्ते तक आतंक का तांडव मचाते हुए बाग़ान के बाशिंदों का अंगभंग, बलात्कार और क़त्लेआम करते रहे।
हमलावरों ने मकोरी सहित, जिसे उन लोगों ने उसके बेटे और जॉन्सन की बेटियों में से एक के सामने बलात्कार करने के बाद घायल कर के मृतासन्न कर दिया था, बागान के कम से कम ग्यारह लोगों की हत्या की। उन लोगों ने हज़ारों घर जलाये-लूटे और अनगिनत लोगों को घायल और यौनिक रूप से उत्पीड़ित किया जिन्हें उनकी जातीय पहचान और संभावित राजनीतिक संबद्धता के चलते निशाना बनाया गया था।
विवादास्पद राष्ट्रपति चुनाव के चलते यह हिंसा भड़की। केरिको की स्थानीय आबादी द्वारा समर्थित उम्मीदवार - जिसका बहुत से यूनिलिवर मैनेजर खुले आम पक्ष ले रहे थे, एक ऐसे राजनीतिज्ञ से हार गया जिसके लिये माना जा रहा था कि उसे अल्पसंख्यक क़बीलाई समुदायों का समर्थन था। यह नर संहार केरिको या बागान तक ही सीमित नहीं था। पूरे केन्या में चुनाव बाद की हिंसा में 1300 से ज़्यादा लोग मारे गये थे।
यूनिलिवर की दलील है कि उसके बागान पर हमला बिल्कुल अप्रत्याशित था, इसलिये उसे ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जाना चाहिये। मगर गवाहों और पुराने यूनिलिवर मैनेजरों का कहना है की कम्पनी के अपने स्टाफ़ ने इन हमलों को भड़काया और हमलों में भागीदारी की। उन्होंने ये आरोप लंदन के एक कोर्ट में मुक़दमा दायर होने के बाद 2016 में अपनी लिखित गवाही में लगाये हैं। एने और उसके जैसे 217 अन्य जीवित बचे उत्पीडितों की माँग है कि यूनिलिवर केन्या और यूके का उसका अभिभावक कारपोरेट दोनो क्षति पूर्ति भुगतान करें। दावेदारों में 56 महिलायें थीं जिनका बलात्कार हुआ था और उन सात लोगों के परिवार वाले थे जिनकी हत्या हुई थी।
गवाहों के बयान और कोर्ट के अन्य दस्तावेज़ों के सैकड़ों पन्नों और मेरे द्वारा लिये गये साक्षात्कारों में, जीवित बचे शिकार बताते हैं कि कैसे चुनाव प्रचार के दौर में उनके सहकर्मी, "ग़लत" उम्मीदवार की जीत होने पर, हमलों के लिये धमकाते थे। जब भी वे इन धमकियों की शिकायत करते थे, उनके मैनेजर उनकी अनसुनी कर देते थे, ढँकी-छुपी धमकियाँ देते थे, या खुद ही अपमानजनक टिप्पणियाँ किया करते थे।
यूनिलिवर केन्या के भूतपूर्व मैनेजरों ने कोर्ट के सामने स्वीकार किया कि, मैनेजिंग डायरेक्टर रिचर्ड फ़ेयरबर्न सहित कम्पनी के तत्कालीन शीर्ष प्रबंधन ने अपनी कई बैठकों में चुनावी हिंसा की सम्भावना पर चर्चा की, मगर केवल अपने वरिष्ठ अधिकारियों, फैक्ट्रियों, और उपकरणों की सुरक्षा बढ़ाने के इंतज़ाम किये।
यूनिलिवर केन्या ज़ोर दे कर अपनी ज़िम्मेदारी से इंकार करती है और सारा दोष पुलिस की बेहद धीमी गति से कार्यवाही पर मढ़ती है। इस बीच, लन्दन में इसके कारपोरेट अभिभावक का कहना है उसकी कर्मचारियों के प्रति कोई देनदारी नहीं है और उत्पीड़तों को कम्पनी के ख़िलाफ़ केन्या में, न कि यूके में मुक़दमा करना चाहिये। मगर कर्मचारियों का कहना है कि केन्या में मुक़दमा उनके ख़िलाफ़ और ज़्यादा हिंसा भड़का सकता है , जिसमें उनके पुराने हमलावर भी शामिल रहेंगे जिनमे से कई अभी भी बाग़ान में उन्हीं के साथ काम करते हैं।
2018 में यूके में एक जज़ ने फ़ैसला दिया कि यूनिलीवर के लंदन मुख्यालय को उसकी केन्यायी सब्सिडियरी के लिये ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। अब एने और उसके पुराने सहकर्मी व्यापार और मानवाधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र वर्किंग ग्रुप से आशा लगाये हुए हैं, जो अगले कुछ महीनों में यह निर्णय देने वाला है कि यूनिलिवर ज़िम्मेदार व्यापार व्यवहार के संयुक्त राष्ट्र दिशा-निर्देशों का पालन करने में असफ़ल रहा है अथवा नहीं? एने ने मुझे बताया, : " कम्पनी ने हमसे वायदा किया था कि वे हमारी देखभाल करेंगे, मगर उन्होंने नहीं किया, इसलिये अब उन्हें हमें भुगतान करना चाहिये जिससे हम अंततः अपना जीवन एक बार फिर से खड़ा कर सकें।
केन्या के दक्षिणी रिफ़्ट घाटी में यूनिलिवर का पहाड़ी चायबाग़ान 2007 में लगभग 13,000 हेक्टेयर में था। उस समय क़रीब 20,000 रिहायशी श्रमिकों और उनके परिवार क़रीब एक लाख लोगों, ऑन साइट स्कूलों, स्वास्थ्य क्लीनिकों, और सामाजिक सुविधाओं के बखान के साथ, ये बागान संपदायें, वस्तुतः एक कम्पनी टाउन थे, और वह भी कास्मोपोलिटन : वहां काम करने वाले समूचे देश की विभिन्न जातीयताओं से आते थे।
जॉनसन परिवार कीसी का रहने वाला था, जो यूनिलिवर बागान सम्पदा से दो घंटे की दूरी पर कीसी जातीयता पहचान वाला एक क़स्बा था। बागान पर रहने वालों में क़रीब आधे कीसी समुदाय के थे, मगर पास का केरिको अपेक्षाकृत काफ़ी छोटी राष्ट्रीयता - कलेंजी की गृह भूमि था। केरिको में रहने वाले काफ़ी सारे लोग कीसी और अन्य लोगों को "विदेशियों" के रूप में हिक़ारत से देखते थे। बागान में भी यह विभाजन स्पष्ट प्रतिबिम्बित होता था : कलेंजी ज़्यादातर मैनेजर थे, और कीसी व अन्य अल्पसंख्यक जातीयताओं के लोग मुख्यतः चाय पत्ती चुनने का काम करते थे।
जॉनसन दंपति ने दिसम्बर 2007 का अंतिम रविवार भी आम दिनों की ही तरह बिताया - बाग़ान के खेतों में अपनी पीठ पर टोकरी लादे हुए - हालाँकि शाम को ले कर वे काफ़ी आशंकित थे, क्योंकि देर दोपहर को चुनाव नतीजे घोषित होने वाले थे। इसी सप्ताह , लाखों केन्यायी या तो आरेंज डेमोक्रेटिक मूवमेंट (ODM) के नेता राइला ओडिंगा या फिर नेशनल यूनिटी पार्टी (PNU) के मवाई किबाकी को अपना नया राष्ट्रपति चुनने के लिये अपने मताधिकार का प्रयोग कर चुके थे।
एने ने खुद मतदान नहीं किया था। एने ने बताया कि कुछ सप्ताह पहले उसने कीसी जाने के लिये छुट्टी का आवेदन किया था जहां वह मतदाता के रूप में पंजीकृत थी, मगर उसके मैनेजर ने आवेदन अस्वीकार कर दिया था। अल्पसंख्यक कबीला समुदायों के लिये यह आम अनुभव था। ऐसा दानियेल लीडर का कहना था, जो लंदन की लॉ फ़र्म ली डे ( Leigh Day) का पार्टनर था : वह फ़र्म जो कोर्ट में जीवित बचे उत्पीडितों का प्रतिनिधित्व कर रही थी और जिसकी टीम ने सभी 217 दावेदारों का साक्षात्कार लिया था।
आसन्न चुनावों ने यूनिलिवर के कलेंजी वर्करों और उनसे काफ़ी कनिष्ठ कीसी श्रमिक सह कर्मियों के बीच तनाव बढ़ा दिया था। एने ने जानकारी दी कि "उन्होंने यह मान लिया था कि हम सारे कीसी मवाई का समर्थन कर रहे थे", जबकि स्थानीय कलेंजी आबादी लगभग पूरी तरह ओडिंगा समर्थक थी।
जीवित बचे उत्पीडितों का कहना है कि चुनाव से पहले के कुछ हफ़्तों में ओडीएम समर्थक स्टाफ़ ने चाय बागान को प्रचंड ओडिंगा समर्थक केंद्र में बदल दिया था : सम्पदा पर ही राजनीतिक रैलियाँ और रणनीतिक बैठकें हो रही थीं। एने ने मुझे बताया कि कीसी के किबाकी समर्थक होने की पूर्वधारणा ने कई कलेंजियों को कीसी विद्वेषियों में बदल दिया था। उसने बताया कि उदाहरण के लिये टीम लीडरों ने उसकी जॉब ड्यूटी ग़ैर-कीसी श्रमिकों को आवंटित करना शुरू कर दिया था। दूसरे सहकर्मियों ने उससे बातचीत बिल्कुल ही बंद कर दी। एने की आशंका और भी बढ़ गयी, जब उसने रिहायशी इलाक़ों में "विदेशियों वापस जाओ" जैसे नफ़रत भरे नारों के साथ पर्चों को देखा। उसे आशंका होने लगी कि "चुनाव बाद कुछ बुरा घटित हो सकता है"।
एने डरी हुई थी, मगर उसने शांति बनाये रखा। उसने बताया, "इतनी बड़ी कम्पनी है, हमने सोचा कम्पनी ज़रूर ही हम लोगों की हिफ़ाज़त करेगी"। उत्पीडितों ने बताया कि जो ज़्यादा आशंकित-डरे हुए थे, और जिन्होंने ने अपने टीम लीडरों और मैनेजरों से सुरक्षा की गुहार की उनके साथ बेहद बेरुखी से पेश आया गया। कोर्ट की गवाही में बहुतों ने याद किया कि कैसे बहुत से मैनेजरों ने ज़्यादा सुरक्षा की उनकी गुहारों को अनदेखी किया, या फिर यह कहते हुए भगा दिया कि "ये तो बस राजनीति है"। अन्य मैनेजरों ने आशंकित श्रमिकों को ओडिंगा के लिये प्रचार और वोट करने के लिये निर्देश देते हुए धमकाया की अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो "भागने को मजबूर कर दिये जायेंगे"।
लंदन न्यायालय में एक सम्पदा मैनेजर ने स्वीकार किया कि यूनिलिवर का शीर्ष प्रबंधन - फ़ेयरबर्न, प्रबंध निदेशक सहित - जानता था कि "अशांति घटित होगी और बागान पर हमला होगा"। उसने बताया कि दिसम्बर की कम से कम तीन मीटिंगों में उन्होंने अतिरिक्त सुरक्षा की ज़रूरत पर चर्चा की थी। मगर प्रबंधन ने केवल " कम्पनी की सम्पदा, फैक्ट्रियों, मशीनरी, गोदामों, पॉवर स्टेशनों, और मैनेजमेंट आवास की सुरक्षा" के लिये उपाय किये, जबकि "वर्करों की सुरक्षा के लिये रिहायशी कैंपों की सुरक्षा बढ़ाने पर कोई विचार नहीं किया गया"। एक अन्य भूतपूर्व यूनिलिवर मैनेजर ने भी इस दावे की पुष्टि की।
फ़ेयरबर्न ने , जो उस समय वहाँ कथित रूप से मौजूद था, जब मैंने उससे फ़ोन पर बात की, मीटिंगों के बारे में कोई टिप्पणी करने से इंकार कर दिया। आज तक यूनिलिवर अपने इसी दावे पर अड़ी हुई है कि वह हमलों का पूर्वानुमान नहीं लगा सकती थी, इस बात के बावजूद कि बीबीसी, अल जज़ीरा,दि न्यूयार्क टाइम्स, और रायटर्स सहित केन्या और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया सभी आसन्न जातीय हिंसा की लगातार रिपोर्टिंग कर रहे थे।
"वह कोई भी, जो 2007 के केन्यायी चुनावों के बारे में कुछ भी जनता था, इस बात को जानता था कि इसका संभावित अंत व्यापक और भारी पैमाने पर हिंसा हो सकती है, और यह हिंसा कुल मिला कर पहचान और संबद्धता के आधार पर घटित होगी", यह कहना है तारा वान हो का, जो एसेक्स विश्वविद्यालय में क़ानून और मानवाधिकार पढ़ाती हैं। वह आगे बताती हैं कि यूनिलिवर केन्या और लंदन के उसके अभिभावक कारपोरेट दोनो को ही यह जानना चाहिये था कि वर्कर और उनके परिवार ख़तरे में थे। उसका कहना है कि उनकी सुरक्षा के लिये यूनिलिवर अतिरिक्त सुरक्षा गार्डों को ले सकता था, अपने सुरक्षा कर्मियों और मैनेजरों को प्रशिक्षित कर सकता था, और अपने भवनों का सुदृढ़ीकरण कर सकता था या फिर वहाँ रहने वालों को चुनाव के तत्काल चतुर्दिक समय के लिये वहाँ से हटा सकता था।
लीडर, वर्करों के लंदन अटार्नी ने कहा कि यूनिलिवर ने "इसके बजाय ऐसी परिस्थिति पैदा की जिसमें [ये कर्मचारी] - अपनी जातीय पहचान के चलते निरीह शिकारों की तरह फँसे हुए थे।"
इस बीच, भूतपूर्व मैनेजरों के अनुसार, केन्या के मैनेजिंग डायरेक्टर और शीर्ष एक्जीक्यूटिव्स संकट से पहले छुट्टियाँ मनाने चले गये थे, और कम्पनी ने हिंसा शुरू होते ही बचे हुए मैनेजरों और विदेशी विशेषज्ञों को प्राइवेट जेटों से वहाँ से हटा लिया था।
जब रविवार की शाम को किबाकी की जीत की ख़बर आइ, एने अपने परिवार के साथ रात के खाने की तैयारी कर रही थी। कुछ ही पलों बाद उसने बाहर लोगों को चीखते हुए सुना और समझ गयी कि वे सब ख़तरे में थे। उसने कहा, "हमने झटपट अपने दरवाज़ों पर ताले लगा दिये।"
उस रात खुखरियों, कुल्हाड़ियों, केरोसिन जारों, और अन्य तमाम हथियारों से लैस- हथियारबंद सैकड़ों लोगों ने बाग़ान पर धावा बोल दिया। उन्होंने कीसियों के हज़ारों घर लूट और जला दिये - जिन्हें उन्होंने X निशान से चिन्हित कर रखा था - और वहाँ के रहने वालों पर हमला किया।
कोर्ट के दस्तावेज़ अगले पूरे सप्ताह जो कुछ घटित हुआ उसकी दिल दहला देने वाली तस्वीर प्रस्तुत करते हैं। लोगो का सामूहिक बलात्कार हुआ, उन्हें भयानक रूप से पीटा गया, और लोगों ने अपने ही सह कर्मियों को ज़िंदा आग में झोंक दिया। जब वे जान बचाने के लिये चाय की झाड़ियों की ओर भागे, हमलावरों ने कुत्तों के साथ उनका पीछा किया।
लीडर ने मुझे बताया, "हम नहीं जानते कि कुल कितने लोगों का बलात्कार हुआ, हत्या हुई और स्थाई रूप से अपंग कर दिये गये।" उसका सोचना है कि जिन 218 दावेदारों का वे प्रतिनिधित्व कर रहे थे, केवल उतने ही जीवित बचे उत्पीड़ित शिकार नहीं हैं। उसने कहा, " अभी ऐसे बहुत से लोग होंगे जो उन सह कर्मियों की ओर से प्रतिक्रिया अथवा फिर से हमलों की आशंका से बेहद डरे हुए होंगे, जो अभी भी उनके साथ ही काम कर रहे हैं।"
हिंसक प्रतिक्रियाओं की आशंका और डर उन कारणों में से एक था जिनके चलते उत्पीड़ित यूनिलिवर के ख़िलाफ़ यूनाइटेड किंगडम में मुक़दमा करना चाहते थे। एक दूसरा कारण यह था कि ली डे (Leigh Day) उनका प्रतिनिधित्व निशुल्क कर रहा था, जब कि केन्या में क़ानूनी खर्च वे नहीं वहन कर सकते थे।
ली डे का तर्क यह था कि उसके केन्यायी क्लाइंटों को यूनिलिवर पर लंदन में मुक़दमे का अधिकार था, क्योंकि यूके का क़ानून अंतर्राष्ट्रीय सब्सिडियरियों को यूके आधारित पेरेंट कंपनियों के ख़िलाफ़ मुक़दमे का अधिकार देता है, यदि और बातों के साथ वे यह दिखा सकें कि कारपोरेट पेरेंट की सब्सिडियरी के दिन-प्रतिदिन प्रबंधन में सक्रिय और नियंत्रणकारी भूमिका है। ली डे का तर्क है कि यूनिलिवर के मामले में निश्चित रूप से ऐसा है।
इसके विपरीत, यूनिलिवर के वकील इस पर ज़ोर दे रहे थे कि उत्पीडितों को अपना मामला-मुक़दमा केन्या में दायर करना चाहिये। वे सुझाव दे रहे थे कि चाय पत्ती चुनने वालों को "एक साथ एकजुट हो कर मित्रों और परिवारों से फ़ंड जुटाना चाहिये।"
बहुत सारे उत्पीड़ित शिकारों ने कहा कि वे हमलावरों को अपने यूनिलिवर सह कर्मियों के रूप में पहचानते हैं। एक औरत ने कोर्ट को बताया कि उस पर उसके पाँच सह कर्मियों ने हमला किया था, जिनकी उसने नाम से पहचान की। उसने अपनी गवाही के बयान में कहा कि उन आदमियों ने "एक मेटल की छड़ से मेरी पीठ और टांगों पर मारना शुरू कर दिया और मेरा बलात्कार करने ही जा रहे थे कि एक कलेंजी पड़ोसी ने, जो एक पुरुष नर्स था, हमला रोकने के लिये हस्तक्षेप किया।"
कोर्ट में यूनिलिवर ने इस बात से इंकार किया कि उसके अपने कर्मचारी हमलों में शामिल थे। मगर जब मैंने यूनिलिवर प्रतिनिधियों से पूछा कि यह बात कम्पनी कैसे जानती है, उन्होंने इस पर आगे कोई टिप्पणी करने से मना कर दिया।
हमलावरों के जाने के बाद, जॉनसन परिवार वाले भाग कर तीन रातों तक चाय की झाड़ियों में छुपे रहे, जिसके बाद वे कीचड़ और खून में लिपटे हुए पास के कोईवा पुलिस थाने तक जाने की हिम्मत जुटा सके। वहाँ से पुलिस अधिकारियों ने उन्हें सुरक्षा दी और वे कीसी तक पहुँच पाये जहां उनके पास ज़मीन का एक छोटा सा टुकड़ा है। बचत के अभाव में वे न तो अपनी सबसे बड़ी बेटी के लिये, जिसे गंभीर चोटें आइ थीं और दिनोंदिन कमजोर होती जा रही थी, और न ही मकोरी के लिये, जिसे आंतरिक रक्तश्राव हो रहा था, अस्पताल का खर्च वहन करने की स्थिति में थे। कुछ ही महीनों के अंदर उन दोनो ने ही कीसी के अपने कच्चे झोंपड़े में दम तोड़ दिया।
एने ने बताया कि हमले के बाद यूनिलिवर की ओर से एकमात्र सम्पर्क महीनों बाद एक पत्र के रूप में किया गया जिसमें उसे वापस काम पर लौटने का निमंत्रण और क्षति पूर्ति के रूप में क़रीब $110 का प्रस्ताव किया गया था। पत्र के अनुसार यह राशि यूनिलिवर के लंदन स्थित कारपोरेट मुख्यालय द्वारा निर्धारित और भुगतान की जा रही थी।
पत्र में लिखा गया था : " सम्पूर्ण यूनिलिवर केन्या टी लिमिटेड परिवार की ओर से, हम यूनिलिवर का उनकी संवेदनशील समझदारी, मेटेरियल और नैतिक सहयोग के लिये धन्यवाद ज्ञापित करते हैं और आशा करते हैं कि उनका यह सामयिक सहयोग हमारे कर्मचारियों और उनके परिवारों में सामान्य स्थिति वापस लाने में बहुत दूर तक जायेगा।"
एने ने मुझे बताया कि वह फिर कभी बाग़ान नहीं लौटी क्योंकि वह अपने बेटे को कभी नहीं छोड़ सकती थी जो इस समय अपनी आयु के मध्य बीसवें में है। "वहाँ जो कुछ भी हुआ था, उसके बाद से उसे बार-बार बहुत बुरे दिमाग़ी और घबराहट के दौरे पड़ते हैं और उसे लगातार देखभाल की ज़रूरत होती है। बच्चों के बुरी तरह आतंकित-हदसे हुए होने और मनोवैज्ञानिक चिकित्सा का खर्च वहन कर सकने में सक्षम नहीं होने के चलते उसके बेटा और बेटी दोनो ने ही स्कूल जाना छोड़ दिया है। उसने बताया कि "हम रिश्तेदारों और पड़ोसियों से मिलने वाली सहायता और जो थोड़ा-बहुत मक्का अपनी ज़मीन पर उगा पाते हैं, उसी के सहारे ज़िंदा हैं।"
दावेदारों का कहना है कि यूनिलिवर की उनके प्रति भरपूर क्षति पूर्ति की ज़िम्मेदारी बनती है, मगर यूनिलिवर का कहना है कि वह उन्हें पहले ही क्षति पूर्ति का भुगतान कर चुका है। कम्पनी के प्रवक्ता ने मुझे बताया कि उसने उन सारे वर्करों को, जो अंततः बागान लौटे, नक़द और नये फर्नीचर के रूप में भुगतान कर दिया है और उनके परिवारों के लिये मुफ़्त काउंसिलिंग और मेडिकल देखरेख का भी प्रस्ताव किया है। मगर वे (प्रवक्ता) यह नहीं बताते कि कम्पनी ने उन्हें (उत्पीडितों) को वास्तव में कितना दिया है और न ही उन्होंने एने के उस पत्र पर कोई टिप्पणी की जो एने ने मुझे दिखाया था।
2018 की गर्मियों में, एने और उत्पीडितों के एक समूह ने कम्पनी के इन दावों का कम्पनी के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी (CEO) पॉल पोलमन को लिखे गये पत्र में प्रतिवाद किया था : " यूनिलिवर का यह कहना सही नहीं है कि उसने हमारी मदद की है, जब कि हम जानते हैं कि यह पूरी तरह झूठ है।" पत्र में आगे कहा गया :
यूनिलिवर बस यह चाहता था कि हम सब वापस काम पर लौट आयें जैसे कुछ हुआ ही नहीं था [और जिन लोगों ने ऐसा किया उनको] कहा गया कि हम पर जो कुछ भी बीती उस पर बिल्कुल भी मुँह नहीं खोलना है। हम अभी भी डरे हुए हैं कि यदि हमने हिंसा को ले कर कोई बात की, हमें दंडित किया जायेगा।
यूनिलिवर का कहना है कि हिंसा के बाद हर कर्मचारी को वेतन के हुए नुक़सान की भरपाई के लिये "सामान के रूप में क्षतिपूर्ति" दी गयी थी और उन्हें अपनी चोरी हुई सम्पदा के बदले में सामान या फिर नये सामान ख़रीदने के लिये नक़द दिया गया था… मगर जो लोग काम पर लौटने में बहुत ज़्यादा डरे हुए थे, उन्हें कुछ नहीं मिला और जो लोग लौटे, उनमें से कुछ ही लोगों को KES12,000 [$110], जो एक महीने के वेतन से कुछ ही ज़्यादा था, और थोड़ा सा मक्का दिया गया, जो बाद में वेतन से काट लिया गया। हमें कहा गया यदि हमें लोग हमारे (चोरी-लूटे गये) सामानों के साथ दिखें, तो भी हमें कुछ नहीं बोलना है।
लगता है, पोलमन ने इस पत्र का कोई उत्तर नहीं दिया है।
यूके क़ानूनों के अंतर्गत, किसी पेरेंट कम्पनी को अपनी सहायक कंपनियों (सब्सिडियरी) द्वारा स्वास्थ्य और सुरक्षा हनन के मामलों में तभी ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है, जब वह उनकी सुरक्षा व आपात-संकट प्रबंधन नीतियों पर ऊँचे दर्जे का नियंत्रण रखती हो।
न्यायालय में यह साबित करने के लिये कि यूके पेरेंट कम्पनी निश्चित रूप से यूनिलिवर केन्या पर इस तरह का नियंत्रण रखती थी, ली डे ने भूतपूर्व कर्मचारियों के बयान प्रस्तुत किये, जिन्होंने लंदन के मैनेजरों द्वारा बार-बार किये गये दौरों की गवाही दी। इसी के साथ चार भूतपूर्व मैनेजरों के भी बयान हुए, जिसमें उन्होंने गवाही दी कि लंदन मुख्यालय यूनिलिवर केन्या की सुरक्षा और संकट प्रबंधन नीतियों का निर्धारण, निगरानी, और ऑडिट निरीक्षण करता था और यहाँ तक कि उसने अपने खुद के सुरक्षा प्रोटोकॉल मानकों को अनिवार्य रूप से लागू कराया। इसका अर्थ यह यह था, जैसा कि कम्पनी के साथ 15 वर्ष से अधिक का अनुभव रखने वाले एक वरिष्ठ मैनेजर ने गवाही दी, कि यूनिलिवर केन्या का प्राधिकार "उन नीतियों और प्रक्रियाओं के अक्षरशः अनुपालन तक सीमित था जिन्हें [यूनिलिवर] मुख्यालय द्वारा गहनतम-निचले स्तर तक विनिर्धारित किया गया था।" एक अन्य वरिष्ठ मैनेजर ने कहा कि केन्यायी कम्पनी को लंदन की “जाँच बिंदु” (चेक लिस्ट) और पूरे डिटेल में विनिर्धारित नीतियों का पूरी तरह से अनुपालन करना होता था, अन्यथा कर्मचारी को बर्खास्त कर दिया जाता था, अथवा किसी और रूप में दंडित किया जाता था।
ये गवाहियाँ ली डे के इस दावे की पुष्टि करती थीं कि लंदन मुख्यालय की ज़िम्मेदारी बनती थी। बावजूद इसके, न्यायालय के सामने इस बात को साबित करने के लिये लॉ फ़र्म को उन प्रोटोकॉल के मूल पाठ (text) की ज़रूरत थी जिनका उल्लेख ये मैनेजर कर रहे थे। मगर चूँकि यह सब ट्रायल से पहले की कार्यवाही थी - इसका मतलब था कि कोर्ट ने अभी अधिकार क्षेत्र स्वीकार नहीं किया था - यूनिलिवर वांक्षित दस्तावेज़ को प्रस्तुत करने के लिये बाध्य नहीं था, और उन्होंने दस्तावेज़ों को सौंपने से सीधे इंकार कर दिया।
जज़ के निर्णय में यह स्पष्ट कहा गया कि उनके (दावेदारों) पक्ष से प्रमाणों-साक्ष्यों की कमजोरी ने उसके केन्यायी अधिकार क्षेत्र से इंकार करने के निर्णय में बड़ी भूमिका निभाई है। मानवाधिकार विशेषज्ञों और कारपोरेट दायित्व एडवोकेटों ने इस निर्णय की भर्त्सना की। कोर्ट ने कर्मचारियों के लिये 'न- पकड़ते- न- छोड़ते' बनने (catch-22) की विडम्बना की स्थिति बना दी थी। वान हो का कहना था : "दावेदार वे दस्तावेज़ नहीं हासिल कर सके जो यह दिखा सकते कि यूनिलिवर ने कुछ ग़लत किया था जब तक कि उनके पास वे दस्तावेज़ न होते जो यह दिखा सकते कि यूनिलिवर ने कुछ ग़लत किया था।" उसने कहा, "यह दिमाग़ चकरा देने वाली बात है" और "कर्मचारियों से पूरी तरह अनुचित अपेक्षा है जिनके पास उस मल्टी-बिलियन डालर कम्पनी की तुलना में कोई ताक़त नहीं है जिसने उनका नियोजन किया था।"
एने ने कहा कि उसे अभी भी उम्मीद है कि अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार एडवोकेट उसके मामले का समर्थन करेंगे। कुछ अन्य उत्पीडितों के साथ उसने हाल ही में यूनिलिवर के ख़िलाफ़ संयुक्त राष्ट्र में शिकायत दर्ज करायी है, अपना यह पक्ष रखते हुए कि कम्पनी ने व्यापार और मनवाधिकारों के संयुक्त राष्ट्र दिशा निर्देशक सिद्धांतों का उल्लंघन किया है। इन दिशा निर्देशों की एक अपेक्षा यह है कि कंपनियों को यह निश्चित रूप से सुनिश्चित करना होगा कि उनकी आपूर्ति चेन में मानवाधिकार उल्लंघनों के उत्पीडितों को निदान का अवसर उपलब्ध हो। वान हो अनुमान लगाती है कि संयुक्त राष्ट्र की संस्था, जिसके इस मामले में जल्दी ही निर्णय पर पहुँचने की उम्मीद है, इस बात से सहमत होगी कि यूनिलिवर ने इन दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया है। उसका कहना है :" क़ानूनी छिद्रों के पीछे छिपना, और क्षति पूर्ति भुगतान से बचने के लिये संगत दस्तावेज़ों को देने से इंकार करना उसका ठीक उल्टा है जो दिशा निर्देशक सिद्धांत विनिर्दिष्ट करते हैं।"
हालाँकि संयुक्त राष्ट्र यूनिलिवर को भुगतान के लिये विवश नहीं कर सकता, फिर भी एने को उम्मीद है कि यह मामला ध्यान आकृष्ट कराने के ज़रिये इतना जन दबाव तो बना ही सकेगा जो इस दिशा में कम्पनी को मजबूर कर सके। यह पूछे जाने पर कि यदि वर्कर्स जीत जाते हैं तो इसका उसके लिये क्या मतलब होगा, उसने मुझे बताया, "यह मेरे जीवन का सबसे महान पल होगा।"
मारिया हेंगेवेल्द श्रमिक अधिकारों और कारपोरेट दायित्व पर केंद्रित खोजी पत्रकार, और किंग्स कालेज, कैम्ब्रिज में पीएच.डी शोधकर्ता व गेट्स स्कालर है।
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