Colonialism

अफ्रीका में "मौद्रिक साम्राज्यवाद"

डॉ. न्दोंगो सांबा साइला मौद्रिक साम्राज्यवाद, फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीका में फ्रांसीसी प्रभाव के विरोध और हमारे वर्तमान समय में अफ्रीका के साथ अंतर्राष्ट्रीयवादी एकजुटता के स्वरूप पर चर्चा कर रहे  हैं।
26 जुलाई 2023 के आरंभिक घंटों में नाइजर के राष्ट्रपति गार्ड और सशस्त्र बलों के सदस्यों ने तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ौम को उनके घर पर हिरासत में लिया, और फिर जनरल अब्दुर्रहमान चियानी के नेतृत्व में एक सैन्य सरकार स्थापित की। तख्तापलट का एक घोषित कारण था: फ्रांस के इस पूर्व औपनिवेशिक क्षेत्र पर फ्रांस के स्थायी सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव से उपजा असंतोष।
26 जुलाई 2023 के आरंभिक घंटों में नाइजर के राष्ट्रपति गार्ड और सशस्त्र बलों के सदस्यों ने तत्कालीन राष्ट्रपति मोहम्मद बाज़ौम को उनके घर पर हिरासत में लिया, और फिर जनरल अब्दुर्रहमान चियानी के नेतृत्व में एक सैन्य सरकार स्थापित की। तख्तापलट का एक घोषित कारण था: फ्रांस के इस पूर्व औपनिवेशिक क्षेत्र पर फ्रांस के स्थायी सैन्य, राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव से उपजा असंतोष।

हाल के वर्षों में इस तरह के तख्तापलट का अनुभव करने वाला यह न तो पहला और न ही अंतिम पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेश था, पर इसने लंबे समय से उठ रहे उन सवालों पर नए सिरे से ध्यान आकर्षित किया जो फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीका में नवउपनिवेशवाद, निर्भरता और संप्रभुता के लिए होने वाले संघर्ष से जुड़े हैं।

इन मुद्दों पर चर्चा करने के लिए प्रोग्रेसिव इंटरनेशन के माइकेल गालांट ने डॉ. न्दोंगो सांबा साइला से बातचीत की, जो अफ्रीकी राजनैतिक अर्थशास्त्र के क्षेत्र में एक तेजी से उभरते सितारे हैं और पश्चिमी व मध्य अफ्रीका में “मौद्रिक साम्राज्यवाद" के एक प्रमुख आलोचक हैं. 

यह साक्षात्कार सबसे पहले दि इंटरनेशनलिस्ट के अंक #60 में प्रकाशित हुआ.

MG: न्दोंगो, हमसे जुड़ने के लिए धन्यवाद।

NSS: मुझे आमंत्रित करने के लिए धन्यवाद।

 MG: दशकों के क्रूर उपनिवेशीकरण के बाद, और लगभग उतने ही वर्षों के चुनौतियों से भरे विद्रोह के बाद, 1950 और 60 के दशकों मेंफ्रांसीसी-उपनिवेश वाले अफ्रीका में राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्ष में विजय की एक लहर देखी गई।

लेकिन जैसा कि विश्व के अधिकांश भागों में देखा गया है, जरूरी नहीं कि कहने को आजादी मिलने पर वास्तविक आजादी भी मिल जाए। क्या आप हमें फ्रांकाफ्रीक के बारे में कुछ बात सकते हैं – कि फ्रांस ने आजादी के बाद भी किस तरह इस क्षेत्र में अपना प्रभाव बनाया हुआ है और यहाँ रहने वालों के लिए उसका क्या अर्थ रहा है? 

NSS: सेकू टूरे के गिनी को छोड़ दें तो सहारा मरुस्थल के दक्षिण में स्थित फ्रांस के पुराने उपनिवेशों को कभी भी वास्तविक आजादी नहीं मिली। फ्रांस ने उन्हें यह डील दी: " मैं आपके क्षेत्र को इस शर्त पर स्वतंत्रता प्रदान करता हूं कि आप विदेशी मामलों, विदेशी व्यापार, रणनीतिक कच्चे माल, शिक्षा, रक्षा, मौद्रिक औरवित्तीय प्रबंधन आदि क्षेत्रों में संप्रभुता का त्याग करते हैं।" जो अफ्रीकी नेता इन सभी क्षेत्रों में "सहयोग समझौतों" पर हस्ताक्षर करने के लिए सहमत हुए थे, वेआमतौर पर ऐसे राजनेता थे जिन्होंने औपनिवेशिक काल के दौरान फ्रांस में प्रशिक्षण प्राप्त किया था। उनमें से कुछ फ्रांसीसी मेट्रोपॉलिटन सरकार या संसद केसदस्य थे। उनमें से कई तो चाहते भी नहीं थे कि उनका देश स्वतंत्र हो जाए। जनरल डी गॉल ने इस नव-औपनिवेशिक योजना को अपनाया क्योंकि उनके लिएशीत युद्ध के संदर्भ में फ्रांस की रणनीतिक स्वायत्तता के लिए एक मौलिक शर्त थी अफ्रीका पर वर्चस्व और उसके संसाधनों पर नियंत्रण । इस विकल्प के चलतेफ्रांस ने अपने पूर्व उपनिवेशों के लोगों को कभी भी अपने नेता चुनने की आजादी नहीं दी। यही है जो अकसर फ्रांकाफ्रीक कहलाता है - एक फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीका, जो नाम की स्वतंत्रता के बावजूद कई मायनों में फ्रांसीसी नव-औपनिवेशिक नियंत्रण के तहत रहता है।

फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के दीर्घकालिक परिणाम ये रहे कि सहारा के दक्षिण में स्थित इसके पूर्व उपनिवेश लंबे समय तक अविकसित रहे हैं, और उनमें ऐसी अंतर्निहित, प्रतिक्रियावादी राजनीतिक व्यवस्था है जो इस बात की परवाह नहीं करती है कि लोग क्या सोचते हैं या चाहते हैं, भले ही वे कभी औपचारिक रूप से"लोकतांत्रिक" हों। परिणाम यह है कि दुनिया के कुछ सबसे अमीर नेता – जो अक्सर फ्रांस और पश्चिम द्वारा समर्थित हैं — दुनिया के कुछ सबसे गरीब देशों परशासन करते हैं।

MG: आपका काम विशेष रूप से "मौद्रिक साम्राज्यवाद" को बनाए रखने में सीएफए फ़्रैंक की भूमिका पर केंद्रित हैजो पश्चिमी और मध्य अफ्रीका कीदो मुद्राएँ हैं। मौद्रिक साम्राज्यवाद क्या है, और इसका विकल्प, मौद्रिक संप्रभुताक्या है?

NSS: पिछली दो शताब्दियों में साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं वाले देशों का जिन क्षेत्रों पर प्रभुत्व था उन पर अक्सर उन्होंने विवश करने वाली और हानिकारकमौद्रिक और वित्तीय व्यवस्था लागू की है—निश्चित विनिमय दर के कड़े सिस्टम लागू करना; उनके विदेशी मुद्रा भंडार, वित्तीय प्रणालियों को नियंत्रित करना; औरऋण और आर्थिक अधिशेष का आवंटन करना। अपनी अनुशासनात्मक भूमिका (प्रतिबंध लगाने की संभावना) से आगे बढ़कर मौद्रिक साम्राज्यवाद काम करता है उन प्रभावशाली देशों की आर्थिक और वित्तीय शक्ति को सुदृढ़ करने के लिए, जो शासित देशों के मानव और भौतिक संसाधनों को एक प्रकार से मुफ़्त में इस्तेमाल कर सकते हैं।

यह मौद्रिक साम्राज्यवाद दुनिया भर में अलग-अलग रूप में देखा जा सकता है, अफ्रीका से एशिया, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन तक।[[1]](https://d.docs.live.net/a13a5c5fdef0c614/Documents/The%20Internationalist%20--%20Ndongo%20Samba%20Sylla%20-%20FINAL.docx#_ftn1) जहाँ तक सीएफएफ्रैंक की बात है, जो मूल रूप से अफ्रीका में फ्रांसीसी उपनिवेशों का फ्रैंक था, तो यह 1945 में शुरू हुआ था और फ्रांसीसी साम्राज्य के उप-सहारा क्षेत्र में चलन में आया था। 

अमेरिका और अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व वाली नई आर्थिक और वित्तीय वैश्विक व्यवस्था में, इस औपनिवेशिक मुद्रा प्रणाली की बदौलत फ्रांस डॉलर के अपनेदुर्लभ भंडार को बचाने में सक्षम रहा क्योंकि वह सीएफए क्षेत्र से अपने सभी आयात अपनी ही इस मुद्रा का उपयोग करके खरीद सकता था। इससे यह भी हुआ कि फ्रांस ने अपने आयातों के लिए अपने उपनिवेशों के डॉलर के भंडार का इस्तेमाल किया और इसकी विनिमय दर को स्थिर भी कर दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के समय में जब फ्रांस और उसके अफ्रीकी उपनिवेशों के संबंध बाधित हुए, तो इस औपनिवेशिक मुद्रा प्रणाली ने फ्रांस को इस दौरान खोए हुए अपने व्यापार हिस्से को फिर से हासिल करने में बहुत मदद की थी। स्वतंत्रता के बाद मौद्रिक साम्राज्यवाद की यह प्रणाली अपने कार्य सिद्धांतों के साथ बनी रही, उन "सहयोग समझौतों" के चलते जिनका मैंने ऊपर उल्लेख किया है। आज ये दोनों मुद्राएं— पश्चिम अफ्रीकी सीएफए और मध्य अफ्रीकी सीएफए, जो क्रमशः आठ और छह देशों में प्रचलित हैं—सीधे यूरो (पहले फ्रेंच फ्रैंक) से जुड़ी हुई हैं, जिससे मौद्रिक नीति का महत्वपूर्ण उपकरण प्रभावी रूप से स्वतंत्र सरकारों के हाथों से छिनकर फ्रांसीसी राजकोष और यूरोज़ोन के राजनीतिक और मौद्रिक अधिकारियों के नियंत्रण में चला गया है।

मौद्रिक साम्राज्यवाद का अर्थ जब राष्ट्रों को अपने स्वायत्त विकास के लिए घरेलू धन और वित्त का उपयोग करने की शक्ति से वंचित करना हो जाता है, तो यह आर्थिक और मौद्रिक संप्रभुता के लिए एक बाधा है। मौद्रिक संप्रभुता को केवल एक सरकार के अपनी मुद्रा जारी करने के अधिकार के रूप में नहीं समझा जानाचाहिए। मेरे विचार से, सबसे पहले इसे परिभाषित किया जाना चाहिए आधुनिक मुद्रा सिद्धांत (एमएमटी) के अर्थ में, बिना किसी आंतरिक वित्तीय बाधा के खर्चकरने की सरकार की क्षमता के अर्थ में,

 लेकिन वास्तविक संसाधनों की उपलब्धता के संदर्भ में यह केवल एक सीमा है। दक्षिण के देशों के मामले में मौद्रिक संप्रभुता का यह निचला स्तर दर्शाता है कि अपने वास्तविक संसाधनों पर उनका अधिकार नहीं है (जो अक्सर अंतरराष्ट्रीय निगमों द्वारा चुरा लिए जाते हैं, फलतः कभी-कभी ऊंची ब्याज दरों पर विदेशी मुद्राओं में ऋण जारी करने की आवश्यकता हो जाती है) और वे एक ऐसे आर्थिक मॉडल के पीछे भाग रहे हैं—जो मूल रूप से दोहनकारी है— जो अमेरिकी डॉलर को रोके रखने की उनकी आवश्यकता को और भी पुष्ट करता है, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली अब तक अमेरिकी डॉलर के आसपास ही घूमती है।

MG: माली, बुर्किना फासो, नाइजर, गैबॉन। पिछले तीन वर्षों में फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीका में सैन्य तख्तापलट की लहर आ गई है। हालांकि ये हर मामलाअपने-आप में अलग है, इनमें से अधिकांश के घोषित एजेंडे में कुछ हद तक एक आम बात दिखती है, फ्रांसीसी प्रभाव के विरोध की। यह जो एकमहत्वपूर्ण सा लगता बदलाव है, इसे हम कैसे समझें?

NSS: तख्तापलट के बारे में किसी की भी राय जो भी हो, उनका वैज्ञानिक अध्ययन करना महत्वपूर्ण है। अफ़्रीका में तख्तापलट पर हुआ लेखन मूलतः पश्चिम-केंद्रित और अनैतिहासिक है। अफ़्रीका 55 देशों का एक बहुत बड़ा महाद्वीप है। आज हमारी जो भौगोलिक सीमाएँ हैं वे 1885 में बर्लिन में खींची गयी थीं,औपनिवेशिक विभाजन की दृष्टि से, जिसमें सांस्कृतिक जुड़ाव और पहचान के तर्क पर कोई विचार नहीं किया गया था। उपनिवेशवाद मूल रूप से एक ऐसा उद्यम था जो उन क्षेत्रों के दोहन पर आधारित था, और लोकतांत्रिक रूप से स्वायत्त किसी भी प्रकार का संस्थागत विकास नहीं होने देता था। इससे भी बुरा यह हुआ कि इसने जातीय और सामुदायिक पहचानों के साथ छेड़छाड़ और खिलवाड़ किया। आजादी के समय भी ऐसी ही स्थिति थी. फिर इसमें शीत युद्ध का संदर्भ जोड़ दीजिये, जिसमें पूर्व और पश्चिम दोनों की शक्तियों ने खुद को यह अधिकार दे दिया था कि वे अपने अनुनाइयों का समर्थन करने के लिए हस्तक्षेप करें या जिन लोगों को वे पसंद नहीं करते थे उन्हें उखाड़ फेंकें। इस भारी ऐतिहासिक विरासत को देखते हुए, आप बहुत ही बायस्ड होंगे अगर आप ये सोचते हैं कि हर अफ्रीकी देश रातों-रात एक आदर्श "उदार लोकतंत्र" बन सकता था। आज मुड़ कर देखें तो अफ्रीका में 1960 और 1990 के बीच (शीत युद्ध की समाप्ति के साथ) कई सैन्य विद्रोहों का होना – आंकड़ों की बात करें तो –"सामान्य" था। अफ्रीका के लिए एक यह एक ऐतिहासिक "उपलब्धि" रही है कि केवल चार दशकों में वे पन्ने पलट दिए गए (19वीं सदी में लैटिन अमेरिकी देशों की स्वतंत्रता से लेकर 1990 तक उनके अनुभव से ही इसकी तुलना कर लीजिए)।

2020 के बाद से अफ्रीका में जो नौ तख्तापलट हुए उनके तात्कालिक कारण और प्रेरणाएँ अलग-अलग हैं। लेकिन दो ऐसे व्यापक स्ट्रक्चरल डेटर्मिननट्स, यानी संरचनात्मक निर्धारक, हैं जिनका वे सभी का पालन करते हैं। एक तो यह कि वे उस क्षेत्र में स्थित देशों से संबंधित थे जो पश्चिम द्वारा सैन्यीकृत था, जैसे कि साहेल का क्षेत्र - माली, बुर्किना फासो, नाइजर, चाड और सूडान। दूसरा यह कि वे ज़्यादातर उन पूर्व फ्रांसीसी उपनिवेशों में ही घटित हुए जो 1960 से लेकर आज तक तख्तापलट के मामले में विश्व चैंपियन रहे हैं। 2020 के बाद से अफ्रीका में दर्ज किए गए नौ सैन्य तख्तापलटों में से आठ फ्रांसीसी-भाषी देशों में हुए।

MG: इन तख्तापलटों ने शायद बहुत अधिक आशा जगाई है कि नव-उपनिवेशवादी यथास्थिति को पलटा जा सकता है। लेकिन साथ ही कुछ लोगों को इस में संदेह भी है कि समाजवादया मेहनतकश जनता को मिलने वाली लोकतांत्रिक शक्ति का रास्ता तख्तापलट और गलत रूप से परिभाषित एजेंडे वाली सैन्य सरकारों से होकर गुजरता है। तख्तापलट की इस लहर से स्वाधीनता आ सकती हैइसमें क्या सीमाएँ या विरोधाभास हैंक्या इन सीमाओं को पार किया जा सकता है?

NSS: फैनी पिगु के सहलेखन में मेरी जो पुस्तक आने वाली है, उसमें हमने 1789-2023 के दौरान फ्रांस के पूर्व अफ्रीकी उपनिवेशों में लोकतंत्र और चुनावों के इतिहास का अध्ययन किया। हमने यह भी विस्तार से बताया कि वे सैन्य तख्तापलट के समर्थक क्यों हैं। संक्षेप में कहें तो, राज्य की कमज़ोरी के चलते ही इन देशों में तख्तापलट करना आसान रहा है। इसके अलावा, सत्ता में बैठे नेताओं की बढ़ती उम्र के चलते और फ्रांसीसी विशेषज्ञों की मदद से अक्सर की जाने वाली संवैधानिक गड़बड़ी के कारण युवा नागरिक उम्मीदवारों के चुनावी प्रक्रिया से बढ़ते अलगाव के चलते, सच्चाई यह है कि केवल वर्दीधारी युवा ही "पीढ़ीगत परिवर्तन" हासिल कर सकते हैं। साहेल क्षेत्र के देशों में विद्रोह करने वाले युवा हैं जिन्होंने अपेक्षाकृत पुराने नेताओं को उखाड़ फेंका है। सहारा के दक्षिण के फ्रांसीसी-भाषी अफ्रीकी देशों में नेताओं के चुनाव पर फ्रांस की दीर्घकालिक पकड़ के कारण, केवल सैन्य नेता ही कभी-कभी ऐसी राजनीतिक योजना बना सकते हैं जो फ्रांसीसी नव-उपनिवेशवाद से अलग होती है। सबसे प्रसिद्ध मामला थॉमस सांकारा का है, जो 33 साल की उम्र में सत्ता में आए और चार साल बाद उनकी हत्या कर दी गई।

इसका मतलब यह नहीं है कि सेना स्वाभाविक रूप से प्रगतिशील है। ऐसा नहीं है। लेकिन, जहां भी साम्राज्यवाद ने वामपंथी बुद्धिजीवियों, नेताओं और आंदोलनों को संरचनात्मक रूप से कुचला है और अपने स्थानीय सहयोगियों के साथ लोकप्रिय मांगों पर कहर बरपाना जारी रखा है, वहाँ सेना ही एकमात्र ऐसा संगठित बल है जो यथास्थिति से अलग एक विकल्प दे सकती है। और जब दीर्घकालिक रूप से विकास की कमी रही हो, तो ऐसी दरार की संभावनाएं अक्सर बड़े पैमाने पर अपील करती हैं। कुछ भी हो, जहाँ कुछ विद्रोह, जैसे कि माली, बुर्किना फासो और नाइजर में, खुले तौर पर फ्रांसीसी नव-उपनिवेशवाद के खिलाफ (और साहेल में रूसी और अमेरिकी सैन्यवाद के बारे में अस्पष्ट) हैं, दूसरों को फ्रांस ने खुले तौर पर समर्थन दिया है, जैसे चाड और गैबॉन में।

अच्छी खबर यह है कि अफ्रीकी लोग अब बाहर से नियंत्रित होने वाले नेता नहीं चाहते। पैन-अफ़्रीकी भावना की पुनरजागृति की पृष्ठभूमि में उचित ही है कि वे आर्थिक प्रगति और स्वतंत्रता की आकांक्षा रखते हैं। यह जो विद्रोह चला आ रहा है, उसे यदि वास्तविक मुक्ति परियोजना की ओर बढ़ना है, तो इसके लिए "उदार लोकतंत्र/कुलीनतंत्र," जिनकी सीमाएं स्पष्ट हो गई हैं, उनसे परे संगठन के लोकतांत्रिक रूपों की ओर कदम बढ़ाने की आवश्यकता होगी, और लोगों की सेवा में तथा लोगों के द्वारा आर्थिक परिवर्तन के लिए एक एजेंडा तैयार करना होगा। ये दो तत्व ऐसे हैं जिनकी अब तक कमी रही है।

MG: द इंटरनेशनलिस्ट के पाठकों के लिए - इस दौर में फ्रांसीसी-भाषी अफ़्रीका के लोगों को समर्थन या सहभाव कैसे संभव है?

NSS: अंतर्राष्ट्रीय सहभाव के लिए सबसे ज्यादा यह समझने की आवश्यकता है कि क्या हो रहा है और इसे एक ऐसी भाषा में लोगों तक पहुंचाना है जो न केवल पश्चिमी-केंद्रितता के पूर्वाग्रहों और चुप्पी से मुक्त हो, बल्कि वास्तविक अर्थ में आलोचनात्मक हो (दक्षिण-दक्षिण सहभाव का मतलब यह नहीं होना चाहिए कि कॉमरेड या सहयोगी देशों की निंदनीय प्रथाओं के प्रति आंखें मूंद ली जाएं)। इस प्रकार, मैं आशा करता हूँ कि फ्रांसीसी मौद्रिक उपनिवेशवाद, पश्चिमी देशों द्वारा महाद्वीप के सैन्यीकरण, पश्चिमी नेतृत्व वाली व्यवस्था की अवहेलना करने वालों के खिलाफ लगाए गए दमघोंटू आर्थिक प्रतिबंधों, अफ्रीकी धरती पर यूरोपीय संघ की अमानवीय प्रवास नीतियों आदि के खिलाफ संघर्ष को आगे बढ़ाने में प्रोग्रेसिव इंटरनेशनल योगदान देगा।


[[1]](https://d.docs.live.net/a13a5c5fdef0c614/Documents/The%20Internationalist%20--%20Ndongo%20Samba%20Sylla%20-%20FINAL.docx#_ftnref1)इंग्लैंड की बात करें तो, अंतर्राष्ट्रीय स्वर्ण मानक के तहत, इसकी मौद्रिक साम्राज्यवाद प्रणाली का भारत के संबंध में उत्सा पटनायक ने और अधिक सामान्य संदर्भ में वाडन नारसे ने अच्छी तरह वर्णन किया है। नर्सी और गेरोल्ड क्रोज़वेस्की का लेखन द्वितीय विश्व युद्ध के बाद स्टर्लिंग क्षेत्र को बनाए रखने में नाइजीरिया और घाना जैसे अफ्रीकी देशों द्वारा निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका को दर्शाता है। पीटर जेम्स हडसन, अपने बैंकर्स एंड एम्पायर में, हाइती की क्रांति (1804) से लेकर आज तक पश्चिमी शक्तियों और उनके बड़े बैंकों द्वारा कैरेबियन में स्थापित सैन्य-वित्तीय वर्चस्व की प्रणाली का वर्णन करते हैं। जहां तक अमेरिकी आधिपत्य के तहत वैश्विक मौद्रिक साम्राज्यवाद की व्यवस्था का सवाल है, माइकल हडसन का काम सर्वोपरि है। फिलीपींस पर लुम्बा का शानदार शोध मौद्रिक निर्भरता के एक अल्पज्ञात मामले से संबंधित है।

डॉ. न्दोंगो सांबा साइला इंटरनेशन डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स एसोसिएट्स (IDEAs) में अनुसंधान और नीति के अफ्रीका निदेशक और एफ्रीकन इकोनोमिक एंड मोनेटरी सोव्रेनिटी इनिशिएटिव के सह-संस्थापक हैं। वे अनेक पुस्तकों के लेखक, सह-लेखक या संपादक हैं। इनमें शामिल  हैंएफ्रीकाज़ लास्ट कोलोनियल करेंसी; इकोनोमिक एंड मोनेटरी सोव्रेनिटी इन ट्वेंटी-फ़र्स्ट सेंचुरी एफ्रीका; रेवोल्यूशनरी मूवमेंट्स इन एफ्रीका: एन अनटोल्ड स्टोरी; और आगामी दे ला देमोक्राती एन फ्रान्काफीक. उन हिस्तोरी दे ल’इम्पीरियालिज्म एलेक्तोराल (फैनी पिगु के साथ सह लिखित), जिसकी उन्होंने नीचे चर्चा की है. वे फ्रेंच स्क्रैबल के विश्व चैंपियन खिलाड़ी भी हैं।

Available in
EnglishSpanishPortuguese (Brazil)GermanFrenchHungarianTurkishKoreanMalaysianPolishBengaliUrduGreekRussianHindiItalian (Standard)
Author
Dr. Ndogo Samba Sylla
Translators
Shruti Nagar and ProZ Pro Bono
Date
27.02.2024
Source
Original article🔗
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